उस समय मेरा ट्रांसफर धनबाद
से बहराइच हुआ था। धनबाद में मैं केवल क्वालीफाइड डॉक्टर से मिला करता था और इसलिए अपनी सेल्स पिच में अंग्रेजी का इस्तेमाल
अधिक करता था। ठीक इसके उलट बहराइच उत्तर प्रदेश का एक छोटा सा शहर है जहाँ के मेडिकल
रिप्रेजेंटेटिव को झोला छाप डॉक्टर और बिएएमएस डॉक्टर से भी मिलना पड़ता है। बहराइच
में काम करने के लिए हिंदी का दुरुस्त ज्ञान होना जरूरी है। मुझे हिंदी में सही तरीके
से सेल्स पिच सिखाने के लिए रीजनल ट्रेनिंग मैंनेजर को जिम्मेदारी दी गई थी। वे एक
बुजुर्ग और अनुभवी सेल्स प्रोफेशनल थे जिनके कैरियर का ज्यादातर भाग पूर्वी उत्तर प्रदेश
के मार्केट में बीता था। एक बार हमलोग किसी छोटे से गाँव में काम करने गये थे। उस गाँव
में पहुँच कर हम एक केमिस्ट की दुकान पर सर्वे कर रहे थे। तभी किसी मैले कुचैले कागज
पर किसी डॉक्टर का पर्चा आया जिसपर दवा का नाम उर्दू में लिखा हुआ था। केमिस्ट से पता
चला कि उसपर टेरामाइसिन लिखा हुआ था। केमिस्ट ने बताया कि कोई डॉक्टर अली थे जिन्होंने
वह पर्चा लिखा था। उसने ये भी बताया कि वे फाइजर की दवाएँ खूब लिखा करते थे।
ऐसा सुनकर
मैं और मेरे रीजनल ट्रेनिंग मैनेजर उस डॉक्टर से मिलने चल दिए। केमिस्ट ने बताया था
कि वह डॉक्टर बाजार में एक पीपल के पेड़ के पास वाले टीले पर क्लिनिक चलाते थे।
मैं अपनी मोटरसाइकिल चला रहा था और पिछली सीट पर मैनेजर साहब
बैठे हुए थे। मैंने बड़ी स्टाइल से मोटरसाइकिल को उस टीले पर चढ़ा दी। हमारे सामने एक
खस्ताहाल झोपड़ी सी दिखी जिसमें कुछ देहाती लोग बैठे हुए थे। झोपड़ी के बाहर एक अधेड़
उम्र का आदमी चेक वाली लुंगी और मटमैली बनियान पहने खड़ा था। मैंने अपनी बाइक पर बैठे
बैठे ही उस आदमी से बड़े कड़क अंदाज में पूछा, “ओ भैया, ये अली डॉक्टर
कहाँ मिलेंगे।“
वह आदमी थोड़ा सकपकाते हुए बोला, “डॉक्टर
तो नहीं हैं, किसी दूसरे गाँव गये हैं। एकाध घंटे बाद आएँगे।“
मैंने अपने मैनेजर से वापस चलने को कहा तो उन्होंने मुझे इशारे
से चुप होने को कहा। फिर वे बाइक से उतर कर उस आदमी के पास पहुँचे और बोला, “हम लोग
दवा कंपनी फाइजर से आए हैं। आप कहें तो थोड़ी देर आपसे ही बात कर लें।“
उस आदमी ने हामी भरी और फिर हम उसके पीछे उसकी झोपड़ीनुमा क्लिनिक
के अंदर चले गए। फिर मेरे ट्रेनिंग मैनेजर ने मुझे उस आदमी को डिटेलिंग करने के लिए
इशारा किया। मैं मन ही मन भन्ना रहा था क्योंकि मुझे उस देहाती आदमी को डिटेलिंग करना
अच्छा नहीं लग रहा था। फिर थोड़ी देर तक मैनेजर ने उसे ठेठ हिंदी में कुछ दवाओं के बारे
में बताया। उनके कहने पर मुझे उस आदमी को एक गिफ्ट भी देना पड़ा। अंत में पता चला कि
वह आदमी और कोई नहीं बल्कि डॉक्टर अली था।
वहाँ से निकलने के बाद मैंने अपने ट्रेनिंग मैनेजर से पूछा, “मुझे
दो बातें समझ में नहीं आई। इसने पहले ये क्यों कहा कि ये डॉक्टर नहीं है? फिर आपने कैसे पकड़ लिया कि यही असली डॉक्टर है?”
इस पर मेरे मैनेजर ने जो जवाब दिया उससे मैं उनके अनुभव का कायल
हो गया। उस दिन मेरी आँखें खुल गईं कि किसी की पोशाक देखकर ही किसी के व्यक्तित्व का
अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। उन्होंने कहा, “जब उसने देखा कि दो लोग पैंट शर्ट और टाई में
इतनी हेकड़ी से उसके टीले के ऊपर पहुँचकर सवाल पूछ रहे हैं तो वो डर गया होगा कि कहीं
कोई सरकारी अधिकारी छापा मारने तो नहीं आ गया। मैंने इस तरह के बाजारों में वर्षों
काम किया है इसलिए उसे देखते ही मैं ताड़ गया कि यही वह आदमी होगा जिसे हम तलाश रहे
थे। देखा नहीं वह कितने इत्मिनान से उस टीले पर टहल रहा था।“
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