“क्या हुआ? ननकउ सबेरे से भन्ना क्यों रहे हैं?” शर्मा
जी ने जबरदस्त ढंग से मर्दाना खखार करते हुए पूछा।
चौके में से छलनी और कड़ाही के टकराने की तालबद्ध धुन के बीच
से शर्माइन की आवाज आई, “अरे कुछ नहीं, जब से
पता चला है कि उनको हम अपने साथ मिश्रा जी के यहाँ डिनर पर नहीं ले जा रहे हैं तभी
से भुनभुना रहे हैं। कहते हैं बुखार भी है आज काम पर नहीं जाएँगे।“
शर्मा जी ठठाकर हँसे और कहा, “उमर हो गई है और अब तक समझ
नहीं आई। मॉडर्न बनते हैं। अरे हमारे जमाने में तो लड़के और लड़की एक दूसरे का चेहरा
तक नहीं देखते थे। अब तो शगुन हुआ नहीं कि चक्कर में रहते हैं कि रोमांस शुरु कर दें।
अरे मुझे भी पता है कि रोज रात को बारह एक बजे तक मोबाइल से चिपके क्यों रहते हैं।
ठीक है, बदले जमाने में इतना तो चलता है। लेकिन शादी से पहले
लड़के को लड़की वाले के यहाँ जाना कहाँ शोभा देता है।“
शर्माइन तब तक चौके से बाहर आ गईं और शर्मा जी की बगल में बैठ
गईं। वो कहने लगीं, “अजी नाराज क्यों होते हो। जवान लड़का है। मैने समझा दिया है। जाने
की जिद नहीं करेगा। आज बुखार के बहाने छुट्टी पर है। मैने रात का खाना बनाकर रख दिया
है।“
शर्मा जी ने कहा, “हाँ आने में हमें देर तो हो ही जाएगी।“
शाम में शर्मा जी और शर्माइन सज धजकर तैयार हो गये। शर्मा जी
ने कत्थई रंग का कुर्ता पहना जिसपर कशीदाकारी की हुई थी। शर्माइन ने अपनी पुरानी बनारसी
साड़ी निकाली जो उनकी शादी में मिली थी। बालों की सफेदी छुपाने के लिए काली मेंहदी का
दो पैकेट इस्तेमाल किया था। चेहरे पर से उम्र छिपाने के लिए मेकअप की मोटी परत चढ़ा
ली थी। तय समय पर उनके दरवाजे के बाहर ओला कैब आकर लग गई। उधर ननकउ इतना नाराज था कि
उन्हें बाहर दरवाजे तक छोड़ने भी नहीं आया।
लगभग पैंतालीस मिनट की टैक्सी यात्रा के बाद वे मिश्रा जी के
घर के पास पहुँचे। टैक्सी वाले का बिल चुकता करने के बाद शर्मा जी पास की ही एक मिठाई
की दुकान में गये जिसके बोर्ड पर ‘बीकानेर’ लिखा था। एक किलो
काजू कतली के लिए सात सौ रुपए देते वक्त शर्मा जी के हाथ काँप रहे थे। उन्हें देखकर
शर्माइन ने चुटकी ली, “अजी इतने नरभसा क्यों रहे हैं। लड़की वालों
से मोटी रकम तो तिलक में मिलने ही वाली है। पहले कुछ इंवेस्ट तो करना पड़ता है।“
जवाब में शर्मा जी कुछ न बोले, बस चेहरे
पर एक फीकी मुसकान आ गई। मिठाई लेने के बाद शर्मा जी और शर्माइन अपने मेजबान के घर
पहुँचे। मिश्रा जी और मिश्राइन ने बड़ी गर्मजोशी से उनका स्वागत किया। शर्मा जी और शर्माइन
के सोफे पर विराजमान होते ही उनके सामने कोल्ड ड्रिंक से भरे गिलास पेश किये गये जिनमें
आइस क्यूब रखे गये थे। कोल्ड ड्रिंक की चुस्की लेते हुए शर्मा जी ने ड्राइंग रूम का
मुआयना किया। लगता था जैसे सोफे पर आज ही खरीदा हुआ सोफा कवर डाला गया था। सामने की
दीवार पर एक बड़ी से पेंटिंग टंगी थी जिसपर शकुंतला पेट के बल लेटकर कमल के पत्ते पर
प्रेमपत्र लिख रही थी। शकुंतला के पीछे हिरण का एक छौना कुलाँचे मार रहा था। उन्हें
पेंटिंग निहारते देखकर मिश्राइन ने कहा, “इस पेंटिंग को मेरी
लाडो ने बनाया है। छ: महीने का कोर्स किया था पेंटिंग का। डिग्री के बाद हमने सोचा
कि लड़की है इसलिए सारे हुनर तो जानने ही चाहिए। फिर उसने डॉल मेकिंग, केक मेकिंग और कुकरी का कोर्स भी किया है।“
शर्मा जी ने खीसें निपोरते हुए कहा, “हें,
हें, याद है। मिश्रा जी जब शादी की बात करने गये
थे तभी बताया था।“
थोड़ी देर के बाद लाडो किसी दुल्हन की तरह सजधजकर आई। उसने हाथ
में चाय की ट्रे पकड़ रखी थी। ट्रे को टेबल पर रखने के बाद उसने शर्मा जी और शर्माइन
के पैर छुए और सामने पड़े दीवान पर बैठ गई। काफी देर तक इधर उधर की बातें करने के बाद
मिश्रा जी ने कहा, “आपकी आज्ञा हो तो खाना लगवा दिया जाये।“
शर्मा जी ने कहा, “हाँ, हाँ, देर हो जाने के बाद टैक्सी मिलने में परेशानी होती है।“
शर्मा जी और शर्माइन डाइनिंग टेबल के पास रखी कुर्सियों पर विराजमान
हो गये। टेबल पर चीनी मिट्टी के झक सफेद बरतन करीने से लगे हुए थे। उनपर बारीक डिजाइन
बने थे, फूलों और बेलों वाले। हर प्लेट की बाईं ओर एक छुरी और दाईं ओर एक काँटा रखा
गया था। प्लेट के सामने पेपर नैपकिन भी रखा गया था। खाने में चिकन बटर मसाला,
पराठे, मटर पनीर, पुलाव,
रायता और सलाद परोसा गया। शर्मा जी छुरी और काँटे से खाने की जद्दोजहद
में पसीने पसीने हुए जा रहे थे। शर्माइन ने छुरी काँटे की मौजूदगी को खारिज करते हुए
हाथ से ही खाना शुरु कर दिया। बगल वाली कुर्सियों पर मिश्रा जी और मिश्राइन बैठे हुए
थे। मिश्रा जी देश और विदेश की राजनीतिक और आर्थिक समस्याओं पर अपना ज्ञान बघार रहे
थे। लाडो और उसकी छोटी बहन बड़े ही लगन से चौके और डाइनिंग टेबल के बीच की स्प्रिंट
पूरी कर रही थीं। खाना इतने प्यार और आग्रह से परोसा जा रहा था कि शर्मा जी और शर्माइन
का पेट गले तक भर चुका था। उसके बाद अफगान पिस्ता फ्लेवर वाली आइसक्रीम को देखकर ना
चाहते हुए भी वे अपने आप को कटोरी भर आइसक्रीम खाने से रोक नहीं पाये।
जब वे खाना खाकर चलने को हुए तो मिश्राइन ने शर्माइन के हाथों
में प्लास्टिक का एक थैला थमाते हुए कहा, “कितना अच्छा होता यदि ननकउ भी आते। इसमें ननकउ
के लिए खाना रखा है। लाडो ने अपने हाथों से बड़े प्यार से बनाया है। ना मत कीजिएगा।“
लगभग बारह बजे रात में शर्मा जी और शर्माइन अपने घर पहुँचे।
ननकउ जगा ही हुआ था। शर्मा जी ने पूछा, “खाना खा लिया?”
ननकउ ने कहा, “हाँ, अम्मा ने पराठे
और सब्जी बनाये थे। चार पराठे खा लिए।“
शर्माइन ने कहा, “अरे, तुम्हारी होने वाली
सास ने तुम्हारे लिये खाना भेजा है। चलो, कल सुबह खा लेना।“
ननकउ ने अपना उतावलापन छिपाने की असफल कोशिश करते हुए कहा, “अरे नहीं,
कल बासी हो जायेगा। अभी खा लेता हूँ।“
फिर ननकउ ने बड़े चाव से उस स्वादिष्ट भोजन का आनंद लिया। उसे
खाते देखकर शर्मा जी ने कहा, “अरे फूँक फूँक कर खाओ नहीं तो मुँह जल जाएगा।
ऐसी भी कैसी बेचैनी। शादी के बाद तो लाडो के हाथ का खाना रोज मिलेगा।“
जब खाना खाकर ननकउ अपना मुँह धो रहा था तो शर्माइन ने पूछा, “अब बुखार
कैसा है तुम्हारा?”
ननकउ ने कहा, “अम्मा, अब बुखार बिलकुल
गायब हो चुका है। तुम चिंता मत करो।“
शर्मा जी ने कहा, “हाँ बेटा, अब तो तेरा
बुखार उतर ही चुका होगा।“