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Tuesday, November 8, 2016

सन 2116 में छठ पूजा

गप्पू के दादाजी आज बहुत जोश में लग रहे थे। उन्हें छठ पूजा के लिए बाजार जो जाना था। गप्पू और उसकी मम्मी भी बहुत खुश थीं क्योंकि छठ पूजा के अवसर पर भारत में हजारों ऑनलाइन शॉपिंग पोर्टल से हर चीज पर जबरदस्त छूट जो मिल रही थी। गप्पू की मम्मी को लेटेस्ट डिजाइन की ड्रेसेज खरीदनी थी। हालांकि अभी अभी धनतेरस के अवसर पर उन्होंने ढ़ेर सारे गहने खरीदे थे लेकिन सैंकड़ों ऑनलाइन टीवी चैनल पर चल रहे विज्ञापनों और छठ स्पेशल प्रोग्राम का उनपर इतना गहरा असर हुआ था कि वे ऑनलाइन शॉपिंग का मोह छोड़ नहीं पा रही थीं। उधर गप्पू को एनवायरनमेंट फ्रेंडली पटाखे खरीदने थे। ये नये जमाने के पटाखे थे जिनमें वह सब कुछ होता था जो पुराने जमाने के पटाखों में होता था लेकिन इन नये जमाने के पटाखों से प्रदूषण नहीं होता था। इन पटाखों का आविष्कार पुराने जमाने में ही हो चुका था। हिंदू धर्म के नये रखवालों का कहना था कि इन पटाखों की खोज आर्यभट्ट जैसे महान वैज्ञानिक ने की थी जिनका जन्म हजारों साल पहले हुआ था। लेकिन मुगलों और अंग्रेजों के प्रभाव में भारत की यह विद्या बहुत वर्षों तक छुपी हुई रही। वह तो भला हो उस राष्ट्रवादी नेता का जिसने इक्कीसवीं सदी में भारत के खोये हुए ज्ञान को जनमानस के पटल पर वापस लाकर इतिहास रच दिया। लेकिन जबतक इन पटाखों का उत्पादन भारत में शुरु हुआ तब तक शायद बहुत देर हो चुकी थी। भारत में प्रदूषण इतना बढ़ चुका था कि राजधानी दिल्ली समेत भारत के हर शहर और हर गाँव में धुंध के बादल हमेशा के लिए छाये रहते थे।

दरअसल ये धुंध के बादल नहीं थे बल्कि धुँए और पीएम 2.5 नामक पदार्थों की वजह से धुंध जैसे दिखते थे। चूँकि यह धुंध जैसी चीज लगभग सौ वर्षों से छाई हुई थी इसलिए भारत के अलावा दुनिया के सभी देशों में सूरज या चांद कभी नजर ही नहीं आता था। बहरहाल, छठ पूजा की खरीददारी के बाद घर में पकवानों के बनने का सिलसिला शुरु हुआ। एक बार मम्मी ने सलाह दी कि हल्दीराम से रेडीमेड पकवान मंगवा लिये जाएँ। लेकिन दादी ठहरीं पक्की परंपरावादी सो उन्होंने अपना वीटो लगा दिया और पकवान घर में ही बनने लगे। इससे मम्मी थोड़ी निराश हुईं क्योंकि हल्दीराम की तरफ से एक से एक ऑफर दिये जा रहे थे। छठ पूजा के पहले दिन शाम में डूबते सूर्य को अर्घ्य देना था। पूरी हाउसिंग सोसाइटी के लोग स्विमिंग पूल के पास इकट्ठे हुए। अब यमुना और हिंडन नदी इतनी सूख चुकी थी कि उसमें नोएडा और गाजियाबाद डेवलपमेंट अथीरिटी ने कार रेस के लिये बकायदा रेसिंग ट्रैक बनवा दी थी। सूखी नदी के दोनों किनारों पर स्टेडियम की तर्ज पर लोगों के बैठने के लिए सीटें भी बन चुकी थीं। इसलिए अब सभी लोग या तो स्विमिंग पूल में छठ करते थे या फिर प्लास्टिक के टब में या फिर सीमेंट की टंकी में। स्विमिंग पूल के चारों ओर रंगबिरंगी लाइट लगी थी। सोसाइटी में रहने वाले सारे बिहारी परिवार स्विमिंग पूल के चारों ओर पूजा के साजो सामान लेकर जमा हो चुके थे। जो लोग बिहारी नहीं थे वे दर्शकों के लिए लगी कुर्सियों पर विराजमान थे। एक स्थानीय नेताजी छठ पूजा की औपचारिक शुरुआत करने के लिए फीता भी काटने आये थे। अब उनके पास और कोई चारा नहीं था क्योंकि इस सोसाइटी में बिहारियों का वोट बहुत ज्यादा था। प्रधानमंत्री ने भी उस सोसाइटी तथा देश के कोने कोने में रहने वाले बिहारियों को ट्वीट करके छठ की शुभकामनाएँ दीं।

उसके बाद छठ पूजा का मुख्य भाग यानि डूबते सूर्य को अर्घ्य देने की बारी आई। लेकिन घने धुंध के कारण सूर्य को देख पाना संभव नहीं था। लेकिन इससे किसी के माथे पर कोई शिकन नहीं आई क्योंकि वहाँ मौजूद किसी ने भी आज तक सूर्य को देखा ही नहीं था। लोग तो बस अंधेरे उजाले के अंदाजे से यह गेस कर लेते थे कि कब सूर्योदय हुआ और कब सूर्यास्त हुआ। गप्पू की दादी ने भी वही किया। गप्पू उनको सहारा देकर स्विमिंग पूल में ले गया। दादी काफी देर तक पश्चिम दिशा की ओर मुँह करके काल्पनिक सूर्य को प्रणाम करती रहीं। इस बीच लाउडस्पीकर पर शारदा सिन्हा के छठ के गाने भी बज रहे थे। जब दादी को लगा कि अंधेरा बढ़ता जा रहा है तो उन्होंने बाँस के सूपों में रखे पकवानों और फलों से डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया। पश्चिम में डूबते सूर्य की कोई वैसी लाली नहीं दिखाई पड़ रही थी जैसी कि पुराने जमाने की पेंटिंग में दिखाई जाती थी। आकाश में यदि कुछ दिख रहा था तो स्याह रंग के धुंध के बादल जो और भी गहरे रंग के होते जा रहे थे और आने वाली रात की ओर इशारा कर रहे थे।

अगले दिन उसी तरह से सुबह सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देने की रस्म निभाई गई। उसके बाद सोसाइटी के लोगों में छठ का प्रसाद बाँटने के बाद गप्पू अपने परिवार के साथ अपने फ्लैट में आ गया। जब वे लोग प्रसाद खा रहे थे तो उसके दादा जी ने कहा, “जानते हो बेटा गप्पू, मेरे पिताजी के जमाने में लोग सही में उगते और डूबते सूर्य को देख पाते थे? मेरी दादी ने एक बार बताया था कि उन्होंने असली सूर्य को अर्घ्य दिया था।“
उनकी बात सुनकर गप्पू जोर से हँसा और बोला, “क्यों डींगें मार रहे हैं दादाजी। मैने अपनी साइंस की किताब में पढ़ा है कि इस यूनिवर्स में सूर्य और चांद जैसे खरबों सेलेस्टियल बॉडी हैं लेकिन उन्हें केवल उन शक्तिशाली टेलिस्कोप से ही देखा जा सकता है जो पृथ्वी के वायुमंडल से लाखों किमी दूर हैं। मैने नासा की वेबसाइट पर उनकी फोटो जरूर देखी है। लेकिन यह साइंटिफिकली प्रूव हो चुका है कि सूर्य को धरती पर से देखने वाला इंसान अब जिंदा नहीं बचा है। मेरी टीचर तो कहती हैं कि किसी ने अगर सूर्य को वाकई देख लिया तो उसकी आँखों की रोशनी सदा के लिए चली जायेगी।“

दादी भी उन दोनों की बातें सुन रही थीं। उन्होंने कहा, “अरे नहीं बेटा, मैने तो करवा चौथ के अवसर पर चाँद को भी देखा था। यह तब की बात है जब मैं छोटी बच्ची थी। मेरी माँ ने करवा चौथ का व्रत रखा था। चाँद बहुत ही सुंदर दिखता था, बिल्कुल सफेद|”

गप्पू फिर से हँसा और बोला, “क्या बात करती हो दादी। चाँद की फोटो भी मैने देखी है। वह तो बिल्कुल धूसर रंग का बेजान उपग्रह लगता है। सफेद कैसे दिखता था?”


गप्पू ने आगे कहा, “आप लोग तो मेरी साइंस की बुक और टीचर दोनों को झुठला रहे हैं। दादी, लगता है कि दो दिनों के उपवास के कारण आपकी मति मारी गई है।“ 

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