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Saturday, September 24, 2016

राजा की बहादुरी

राजा वही बनता है जो बहादुर और दिलेर होता है। इतिहास गवाह है कि कई राजा अपनी बहादुरी के कारण ही अपना साम्राज्य बढ़ा पाये और राजा से महाराज हो गये। कुछ राजा तो इतने बहादुर थे कि उन्होंने बड़ा सा एम्पायर खड़ा कर दिया और सम्राट बन गये। इन्हें सुलतान या शहंशाह भी कहा जाता था।

उन्हीं बहादुर राजाओं के नक्शेकदम पर चलने के चक्कर में चम्पकवन का राजा शेर सिंह भी बहुत बहादुर था। उसकी दिली ख्वाहिश थी कि अपने राज्य का इलाका बढ़ाये। लेकिन इसके लिये उसे सबसे पहले अपने पड़ोस में स्थित नंदनवन पर कब्जा करने की जरूरत थी। लेकिन नंदनवन का राजा बब्बर शेर भी कम नहीं था। वह शेर सिंह से यदि बीस नहीं था तो उन्नीस भी नहीं था। वह भी बहुत महात्वाकांछी था और अपना इलाका बढ़ाना चाहता था।

बढ़ते हुए समय की मांग के कारण दोनों राजाओं की मुलाकात अक्सर अंतर्वनीय मंचों पर हो जाया करती थी जिसमें विश्व के लगभग हर मुख्य वनों के राजा शरीक होते थे। वैसे मंचों पर दोनों मिलते तो थे लेकिन बड़े अकड़ के साथ। एक बार ऐसी ही किसी मीटिंग में दोनों राजाओं; यानि शेर सिंह और बब्बर शेर में कुछ बातों को लेकर बहस हो गई। दोनों एक दूसरे पर यह आरोप लगा रहे थे कि दूसरे वन के जानवर चोरी छुपे उनके वन में आते हैं। वे एक दूसरे पर यह आरोप भी लगा रहे थे कि इससे स्थानीय जानवरों में बुरी आदतें फैलने लगी हैं जो अच्छी बात नहीं है। उसके बाद मामला तुम्हें देख लूँगा, तुम्हें देख लूँगापर छूटा।

मीटिंग से जब शेर सिंह वापस लौटे तो उनके सिपहसलाहकारों ने इस बात को बड़ी गंभीरता से लिया। मोटू गैंडे ने कहा, “महाराज, उसकी ये मजाल जो आपको आँखे दिखा दे। आप बस आदेश दें तो मैं अकेला ही उसकी किले जैसी मांद को ढ़ाह कर आ जाऊँगा।“

ऐसा सुनकर भोलू भालू ने कहा, “महाराज, सीधा आक्रमण करना ठीक नहीं होगा। आप आदेश करें तो मैं मधुमक्खियों की पूरी फौज भेज दूँ। इस तरह से हमारी फौज का कम से कम नुकसान होगा।“
तभी चतुर लोमड़ी बोल उठी, “अरे जंग में तब तक मजा नहीं आता जब खून न बहे। आपके एक ही इशारे पर लोमड़ियों का पूरा दल अपनी जान दे देगा।“

मंटू हाथी अपनी गंभीर वाणी में बोला, “मेरी सलाह मानें तो पहले इस मुद्दे को बातचीत से हल करने की कोशिश करनी चाहिए। इसीसे दोनों जंगलों के जानवरों में शांति और प्रेम रहेगा।“

लेकिन लगता है कि शेर सिंह अपनी बेइज्जती से कुछ ज्यादा ही तिलमिलाये हुए थे। साथ में उन्हें ये भी लगता था कि कहीं प्रजा ने उन्हें डरपोक समझ लिया तो फिर ऐसी तैसी हो जायेगी। सो शेर सिंह ने फैसला किया कि बब्बर शेर को आमने सामने की लड़ाई की चुनौती दी जाये।

उसके बाद हरियल तोते को दूत बनाकर बब्बर शेर के पास भेजा गया। बब्बर शेर तो जैसे उसका ही इंतजार कर रहा था। उसे देखते ही वह आग बबूला हो गया और बोला, “जाओ और अपने राजा से कह दो कि यहाँ किसी ने चूड़ियाँ नहीं पहन रखी हैं। अबकी बार तो मैं चम्पकवन को नक्शे से हि मिटा दूँगा।“

उसके बाद पहले से तय तारीख यानि जिस दिन पूरा चांद निकलता है उस दिन दोनों राजा लड़ाई के लिए चल पड़े। चम्पकवन और नंदनवन के बीच एक नदी पड़ती थी। उस नदी पर एक पुराना पुल था जिसे इंसानों ने बनवाया था। लेकिन अब उस पुल को कोई भी इंसान इस्तेमाल नहीं करता था। चम्पकवन की ओर से शेर सिंह अपने दलबल के साथ पुल के पास पहुँचा। आगे-आगे शेर सिंह चल रहा था और उसके पीछे उसके चुनिंदा सिपहसलाहकार चल रहे थे। उन सबके पीछे चम्पकवन के जानवर चल रहे थे। नदी के किनारे पहुँचते ही सबने एक सुर में नारा लगाया, “चम्पकवन जिंदाबाद!”
उधर से बब्बर शेर भी आ पहुँचा। बब्बर शेर के पीछे उसके सिपहसलाहकार चल रहे थे। उनके पीछे नंदनवन के सारे जानवर भी थे। नदी के किनारे पहुँचते ही सबने एक सुर में नारा लगाया, “नंदनवन जिंदाबाद!”

अब इधर से शेर सिंह जोर से दहाड़ा, “आज तो खून की नदियाँ बह जाएँगी।“

उधर से बब्बर शेर जोर से दहाड़ा, “आज तो लाशें बिछ जाएँगी।“

इधर से शेर सिंह जोर से दहाड़ा, “आज कयामत आ जाएगी।“

उधर से बब्बर शेर जोर से दहाड़ा, “आज तो प्रलय हो जाएगा।“

उसके बाद इधर से शेर सिंह नपे कदमों से पुल से होकर चलने लगा। उधर से बब्बर शेर भी नपे कदमों से उसकी तरफ आने लगा। बीच-बीच में दोनों तरफ के जानवर जोर-जोर से नारे लगा रहे थे। थोड़ी देर के बाद शेर सिंह और बब्बर शेर पुल के ठीक बीच में आमने सामने थे। दोनों एक दूसरे को आँखें तरेर कर देख रहे थे। शेर सिंह ने एक भयानक दहाड़ लगाई। जवाब में बब्बर शेर ने उससे भी भयानक दहाड़ लगाई। फिर दोनों ने अपने आगे के पंजे उठाये और एक दूसरे से गुत्थमगुत्था हो गये। लेकिन दोनों एक दूसरे को टस से मस नहीं कर पा रहे थे। दोनों तरफ के जानवर सांस रोके उस दृश्य को देख रहे थे।

शेर सिंह ने कहा, “तुम्हारे अयालों से ठेठ मरदाना महक आ रही है।“

बब्बर शेर ने कहा, “तुम्हारे अयालों से भी ठेठ मरदाना महक आ रही है।“

शेर सिंह ने कहा, “लगता है नंदनवन में खाने को मोटे ताजे हिरण मिलते हैं तुम्हें।“

बब्बर शेर ने कहा, “लगता है चम्पकवन में खाने को मोटे ताजे भैंसे मिलते हैं तुम्हें।“

शेर सिंह ने नथुने फुफकारते हुए कहा, “आज की रात तुम्हारी आखिरी रात होगी। उम्मीद है कि अपनी शेरनी को अलविदा कह आये होगे।“

बब्बर शेर ने नथुने फुफकारते हुए कहा, “आज की रात तुम्हारी आखिरी रात होगी। उम्मीद है कि अपनी शेरनी से आखिरी बार गले मिलकर आये होगे।“

शेर सिंह ने कहा, “गजब का दम है तुम्हारी बाजुओं में।“

बब्बर शेर ने कहा, “गजब की ताकत है तुम्हारे पंजों में।“

शेर सिंह ने कहा, “मुझे बहुत बुरा लगेगा यदि तुम्हारे जैसे सच्चे शेर की हत्या कर दूँ।“

बब्बर शेर ने कहा, “मुझे भी बहुत बुरा लगेगा यदि मेरे हाथों एक बहादुर शेर का खून हो जाए।“

शेर सिंह ने कहा, “नंदनवन का इलाका तुम्हारा है।

बब्बर शेर ने कहा, “चम्पकवन का इलाका तुम्हारा है।“

शेर सिंह ने कहा, “फिर लड़ाई किस बात की है।“

बब्बर शेर ने कहा, “फिर लड़ाई किस बात की है।“

उसके बाद दोनों ने एक दूसरे को बड़े अदब से झुककर सलाम किया और वापस अपने अपने जंगलों की ओर लौट गये। दोनों तरफ के जानवरों ने जोर-जोर से नारे लगाने शुरु कर दिये। सबने राहत की सांस ली। उसके बाद दोनों जंगलों के कबूतर आसमान में ऊँचाई पर उड़ने लगे ताकि दूर दूर तक शांति का संदेश फैल सके।

(साभार: यह कहानी भगवतीचरण वर्मा की कहानी दो बांकेसे प्रेरित है।)


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