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Friday, November 11, 2016

छुट्टा घटता गया कारवां बनता गया

आपने वह मशहूर शेर जरूर सुना होगा, “हम तो अकेले चले थे मंजिले जानिब, लोग आते गये कारवां बनता गया।“ इस शेर का भावार्थ जो मेरी समझ में आता है वह ये है कि यदि आप कोई अच्छा काम करते हैं तो लोग अपने आप ही आपके पीछे चले आते हैं।
लेकिन क्यू के इस युग में इस शेर का अर्थ बेमानी साबित होता है। आप जहाँ भी जाएँ आपको कतार में खड़े होना पड़ता है। स्कूल में एडमिशन से लेकर फिल्म के टिकट लेने तक और यहाँ तक कि शमशान तक भी लाइन में ही लगना पड़ता है। आजकल तो कई बार मोबाइल पर कॉल करने में भी पुराने जमाने के एसटीडी कॉल का संदेश “आप कतार में हैं” सुनाई पड़ता है। जरूरी नहीं कि हर बार आप कोई अच्छा काम ही कर रहे हों या आप ही कतार में सबसे आगे खड़े हों। किसी मशहूर कवि ने क्यू युग पर लिखी एक कविता में कहा भी था कि जब वह आत्महत्या करने के लिए कुतुब मीनार से कूदने ही वाला था तो पीछे वाले ने कहा कि भाई साहब लाइन से आइए।

अभी भारत में जिसे देखो वही कतार में लगने दौड़ा चला जा रहा है। ऐसा इसलिए हुआ है कि हर किसी के पास छुट्टे का अकाल पड़ गया है। छुट्टे का क्या रुपए का ही अकाल पड़ गया है। अब तो कोई भी यह कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाता होगा, “कीप द चेंज”। बेचारे वेटर या टैक्सी वाले अब इस शब्द को सुनने के लिए तरस जाते होंगे। बल्कि सोशल मीडिया पर तो एक टैक्सी वाले की इसलिए बड़ाई हो रही है कि उसने पैसेंजर से कहा, “कीप द चेंज”।

बहरहाल रुपए चेंज करवाने के लिए क्यू में किस तरह लगते हैं इसका पूरा विवरण टीवी वाले पूरे दिन दे रहे हैं। हालत इतनी खराब हो गई कि देश के अघोषित युवराज भी कल पूरे लाम लिफाफे के साथ क्यू में लगे नजर आये। क्यू में लगने के लिए कितनी तैयारी करनी पड़ती है यह तो शायद राहुल गांधी या मोदी जी की समझ में नहीं आयेगा। उनके लिए तो कई लोग आसानी से क्यू में आगे लगने की जगह दे देंगे। मैं तो सामजिक व्यवस्था के पायदान के निकट हूँ इसलिए मेरी वैसी किस्मत कहाँ। मैं जिस टावर में रहता हूँ वहाँ की बालकनी से सड़क के सामने वाला बैंक दिखाई नहीं देता है। इसलिए मैने अपने एक मित्र को फोन किया जो आगे वाले टावर में रहता है। उसकी बालकनी से सामने वाला बैंक दिखाई देता है। उसने बताया कि वहाँ पर सुबह से ही लाइन लगना शुरु हो गई थी। उसने बताया कि कोई दो सौ आदमी लाइन में होंगे। अभी सुबह के आठ ही बजे थे इसलिए मैने जल्दी से जाकर लाइन में लगना ठीक समझा। मेरी कारवां शुरु करने की महात्वाकांछा धरी रह गई। मैने सभी पहचान पत्रों की फोटो कॉपी और ओरिजिनल एक थैले में डाली और चल पड़ा बैंक की ओर।

जैसे ही मैं अपने दरवाजे से बाहर निकलने को हुआ तो मेरी बीबी ने पूछा, “अरे चाय तो पीते जाओ। नाश्ते में क्या बनाऊँ?”

मैने कहा, “पास में बेकार नोट है और तुम्हें चाय की पड़ी है। मैं तुम्हारा आईडी कार्ड भी ले जा रहा हूँ। नहा धोकर तुम भी आ जाना। साथ में अल्मुनियम फॉयल में ब्रेड जैम लपेट लेना और हो सके तो एक फ्लास्क में चाय ले आना। दोनों लोग रहेंगे तो आठ हजार तो चेंज हो ही जायेगा। उन पैसों से एक महीना चला लेंगे।“

मेरी बीबी ने कहा, “हाँ तब तक उम्मीद है कि बड़े लोगों का पेट भर चुका होगा और फिर आम लोगों के लिए बैंकों में कैश की कमी नहीं होगी।“

लिफ्ट से नीचे उतरने के बाद मैंने बैंक की तरफ दौड़ लगा दी। सोचा इसी बहाने सुबह की जॉगिंग भी हो जायेगी। जब तक मैं पहुँचा तब तक कतार में कोई पाँच सौ आदमी पहले से लगे हुए थे। महिलाओं की लाइन अलग लगी थी। उधर से कोलाहल भी अधिक हो रहा था और आगे बैंक के अधखुले ग्रिल से अंदर घुसने के लिए धक्कामुक्की भी हो रही थी। बैंक के बाहर जो एटीएम लगा था उसके बाहर सन्नाटा था। यहाँ पर रहने वाले लोगों को पता है कि यह एटीएम अच्छे दिनों में भी शायद ही काम करता है इसलिए परेशानी के दिनों में इसके काम करने का कोई मतलब ही नहीं था। मेरी लाइन में मुझसे तीन चार नंबर आगे एक जवान आदमी व्हीलचेयर पर बैठा था। जवान होने के कारण वह बुजुर्गों वाली लाइन में नहीं जा सकता था। बैंक वालों के पास इतनी फुरसत कहाँ कि किसी दिव्यांग” के बारे में सोचते। फिर बैंक के अधखुले ग्रिल से वह अंदर कैसे जाता।

महिलाओं वाली लाइन में मुझे कई परिचित पड़ोसनें दिखाई पड़ीं। उनमें से एक से मैने पूछा, “भाभी जी, अगर कोई प्रॉब्लम न हो तो मेरी बीबी के लिए अपने पीछे वाली जगह बुक कर देंगी?”

पड़ोसन ने जवाब में अपना खिला चेहरा दिखाया और कहा, “मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है लेकिन मेरे पीछे जो महिलाएँ खड़ी हैं वे तो मुझे मार ही डालेंगी।“

लोगों को पता था कि उनका नम्बर आने में घंटों लग जाएँगे। इसलिए टाइम पास करने के लिए सब लोग इस ज्वलंत मुद्दे पर अपने अपने विचार प्रकट कर रहे थे। मेरे आगे खड़े सज्जन ने कहा, “भाई साहब, मान गये प्रधानमंत्री को। क्या मास्टरस्ट्रोक है। इससे कालाबाजारियों की हवा निकल जायेगी।“

वे सज्जन पास में ही एक दवा की दुकान चलाते हैं। मैंने उनसे कहा, “अच्छा, और आप जो कल पाँच सौ से कम की दवा देने को मना कर रहे थे वो कालाबाजारी नहीं तो और क्या थी।“

उन सज्जन ने जवाब दिया, “भाई साहब मैने जब किसी भी सामान का प्रिंटेड रेट से अधिक नहीं लिया तो कालाबाजारी कैसे हुई। अब आप बताइए कि मैं छुट्टे कहाँ से लाऊँ? आज से सब को उधार दे रहा हूँ सो अलग।

मैने पूछा, “जहाँ तक इतने सालों से मैने आपको देखा है तो मुझे तो आप केजरीवाल के सपोर्टर लगते हैं। आज पाला कैसे बदल लिया।“

उन सज्जन ने जवाब दिया, “भाई साहब, अब तो डर लगने लगा है। इस भीड़ में अगर बीजेपी के खिलाफ कुछ कहा तो पब्लिक कूट देगी। जिधर की हवा चले बस उधर ही मुँह कर लेने में भलाई है।“

लगभग एक घंटे के बाद मेरी बीबी भी ब्रेड जैम और चाय लेकर आ गई। मेरे हाथ में चाय और नाश्ता पकड़ाकर वह महिलाओं वाली लाइन में खड़ी हो गई। उसका नंबर मुझसे कम से कम पचास साठ नंबर पीछे था। मुझे लग रहा था कि आज पूरे दिन उपवास करना पड़ेगा। एक दो कचौड़ी सब्जी वाले वहाँ पर इस उम्मीद में आये कि कुछ बिक्री हो जाये। लेकिन छुट्टे की कमी के कारण बेचारे थोड़ी देर इंतजार करने के बाद मुँह लटका कर चले गये।


मैने अपने बेटे को फोन लगाया और बोला, “बारह बजे के आसपास यहाँ आ जाना और लाइन में मेरी जगह खड़े हो जाना। मैं घर जाकर मैगी खा लूँगा और तुम्हारी मम्मी के लिए भी बना लूँगा। फिर मेरे आने के बाद तुम वापस चले जाना।“ 

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