टेलीविजन पर एक रियालिटी शो
आ रहा था, “टैलेंट्स ऑफ इंडिया”. इस शो में भारत के कोने-कोने से प्रतियोगी आए थे। वे अपने
किसी खास हुनर का प्रदर्शन करते थे; इस उम्मीद में
कि वे रातोंरात स्टार बन जाएँगे। जजों के पैनल में एक से एक नामी गिरामी हस्तियाँ बैठी
थीं। हर प्रतियोगी के प्रदर्शन के बाद हर जज अपनी टीका टिप्पणी करता था और फिर उन टिप्पणियों
पर किराए पर आई भीड़ तालियाँ बजाती थी। प्रोग्राम की टीआरपी रेटिंग आसमान छू रही थी।
अच्छी टीआरपी के लिए इस बार चैनल वालों ने अनूठी तरकीब अपनाई थी। अब यदि कोई आदमी एसएमएस
के जरिये वोटिंग करता तो उसके मोबाइल में से बैलेंस कटने की बजाय बैलेंस बढ़ जाता था।
जिसे देखो वही अपने मोबाइल के बैलेंस में तीन रुपये बढ़ाने के चक्कर में धराधर वोटिंग
कर रहा था। लेकिन एक नंबर से केवल एक ही वोट की परमिसन थी।
लगभग छ: महीने तक खिंचने के बाद यह शो अब अपने फाइनल राउंड में
आ चुका था। उस रात उस शो का ग्रांड फिनाले राउंड चल रहा था। उस राउंड तक केवल पाँच
प्रतियोगी ही पहुँचे थे। एक प्रतियोगी का टैलेंट था दूसरों को बदनाम करने में। एक प्रतियोगी
बिना रुके घंटों तक हँस सकता था और अनर्गल प्रलाप करने में माहिर था। वह अपने ही चुटकुलों
पर घंटों हँसता रहता था, चाहे उनपर कोई और हँसे या नहीं। एक प्रतियोगी
को बिजली के खंभों पर चढ़कर गैरकानूनी तरीके से कटिया फँसाने में महारत हासिल थी। वह
कानपुर से आया था और उसका एक घंटे में एक सौ कटिया फँसाने का रिकार्ड था। एक प्रतियोगी
ने पिछले दस सालों से मौन रहने का रिकार्ड बनाया था। उसने अपना बखान करवाने के लिए
अपने मुहल्ले की एक मौसी को साथ लाया था। पाँचवे प्रतियोगी के बारे में हम बाद में
बातें करेंगे।
पहले प्रतियोगी ने अपने साथ ट्रक भर कर फाइलें लाई थी। उन फाइलों
में उन मुकदमों के दस्तावेज थे जो उसने भारत के कई नामी गिरामी हस्तियों पर किए थे।
उन फाइलों की जाँच करने के लिए खासकर से एक रिटायर्ड जज को बुलाया गया था।
दूसरे प्रतियोगी ने अपने लतीफे सुनाना शुरु किया और हर पाँच
मिनट के लतीफे के बाद घंटों हँसता था। उसके परफॉर्मेंस में ही चार एपिसोड निकल गए।
तीसरे प्रतियोगी के लिए खास सेट तैयार किया गया था जिसपर बिजली
के खंभे लगे हुए थे। सीन को वास्तविकता देने के लिए तारों में 440 वोल्ट का करेंट भी
दौड़ रहा था। इस बार तो उस प्रतियोगी ने अपना पिछला रिकार्ड भी तोड़ दिया। फौरन दिल्ली
के सीएम का फोन आया जिन्होंने उसे तत्काल अपनी पार्टी में शामिल करने की बात कही।
चौथे प्रतियोगी के मुँह से कुछ उगलवाने के लिए तरह तरह के चुटकुले
सुनाए गये। फिर उसे भद्दी-भद्दी गालियाँ दी गईं। उसके बाद उसे बिजली के झटके भी दिये
गए। लेकिन उसने चूँ शब्द नहीं बोला।
हर एक परफॉर्मेंस के बाद जूरी के सदस्य अपनी एक्सपर्ट कमेंट्री
कर रहे थे। फिर उसके बाद पाँचवे प्रतियोगी की बारी आई। उसने अपने साथ कई प्रकार के
ढ़ोल लाए थे। कोई ढ़ोल मणिपुर के आदिवासियों का था तो कोई झारखंड से आया था। पंजाबी ढ़ोल
तो कभी कभी अपने आप बजने लगते थे। आखिर में उसने अफ्रीका के मसाईमारा प्रजातियों द्वारा
इस्तेमाल किया जाने वाला ढ़ोल बजाना शुरु किया। यह बड़ा ही आकर्षक ढ़ोल था। आकार में यह
काफी बड़ा था और इसपर रंग बिरंगी नक्काशी की गई थी। उस प्रतियोगी ने अपने ढ़ोल वादन से
सबको मंत्र मुग्ध कर दिया। वह बिना रुके सात दिन तक ढ़ोल बजाता रहा। जब एक ढ़ोल फट जाता
था तो वह किसी दूसरे ढ़ोल को बजाना शुरु कर देता था।
उसके अनोखे प्रदर्शन के बाद जजों की बारी आई। सभी जज ने अपनी
तरफ से उसकी भूरी भूरी प्रशंसा की। लेकिन उनमें से एक जज का कॉमेंट खास है जो नीचे
दिया गया है।
“वह बचपन से ही बहुत प्रतिभाशाली
था। उसे पता था किस इस जमाने में यदि आगे बढ़ना है तो अपना ढ़ोल बजाने आना चाहिए। लेकिन
यह प्रतिभा उसे विरासत में नहीं मिली थी। एक बार वह अपना ढ़ोल बजाने में नाकाम हो गया
था इसलिए उसे स्कूल से क्या अपने घर से भी निकाल दिया गया था। उसके बाद उसने दिन रात
एक करके अपना ढ़ोल बजाना सीखा। बड़ा होकर उसने किसी प्राइवेट कंपनी में सेल्स रिप्रेजेंटेटिव
की नौकरी पकड़ ली। उस नौकरी में अपने प्रोडक्ट को प्रोमोट करने की बजाय वह अपना ही ढ़ोल
बजाता रहता था। इसलिए एक साल के भीतर ही उसे नौकरी से निकाल दिया गया। फिर किसी सीनियर
की सलाह पर उसने राजनीति ज्वाइन कर ली। फिर क्या था, उसकी तो निकल पड़ी। उसने एक से एक धुरंधर राजनेताओं को चुनाव में पटखनी देनी शुरु
कर दी। दो तीन चुनाव बीतने के बाद वह जिस भी जगह से चुनाव लड़ने के लिए खड़ा होता, अन्य उम्मीदवार
अपने नाम वापस ले लेते। इस तरह से वह बिना लड़े ही चुनाव जीत जाता था। भारत के अधिकाँश
नेताओं के लिए वह एक बड़ा खतरा साबित होने लगा था। बड़ी मुश्किल से उसे किसी घोटाले में
फँसाकर जेल में डाल दिया गया। लेकिन जेल में भी उसने अपनी ढ़ोल बजाने की प्रतिभा दिखाई।
उससे तंग आकर जेल के अधिकारियों ने ऐसा केस बनाया की शीघ्र ही उसे जेल से हमेशा के
लिए रिहा कर दिया गया। आजकल उसे तब इस्तेमाल किया जाता है जब देश में समस्याओं की बाढ़
आ जाती है। चूँकि ऐसा अक्सर होता रहता है इसलिए वह शायद ही कभी खाली रहता है। अपनी
ढ़ोल बजाने की प्रतिभा के कारण वह आसानी से प्रजा का ध्यान हर ज्वलंत मुद्दों से भटका
लेता है। सुनने में आया है कि भारत सरकार उसके लिए एक नए मंत्रालय का गठन भी करने वाली
है जिसका नाम होगा, 'ढ़ोल मंत्रालय'।"
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