जब मैं देर शाम को घर
पहुँचा तो मेरी बीबी ने झटपट गरम गरम चाय बनाई। चाय की चुस्कियों के बीच वह पूरे
दिन का डेली रिपोर्ट ले रही थी। उसी समय मेरा फोन बजने लगा। मैने देखा कि वह फोन
मेरे भाई के बेटे का था इसलिए मैंने फोन अपने बेटे को पकड़ा दिया। मेरा बेटा फोन पर
अपने चचेरे भाई से बातें करने लगा। आम फोन कॉल के उलट मेरा बेटा जोर से चिल्लाया, “अरे बाप रे, क्या कह रहे हो? ये तो जुल्म हो गया। कैसे हुआ? कब हुआ?”
उसकी आवाज की बेचैनी से मैं भी बेचैन हो गया। किसी अनिष्ट
की आशंका से मेरा दिल जोर जोर
से धड़कने लगा। मैने अपने बेटे से पूछा, “क्या
हुआ? अम्मा ठीक तो हैं?”
मेरे बेटे ने कहा, “नहीं, अम्मा बिलकुल
ठीक हैं। गप्पू बता रहा था कि आज रात बारह बजे के बाद 500 और 1000 रुपए के नोट गैर
कानूनी हो जाएँगे। अब मेरा क्या होगा? पटना वाली मामी ने कल
ही जाते समय मुझे 1000 रुपए का नोट शगुन के तौर पर दिया था।“
मुझे जैसे 440 वोल्ट का झटका लगा। मैने अपनी बीबी से कहा, “पता
है, आज ही मैने पचास हजार रुपए निकाले हैं। कल मकानमालिक को
तेईस हजार रुपए किराया भी देना है। अब कल तो दे नहीं पाउँगा। मकानमालिक बड़ा दुष्ट
आदमी है। लेट पेमेंट होने पर 500 रुपए पेनाल्टी लेता है। मेरे पर्स में छुट्टे के
नाम पर केवल पचास रुपए बचे हैं। तुम्हारे पास कितने हैं?”
मेरी बीबी ने कहा, “होंगे दो तीन सौ रुपए। अभी तो दिवाली में
सारे पैसे खर्च हो गये।“
मेरी बीबी ने तब तक टीवी ऑन कर दिया। टीवी पर प्रधानमंत्री
जी अपने चिरपरिचित स्टाइल में घोषणा कर रहे थे। सारे टीवी चैनल वाले इस घोषणा को
मास्टर स्ट्रोक बता रहे थे। तभी मेरी बीबी ने कहा, “ऐसा करो कि पास के
किराने वाले के पास चलकर कोई छोटा मोटा सामान खरीदकर एक हजार के नोट का छुट्टा करा
लो। नहीं तो दो दिन तक खर्चा कैसे चलेगा।“
मैने कहा, “हाँ सही कह रही हो। चलो कार में भी
पेट्रोल भरवा लेते हैं। बता रहे हैं कि पेट्रोल पंप पर अगले बहत्तर घंटे तक ये नोट
लिये जाएँगे। लेकिन पेट्रोल कितना भरवा सकते हैं? आज सुबह ही
हजार का भरवाया था। अब उसमे ज्यादा से ज्यादा दो हजार का और भरवा सकते हैं।“
हमलोग आनन फानन में लिफ्ट से नीचे उतरे। मैने कार निकाली और
पहले किराने वाले के पास रुका। किराने वाले के पास जबरदस्त भीड़ लगी थी। बेचारा
किराना वाला हाथ जोड़ कर सबसे माफी माँग रहा था। वह कह रहा था, “भाई
साहब मेरे पास भी केवल पाँच सौ या हजार के ही नोट हैं। मैं कहाँ से लाऊँगा इतने
सारे सौ रुपए के नोट।“
उसके बाद मैं पास के ही पेट्रोल पंप पर गया। पेट्रोल पंप पर
लंबी लाइन लगी थी। भीड़ का जायजा लेने के लिये मैं गाड़ी से उतर गया। पेट्रोल पंप का
स्टाफ कह रहा था, “किसी भी आदमी को छुट्टा नहीं मिलेगा। पेट्रोल सबको मिलेगा
लेकिन कम से कम 500 रुपए या उसके मल्टीपल में।“
पेट्रोल पंप पर लगभग एक घंटा इंतजार करने के बाद मैने दो
हजार रुपए का पेट्रोल भरवा लिया। उसके बाद जब मैं वापस आया तो कार पार्किंग से
निकलते ही कई पड़ोसी मिल गये। ज्यादातर लोग इस फैसले को मास्टर स्ट्रोक ही बतला रहे
थे। मैं भी चुपचाप उनकी बातों को सुन रहा था। तभी शर्मा जी ने कहा, “बता
रहे हैं कि अगले 72 घंटों तक सरकारी अस्पतालों, सरकारी मिल्क
बूथ और शमशान में ये नोट लिये जाएँगे। हाँ रेल और हवाई जहाज के टिकट के लिए भी ये
नोट अभी लिये जाएँगे।“
अब मुझे गुस्सा आ रहा था।
मैने कहा, “भैया अब जो बीमार नहीं है वह अस्पताल क्या करने जायेगा। ज्यादातर बीमार लोग
प्राइवेट अस्पतालों में जाना पसंद करते हैं। अब आप फोर्टिस हॉस्पिटल जाएँगे या सदर
अस्पताल। मिल्क बूथ से आप कितना दूध खरीदे लेंगे एक बारे में? पाँच सौ लीटर? बिना जरूरत के कोई रेल यात्रा सिर्फ इसलिए नहीं
करेगा कि उसे अपने 500 या हजार के नोट का सदुपयोग करना है। और रेल में खाना और पानी
कैसे खरीदेंगे? टैक्सी या ऑटो वाले का पेमेंट कैसे करेंगे?
भगवान न करे कि किसी को शमशान जाने की जरूरत पड़ जाये। शमशान जाकर
कोई भला अपने लिये एडवांस बुकिंग करवायेगा?”
मेरी बात सुनकर ज्यादातर लोगों ने कोई जवाब नहीं दिया। वे
शायद मुझे मूर्ख समझ रहे थे या फिर मुझे मौन स्वीकृति दे रहे थे। उसके बाद मैं
अपने फ्लैट में आ गया। तभी मेरे फुफेरे भाई का फोन आ गया। उसने बताया, “पता
है मेरी अम्माँ कितनी चालाक निकली? उन्होंने पिछले पाँच
सालों में सत्रह हजार रुपए जमा करके रखे थे। उनके पास 500 और 1000 के नोट भरे पड़े
हैं। आज निकाल कर दिया। मैंने और तुम्हारी भाभी ने उन्हें खूब बुरा भला कहा।“
दरअसल मेरे फूफा को गुजरे हुए कोई दस साल बीत चुके हैं।
उनके मरने के बाद उनके पेंशन की आधी राशि बुआ को मिलती है। लेकिन मेरा फुफेरा भाई
सारे पैसे हड़प लेता है और उन्हें 500 या 1000 रुपये कभी कभार पकड़ा देता है। मैं तो
यह सोचकर चिंता में पड़ गया कि मेरी बुआ की मानसिक स्थिति इस समय कैसी होगी।
अगले दिन सुबह सुबह जब कामवाली आई तो वह बहुत चिंता में लग
रही थी। वह मेरी बीबी से कह रही थी, “दीदी, अभी कल परसों
ही सब लोगों ने मुझे पगार दिये थे। सारे नोट 500 या 1000 के हैं। मेरे पास बारह हजार
रुपए हैं। मैने अपनी बेटी की शादी के लिये पचास हजार रुपए जमा करके रखे हैं। अब
उनका मैं क्या करूँगी? मेरा तो कोई खाता भी नहीं है।“
मुझे मेरे पैसों की चिंता अधिक नहीं थी। हाँ एक चिंता हो
रही थी कि पता नहीं अपने नोटों को बदलवाने के लिए बैंक में कितने घंटे लाइन में
खड़ा होना पड़ेगा और कितने दिन रोज जाकर लाइन लगना पड़ेगा। अभी अभी त्योहारों की
छुट्टियाँ समाप्त हुई हैं इसलिए कंपनी से छुट्टी लेना भी मुश्किल होगा। मुझे अपनी
काम वाली के लिये चिंता हो रही थी। वह बेचारी यदि बैंक में लाइन लगने के लिए
छुट्टी लेगी तो ज्यादातर लोग उसकी पगार काट लेंगे। मेरा धन अब उसके धन से अधिक
सफेद लगने लगा था। मुझे ‘सुपर रिन की सफेदी की चमकार’ याद आने लगी।
मैं यह सोच ही रहा था कि धनबाद वाले मौसा जी का फोन आया।
मौसा जी ने बहुत दुख भरा समाचार सुनाया। मौसा जी ने कहा, “तुम्हें
बताया था न कि अगले महीने गुड्डो की शादी की डेट रखी थी। अभी एक सप्ताह पहले लड़के
वालों को सात लाख रुपए बतौर एडवांस दिया था। आज ही उनका फोन आया था। कह रहे थे कि
उन पैसों को वापस ले लूँ और बदले में 100 के नोट की व्यवस्था करूँ। जब मैने अपनी
असमर्थता जताई तो कहने लगे कि मैं कहीं और रिश्ते की बात करने के लिए स्वतंत्र
हूँ। बड़ी मुश्किल से तो गुड्डो की शादी तय की थी। अब तो मेरी आँखों के आगे अंधेरा
सा छा गया है। समझ में नहीं आ रहा कि क्या करूँ।“