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Tuesday, November 9, 2021

ठकठक गैंग की चपत

 लुत्ती झा भोर से ही गरमाए हुए थे। अभी उनका गुस्सा घर की महरी पर इसलिए उतर रहा था कि वह समय से पहले आ गई थी। महरी जितने आराम से उनकी बातें सुन रही थी उससे साफ पता चलता था कि या तो उसने अपने कानों में रुई ठूंस रखी है या फिर उसे लुत्ती झा के गुस्से से जरा भी डर नहीं लगता है। वैसे उनके गुस्से से अब घर में किसी को डर नहीं लगता है, क्योंकि हर किसी को पता है कि वह कभी भी बिलावजह रौद्र रूप धारण कर सकते हैं। जब बाद में कोई इस बात का ध्यान दिलाता है तो लुत्ती झा ब्लड प्रेशर का मरीज होने के नाते सहानुभूति वोट लेकर जीतने की पूरी कोशिश करते हैं।

अभी पिछले दो तीन दिनों से उन्हें अपना गुस्सा और अपना महत्व दिखाने का पूरा मौका मिल रहा था जो कि किसी भी रिटायर्ड आदमी के लिए यदा कदा ही आता है। दिवाली बीत चुकी थी और अब भाई दूज की समाप्ति के बाद छठ पूजा की तैयारी का समय था। दिवाली में सारा फूटेज घर के बच्चे खा जाते हैं और भाई दूज के अधिकतर रस्मो-रिवाज में महिलाओं का ही काम होता है। छठ का व्रत अक्सर बुजुर्ग महिलाएँ करती हैं और बुजुर्ग पुरुषों से अपेक्षा की जाती है कि तैयारी में अपने अनुभव का पूरा पूरा इस्तेमाल करें।

लुत्ती झा की धर्मपत्नी पार्वती झा पिछले पचासेक वर्षों से छठ पूजा कर रही हैं। अब जब कि उनके पोते पोती और नाती नातिन माइनर से मेजर हो चुके हैं, बहू-बेटियाँ अधेड़ावस्था में प्रवेश कर चुकी हैं और खुद पार्वती झा की हड्डियों के एक एक जोड़ जवाब दे रहे हैं वे अभी भी वह सारी पीड़ा उठाने को तैयार रहती हैं जो किसी भी कठिन साधना के लिए जरूरी होती है। आज टेलिविजन, इंटरनेट और नेताओं की वोट बैंक पॉलिटिक्स के कारण भारत के हर हिस्से के लोग छठ पूजा के बारे में थोड़ा बहुत जानने लगे हैं। लेकिन बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोगों को छोड़कर बहुत कम ही लोगों को इस पूजा से जुड़ी कठिनाईयों के बारे में मालूम होगा। कुछ लोगों को अखबारों की हेडलाइन पढ़कर यह पता चल जाता होगा कि खरना के बाद लगभग छत्तीस घंटे का निर्जला व्रत करना पड़ता है। लेकिन सबका ज्ञान बढ़ाने के लिए यह बताना जरूरी है कि छठ का प्रसाद अधिकतर वही महिला बनाती है जो व्रत करती है। यानि नहाय खाय से लेकर सांझ के अर्घ्य वाले दिन तक कमरतोड़ मेहनत करनी पड़ती है। उसके साथ बुढ़ापे से जुड़ी मुसीबतें काम को और भी मुश्किल कर देती हैं।

बहरहाल, पार्वती झा तो व्रत से जुड़े वैसे कामों में व्यस्त थीं जो कि घर में करने होते हैं। लुत्ती झा सुबह से कम से कम पाँच बार हाउसिंग सोसाइटी के बाहर स्थित शॉपिंग आर्केड में जा चुके थे। उनकी आदत ये नहीं है कि एक बार लिस्ट बना ली और एक ही बार सबकुछ ले आए। कहते हैं कि इसी बहाने थोड़ा चलना फिरना हो जाता है जो कि पच्चीसवीं मंजिल की फ्लैट में आसमान में टंगे टंगे संभव नहीं हो पाता है। लगभग सभी सामान आ चुके थे, लेकिन कुछ ऐसी चीजों की खरीददारी बाकी थी जिसके लिए बाजार जाना जरूरी था। बिहार में तो छठ पूजा के लिए कुछ खास चीजें हर गली नुक्कड़ पर मिल जाती हैं, लेकिन दिल्ली एनसीआर के क्षेत्र में उसके लिए कम से कम बीस किलोमीटर दूर जाना पड़ता है जो लुत्ती झा के अकेले के वश का नहीं है।

लुत्ती झा को पता था कि यह तभी संभव हो पाएगा जब उनका बेटा और दामाद शाम में अपने अपने काम से फारिग होकर लौटेंगे। दोनों ने आधे दिन की छुट्टी ले ली थी इसलिए तीन बजते बजते दोनों घर पहुँच चुके थे। पहले तय प्लान के हिसाब से उन्हें चार बजे बाजार के लिए निकलना था। लेकिन लुत्ती झा को श्रृंगार करने में वक्त लगता है। लगभग पाँच बजे जब लुत्ती झा बाजार के लिए कूच करने लगे तो पूरे सजे धजे लग रहे थे। बालों में सुगंधित नवरत्न तेल की महक एक किलोमीटर दूर दूर तक फैल रही थी। आज तो बालों के साथ साथ मूँछें भी अमावस की रात की तरह काली लग रही थीं। लेवाइस की जींस के ऊपर मलमल के झीने बुशशर्ट के अंदर से यह साफ दिख रहा था कि वीआईपी की बनियान भी नई थी। जब सोसाइटी की गेट के बाहर पहुँचे तो पता चला कि अभी तक उनका बेटा कार लेकर बेसमेंट पार्किंग से बाहर नहीं निकला था। समय का सदुपयोग करने के खयाल से इस बीच लुत्ती झा और उनके दामाद ने पान की दुकान की बिक्री बढ़ाने का मन बना लिया। जबतक कार बाहर आई तबक दोनों ससुर दामाद पान की लाली से अपने अधरों को रंगे हुए क्लब के पास पहुँचे। जैसे ही कार रुकी दामाद ने लुत्ती झा को थोड़ा निराश इसलिए कर दिया कि वह लपक कर आगे वाली सीट पर बैठ गया। बेचारे लुत्ती झा अपना मन मारकर दो बड़े बड़े झोले अपनी बगल में दबाए हुए कार की पिछली सीट पर दाखिल हो गए।

सोसाइटी से बाहर निकलकर कार हाइवे पर पहुँची और फिर यू-टर्न लेकर उस कट की ओर जाने लगी जहाँ से दाहिने मुड़ने पर शहर की ओर रास्ता जाता है। लुत्ती झा का बेटा ड्राइविंग सीट पर था, बगल वाली सीट पर दामाद और पीछे लुत्ती झा। तीनों म्यूजिक सिस्टम पर बज रहे छठ के पारंपरिक गीतों का आनंद ले रहे थे। बीच बीच में बेटा बता भी रहा था कि पुराने बस अड्डे के पास वाली सब्जी मंडी में छठ की पूजा के लिए सभी चीजें मिल जाएंगी, जैसे कि कच्ची हल्दी, नारियल, माला, पीला सिंदूर, गन्ना, आदि। लुत्ती झा अपने हाथ में लिए लिस्ट की जाँच पड़ताल कर रहे थे कि कहीं कुछ छूटा तो नहीं।

अभी वे लोग दाहिने वाले कट से कुछ पहले ही थे कि एक बाइक ने उनकी कार को बाएँ से ओवरटेक किया। उस बाइक पर बैठे दो युवक उनकी ओर हाथ से इशारे कर रहे थे जैसे कुछ बताना चाह रहे हों। उनके इशारे से लगा कि कार में कुछ गड़बड़ थी। लुत्ती झा के बेटे ने गाड़ी को किनारे कर के रोक दिया। वह गाड़ी से नीचे उतरा और बाकी लोग भीतर ही बैठे रहे। जब उसे आगे झुककर गंभीर मुद्रा में कार का मुआयना करते हुए देखा तो दामाद को लगा कि कोई गंभीर समस्या है इसलिए वह भी नीचे उतर गया और इंसपेक्शन की उस प्रक्रिया में शामिल हो गया।

कार के सामने वाली ग्रिल से कोई गाढ़ा काला चिपचिपा तरल टपक रहा था। तब तक आसपास दो तीन लोग जमा  हो चुके थे।

“अरे भाई साहब, गाड़ी तो बिलकुल नई लग रही है।“

“हाँ भई, अभी दो महीने पहले ही खरीदी है।“

“लगता है लंबा खर्चा गिरेगा, गाड़ी महंगी वाली लग रही है।“

नहीं, अभी वारंटी में है।“

“भाई साहब, बोनट खोलकर देखो।“

जैसे ही लुत्ती झा के बेटे ने बोनट खोलने के लिए कार का गेट खोला वह जोर जोर से खांसने लगा और उसकी आँखों और नाक से पानी गिरने लगा। पूछने पर पता चला कि कार के भीतर अजीब सी गंध आ रही थी। फिर से चेक करने के खयाल से बाईं तरफ से दामाद ने भी गेट खोला और अपना मास्क उतारकर गहरी सांस ली। वह भी जोर जोर से खांसने लगा और उसकी आँखों और नाक से भी पानी गिरने लगा। दोनों ने लुत्ती झा को इशारा किया तो वे भी गाड़ी से बाहर आ गये।

गाड़ी के आसपास जो छोटी मोटी भीड़ जमा हो चुकी थी उसमें से किसी ने कहा कि बगल में ही कोई मैकेनिक है उसको दिखा लें। दामाद ने कहा कि शीशे उतारकर गाड़ी वापस ले ले ताकि वह अपनी कार लेकर बाजार जाएगा। लेकिन तीनों को डर लग रहा था कि किसी जहरीली गैस के कारण रास्ते में ही बेहोश हो गए तो क्या होगा। आखिरकार तय यह हुआ कि पास के मैकेनिक से गाड़ी को दिखवा लेने में ही भलाई है।

मैकेनिक फौरन हाजिर हो गया। उसने बोनट के नीचे झाँका और गंभीर मुद्रा में ऐसे मुआयना करने लगा जैसे कोई अनुभवी डॉक्टर अपने मरीज की नब्ज टटोल रहा हो। फिर उसने गाड़ी के अंदर से एक लंबा तार जैसा कुछ निकाला, उसके सिरे पर लगे चिपचिपे द्रव को छुआ और उसे सूंघने लगा। उसके बाद उसने बोनट के आगे की ग्रिल पर लगे द्रव को सूंघा और एक विजयी मुद्रा में बताया, “सर, दोनों तेलों की गंध अलग-अलग है। मतलब आपकी गाड़ी में कोई लीकेज नहीं है। हो सकता है किसी ने बाहर से डाल दिया हो। अब तो केबिन में बदबू भी नहीं आ रही है। गाड़ी बिलकुल टंच है। आप आराम से जाइए।“

लुत्ती झा ने अपनी जेब से सौ का एक नोट निकालकर उस मैकेनिक की ओर बढ़ाया तो मैकेनिक ने हाथ जोड़कर उसे लेने से मना कर दिया और बोला कि उतने छोटे मोटे काम के पैसे लेना उसकी शान के खिलाफ होगा। उसके बाद उसे थैंक यू बोलकर तीनों गाड़ी में बैठे ओर आगे बढ़ लिए। अभी वे थोड़ी दूर ही चले होंगे कि लुत्ती झा से पता चला कि खरीददारी के लिए जो झोले लिए थे वे गायब थे। उसके बाद गाड़ी फिर से रुक गई। झटपट मुआयना करने पर पता चला कि लुत्ती झा का मोबाइल फोन गायब था, उनके बेटे के दो में से एक फोन गायब था। दामाद ने अपनी जेब टटोली तो राहत की सांस ली क्योंकि उसका पर्स और मोबाइल दोनों अपनी जगह पर सही सलामत थे। बेटे क बटुआ भी सही सलामत था और लुत्ती झा तो पैसों के लिए आश्वस्त थे क्योंकि वह ऐसे मौकों पर रुपए पैसे अपनी अंडरवियर में बने चोर पॉकेट में रखते थे। एक बर टटोलकर देख भी लिया और निश्चिंत हो गए क्योंकि नोटों का बंडल अभी भी अपनी जगह पर ही था।

उसके बाद दोनों के चेहरे लटक चुके थे। दोनों को अहसास हो चुका था कि आज वे ठकठक गैंग का शिकार बन चुके थे। लुत्ती झा को जितने याद थे उतने श्राप उन्होंने उस ठकठक गैंग वाले को दे दिए। उसके बाद गाड़ी में पूरी खामोशी थी और गाड़ी अपनी पूरी रफ्तार से बाजार की तरफ बढ़ रही थी। बीच बीच में लुत्ती झा की हिचकी साफ सुनाई दे जाती थी। शायद वह जर्दे के ओवरडोज से हो रहा था या फिर उस दुर्घटना का पोस्टमार्टम करने की वजह से हो रहा था।

Saturday, July 18, 2020

Lockdown Stories

Dear Readers,
You have always appreciated the stories which I have been posting on my blog from time to time. A collection of short stories is now available on Amazon Kindle. You can have a look at this book:

Saturday, June 20, 2020

कहानियाँ लॉकडाउन की


आपने मेरी लिखी कहानियों को बहुत पसंद किया है और उन्हें सराहा भी है। लॉकडाउन एक ऐसी बला है जिससे आरा पूरी दुनिया परेशान है। हर किसी की तरह मैने भी ऐसी कई परेशानियाँ झेली हैं। अपने और दूसरों के अनुभव से प्रेरणा लेते हुए मैंने कई नई कहानियाँ लिखी हैं। इन कहानियों का संकलन अब अमेजॉन पर किंडल फॉर्मैट में उपलब्ध है।

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