“हाँ भई, झाजी, कहाँ चल दिए? इतनी अच्छी धूप तो अब एक दो दिन की मेहमान है। अच्छी तरह से धूप सेंक लो। हड्डियाँ मजबूत हो जाएँगी।“ सक्सेना जी ने अपनी दोनों हथेलियों से अपनी भुजाओं को थपथपाते हुए कहा।
“अरे नहीं, अब
इस उम्र में हड्डियाँ क्या खाक मजबूत होंगी। काफी देर हो चुकी है, लंच
का समय हो चुका है। लोग घर में इंतजार कर रहे होंगे।“ लुत्ती झा ने जवाब दिया।
यह सुनकर गुप्ता जी ने कहा, “लगता
है अभी भी बीबी से डरते हो। अरे वीडियो कॉल करके भाभी जी को भी दिखा दो इस गुलाबी
धूप में अपना पार्क कितना खूबसूरत दिखता है। हो सकता है वह भी आ जाएँ तुम्हारे साथ
कुछ क्वालिटी टाइम बिताने।“
यह सुनकर वहाँ बैठे बाकी
बुड्ढ़े एक साथ ठहाका लगाने लगे। जब ठहाके समाप्त हुए तो सक्सेना जी ने कहा,”अरे
भई, हमारे झा साहब अपने पेंशन की एक एक पाई बचाकर रखते हैं। आज भी
कीपैड वाला मोबाइल लेकर घूमते हैं। वो भला क्या समझेंगे कि वीडियो कॉल में जो मजा
आता है वह वॉयस कॉल में कहाँ। मैं तो रोज रात में तीन चार बजे अपने पोते से बातें
करता हूँ। वह अमेरिका में रहता है और उस वक्त वहाँ दिन
होता है।“
गुप्ता जी ने कहा, “हाँ
भई, उसके अलावा और भी बहुत से मजे हैं जो आप स्मार्ट फोन से ले सकते
हैं। मैं तो पूरी रात रजाई में छुपकर एक से एक वीडियो देखता हूँ। सचमुच मजा आ जाता
है।“
यह सुनकर दुग्गल जी ने कहा, “हाँ, अब
आप ही तो वैसे मजे ले सकते हैं। रंडुवे जो ठहरे। मेरी बीबी तो रात के दस बजते ही
मेरा स्मार्टफोन जब्त कर लेती है और मुझे अच्छे बच्चे की तरह सो जाने की हिदायत
देती है।“
“भई, मैं
तो कभी भी अच्छा बच्चा न था और न ही भविष्य में ऐसी कोई उम्मीद है। हम तो दोनों
मियाँ बीबी पूरी रात वीडियो देखते हैं।“ सक्सेना जी ने कहा।
यह सुनकर दुग्गल जी ने कहा,”अब
इस उमर में आपके पास और चारा भी क्या है। वीडियो ही देख सकते हो, कुछ
कर तो सकते नहीं।“
सबने जोर से ठहाका लगाया
और फिर वहाँ से लुत्ती झा ने सबको बाई बाई किया और अपने घर की ओर चल पड़े। लुत्ती
झा जब तक घर पहुँचे तब तक डाइनिंग टेबल पर खाना निकल चुका था और उनकी बीबी, बहू
और पोते पोती उनके आने का इंतजार कर रहे थे। आज कमाल हो गया। लुत्ती झा चुपचाप
खाना खा रहे थे। एक बार भी उन्होंने सब्जी या दाल में कोई मीन मेख नहीं निकाली। एक
बार भी चीनी नहीं मांगी और बगैर चीनी के ही पूरी कटोरी भर दही साफ कर दिया। थाली
में एक निवाला भी नहीं छोड़ा। इस बात पर हर कोई ध्यान दे रहा था। लंच के बाद लुत्ती
झा अपने कमरे में लेटे हुए थे और उसी अखबार को दोबारा पढ़ने की कोशिश कर रहे थे
जिसे उन्होंने सुबह ही पढ़ा था। मौका देखकर
जब उनकी बीबी ने उनकी तबीयत खराब होने की आशंका जताई तो उन्होंने ना में जवाब
दिया। शाम में वे बाहर टहलने भी नहीं गये।
शाम के सात साढ़े सात बजे जब उनका बेटा नचिकेता ऑफिस से लौटा तो उनकी
बहू सरिता ने उससे लुत्ती झा के अजीबोगरीब बरताव के बारे में बताया। चाय पीते पीते
नचिकेता ने पास के ही एक कंपाउंडर को फोन कर दिया। कंपाउडर, जिसका
नाम ललित था आधे घंटे के भीतर आ चुका था। उसने लुत्ती झा का ब्लड प्रेशर मापा जो
नॉर्मल था। फिर उसने ब्लड शुगर भी चेक किया तो देखा कि वह भी सही था। फिर नचिकेता
ने पूछा कि गाँव से कोई फोन वोन तो नहीं आया था
तो पता चला कि ऐसी कोई बात नहीं थी। उसने और तसल्ली के लिए यह भी सुनिश्चित
कर लिया कि उसके बेटे और बेटी ने अपने दादा के साथ कोई ऐसी वैसी बात तो नहीं कह दी
तो पता चला ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था। फिर सरिता ने बताया कि हो सकता है किसी कारण
से मूड खराब हो गया होगा और एक दो दिन में अपने आप ठीक हो जाएगा।
अगले दिन लुत्ती झा ने
अपने बेटे से कहा कि वो बाजार जाना चाहते हैं क्योंकि उन्हें एक स्मार्टफोन खरीदना
है। यह सुनकर नचिकेता ने कहा, “पापा,
महीने का आखिरी सप्ताह चल रहा है
और इस महीने पहले ही कई मोटे खर्चे हो
चुके हैं। कार का इंश्योरेंस करवाया था और इस महीने लट्टू और ऐश्वर्या की एग्जाम
फीस भी देनी पड़ी थी। आप आठ दस रोज रुक जाइए तो अगले महीने सैलरी मिलते ही एक
स्मार्टफोन खरीद दूंगा।“
लुत्ती झा, अपने
नाम के मुताबिक आग उगलने लगे। लुत्ती एक देशज शब्द है जिसका अर्थ होता है चिंगारी।
बताते हैं कि बचपन से ही लुत्ती झा बड़े ही गुस्सैल हुआ करते थे। बचपन में ही उनके
लक्षण देखकर उनके पिताजी ने उनका यह
नामकरण किया था। बहरहाल, लुत्ती झा बिफर पड़े, “मैंने कब कहा कि तुम
म्रेरे लिए स्मार्टफोन खरीद दो। अभी तुम्हारा बाप इतना कमजोर नहीं हुआ है। मुझे
पेंशन मिलता है और इतना मिलता है कि मैं
अपने लिए स्मार्टफोन खरीद सकता हूँ।“
नचिकेता ने समझाया,”हाँ
मुझे पता है कि आपको पेंशन मिलता है। लेकिन मेरे रहते हुए अगर आपको उसमें से खर्च
करना पड़े तो मुझे अच्छा नहीं लगेगा।“
उसके इस वक्तव्य ने लुत्ती
झा के गुस्से में आग में घी जैसा काम किया। लुत्ती झा ने कहा, “अच्छा, अभी
तक मैं साधारण सा सैमसंग गुरु का फोन लेकर घूम रहा था तो तुम्हें बड़ा अच्छा लग रहा
था। कभी सोचा कि लोग क्या कहते होंगे कि
एक जेनरल मैनेजर का बाप कीपैड वाला फोन लेकर घूमता है। अरे आजकल
तो पटरी पर बैठने वाले भिखारी के हाथ में भी स्मार्टफोन दिखता है। मोहित के बारे में
सुना ही होगा। नौकरी लगते ही पहले महीने ही उसने तुम्हारे फूफा और फुआ को अलग-अलग
स्मार्टफोन दिला दिया। लेकिन, हमारी वैसी किस्मत कहाँ। तुम्हारी माँ के पास तो
कीपैड वाला फोन भी नहीं है। यहाँ रहो,
तो रिश्तेदारों को बड़ी बहू वाले
नम्बर पर कॉल करना पड़ता है। ननकऊ के यहाँ रहो, तो लोग छोटी बहू के नम्बर
पर कॉल करते हैं। हमारी तो कोई पहचान ही नहीं रही। रिटायर होने का ये मतलब थोड़े ही
होता है।“
इन बातों को सब लोग पूरी
खामोशी से सुन रहे थे। सरिता ने उन्हें बीच में टोकते हुए कहा, “मेरी
सैलरी तो पूरी की पूरी जमा हो जाती है। अभी पिछले महीने ही मुझे बोनस भी मिला था।
यदि आप को नागवर न लगे तो मैं पापा के लिए स्मार्टफोन खरीद दूं।“
लुत्ती झा ने पहले तो
आनाकानी की लेकिन थोड़े मान मनौव्वल के बाद राजी हो गये। फिर क्या था, आनन
फानन में सब लोगों ने कपड़े बदले और बाजार जाने के लिए तैयार हो गये। नचिकेता पहले
ही लिफ्ट से नीचे उतर चुका था ताकि सबके गेट पर पहुँचने से पहले वह पार्किंग से
अपनी कार निकाल कर पहुँच जाए। गेट पर सबलोग कार में सवार हुए और वहाँ से कोई दस
पंद्रह मिनट की ड्राइव के बाद महाराजा मॉल पहुँच गए। मॉल में मोबाइल फोन के शोरूम
से उन्होंने अपने बजट और जरूरत के हिसाब से रेडमी का एक लेटेस्ट मॉडल खरीदा। उसके
लिए बकायदा चमड़े वाला मोबाइल कवर भी खरीदा गया। लुत्ती झा के मन में लड्डू फूट रहे
थे लेकिन अपने जीवन में न जाने कितने बसंत देख चुकने के कारण उन लड्डुओं की जरा सी
भी मिठास उनके चेहरे पर झलक नहीं रही थी। उसके बाद मोबाइल खरीदने की खुशी में सबने
एक फास्ट फूड की दुकान में बर्गर और कोल्ड ड्रिंक की पार्टी की। लौटते लौटते रात
के साढ़े नौ दस बज चुके थे।
घर पहुँचते ही नचिकेता ने
पुराने मोबाइल का सिम नए स्मार्टफोन में लगा दिया और लुत्ती झा को उसे चलाने के
लिए थोड़ी बहुत टिप्स दे दी। फिर उसने बताया कि अगले दिन जब लट्टू और ऐश्वर्या के
ऑनलाइन क्लास खत्म हो जाएँगे तो वे लोग लुत्ती झा के टेक एडवाइजर का काम कर देंगे।
अगले दिन सुबह आठ बजते बजते नचिकेता अपना टिफिन लेकर ऑफिस के लिए रवाना हो चुका था।
सबके लिए नाश्ता बनाने के बाद सरिता भी जूम पर अपने ऑफिस के स्टाफ के साथ व्यस्त
हो चुकी थी। आईटी में काम करने के कारण उसे वर्क फ्रॉम होम की सुविधा मिली हुई थी। लट्टू और ऐश्वर्या की ऑनलाइन
क्लास शुरु हो चुकी थी। लुत्ती झा की पत्नी पार्वती झा पूजा पाठ में व्यस्त थी।
लुत्ती झा अखबार और नाश्ते से कब के निबट चुके थे। अब वे बस कभी इस सोफे पर बैठते
तो कभी उस सोफे पर। कभी कभी वे अपने पोते पोती के कमरे में झाँक कर यह तसल्ली करते
थे कि क्लास चल भी रही है या नहीं।
बारह बजे जाकर ऑनलाइन
क्लास खत्म हुई तो लुत्ती झा ने लट्टू और ऐश्वर्या की ओर हसरत भरी निगाहों से
देखा। उन दोनों ने अपने दादा को व्हाट्सऐप पर मैसेज भेजना, स्टैटस
डालना और वीडियो कॉल करना सिखा दिया। लुत्ती झा ने उनसे सेल्फी लेना भी सीख लिया।
फिर क्या था, लंच करने के फौरन बाद लुत्ती झा सीधे पार्क के लिए
कूच कर गए। पार्क में पहुँचते ही लुत्ती झा ने अपनी जेब से अपना स्मार्टफोन निकाला
और बेंच पर कुछ इस अदा से रखा ताकि हर कोई उसे देख सके।
यह देखकर गुप्ता जी ने कहा, “अरे
वाह, अब हमारे झाजी भी स्मार्टफोन धारी बन गये। लेकिन ये क्या,
बस रेडमी का फोन। अरे मेरे बेटे ने तो मुझे एप्पल का फोन खरीद दिया था। ये देखो।“
यह सुनकर लुत्ती झा ने कहा, ”अजी, गुप्ता
जी आपका बेटा अमेरिका में रहता है,
अपने बुड्ढ़े बाप को यहाँ अकेला
छोड़कर। मेरा बेटा मेरे साथ रहता है। और सबसे बड़ी बात ये है कि यह फोन मेरी बहू ने
खरीदा है, बहू ने।“
उसके बाद लुत्ती झा ने
अपने सभी दोस्तों के साथ तीन चार सेल्फी ली। फिर उन्होंने उन सभी फोटो को
व्हाट्सऐप स्टैटस पर डाल दिया और कैप्शन में लिखा, “फीलिंग हैप्पी विद बुजूम फ्रेंड्स”
अब तो लुत्ती झा का रूटीन
ही बदल चुका था। सुबह का उठना तो पहले की तरह ही जल्दी होता था और उसके बाद की
मॉर्निंग वाक भी होती थी। लेकिन अब चाय के साथ वे अखबार का स्वाद न लेकर ताजा
खबरों के लिए न्यूज वाली वेबसाइट देखने लगे थे। उसके बाद स्टैटस पार गुड मॉर्निंग
मैसेज भी डालने लगे थे। फिर अपने नाते रिश्तेदारों के साथ वीडियो कॉल में इतने मगन
हो जाते थे कि जब तक पार्वती झा की फटकार नहीं पड़ती थी तब तक नहाने के लिए नहीं जाते थे। कई बार थाली में रखा खाना ठंडा हो जाता था और बाकी लोग
इंतजार करने की बजाय अपनी अपनी थाली साफ कर चुके होते थे। रात का खाना जल्दी जल्दी
निबटाकर वे बिस्तर पर चले जाते थे और फिर वीडियो देखने में मशगूल हो जाते थे। ताजातरीन
राजनीतिक हलचल पर एक से एक गरमागरम बहस सुनने में वे इतने तल्ली हो जाते थे कि कब
आधी रात हो जाती थी पता ही नहीं चलता था। जब बगल में लेटी पत्नी की बड़बड़ाहट अपनी
चरम सीमा पर पहुँच जाती थी तो लुत्ती झा घबड़ाकर मोबाइल बंद करते और फिर सोने की
कोशिश करने लगते थे। बेचारे लुत्ती झा।
वह महीना कब बीता और अगला
महीना कब शुरु हुआ, लुत्ती झा को पता ही नहीं चला। अगले महीने की दस
तारीख को उनकी बेटी, दामाद और नाती उनसे मिलने आए। लुत्ती झा के दामाद का नाम है विनोद जो अपने नाम के अर्थ का पूरा सम्मान करते हैं।
उनकी कम्पनी ने सालाना सेल्स क्लोजिंग के लिए दिल्ली में एक मीटिंग रखी है उसी के
सिलसिले में उनका आना हुआ था। मीटिंग केवल एक दिन के लिए थी और वह वृहस्पतिवार का
दिन था। विनोद ने शुक्रवार की छुट्टी ले ली थी और शनिवार और रविवार को तो वैसे भी
छुट्टी होती है। लगता है कि वे अपनी ससुराल में पूरी आवभगत की उम्मीद से आए थे।
वृहस्पतिवार को मीटिंग से
छूटने में काफी वक्त लगा और विनोद को लौटने में काफी रात हो चुकी थी। अगले दिन
लुत्ती झा विनोद को लेकर पास वाले बाजार गए ताकि दामाद के लिए तीन चार तरह की मछलियाँ
खरीद सकें। साथ में मिठाइयाँ भी ली गईं। अब परंपरा के मुताबिक दामाद की अच्छी
खातिरदारी करना उनकी और उनके बेटे की जिम्मेदारी बनती थी।
मछली की पकौड़ी तो नाश्ते
में ही परोस दी गई। लंच में सरसों वाली ग्रेवी के साथ मछली और उसके साथ सेल्हा
चावल की तो जितनी तारीफ की जाए कम है। उसके बाद लुत्ती झा अपने दामाद से गप्पें
मारने लगे। थोड़ी ही देर में लुत्ती झा ने विनोद से कहा, “दामाद
जी, स्मार्टफोन का मोटा मोटी फंक्शन तो पता चल गया है लेकिन एक बात
की जानकारी आपसे पता करनी थी। आपको और नचिकेता को कई बार मैंने अपने अपने फोन से
पेमेंट करते देखा है। वो कैसे करते हैं,
यह बता देते तो मजा आ जाता।“
विनोद ने कहा, “पापाजी, आप
कहाँ इन सब चीजों में फँसना चाहते हैं। किसी ने कुछ गड़बड़ कर दिया तो फिर इतने
सालों में जो भी बैंक बैलेंस बनाया है सब साफ हो जाएगा।“
लुत्ती झा ने कहा, “ऐसे
कैसे साफ हो जाएगा? आप के साथ कभी हुआ? नचिकेता के साथ हुआ? मतलब
आपको पूरी दुनिया में मैं ही एक अबोध आदमी दिखता हूँ। अरे दामाद जी, मेहनत
की कमाई है। ऐसे कैसे कोई साफ कर देगा।“
विनोद ने अपने ससुर के स्मार्टफोन
पर एक पेमेंट एप्प इंस्टाल कर दिया और उन्हें उसे इस्तेमाल करने का तरीका बता दिया।
उसके बाद लुत्ती झा ने पूछा, “अब इससे किसी को पेमेंट कैसे करेंगे ये बताइए।“
“जब नीचे किसी दुकान पर चलेंगे
तो पता चल जाएगा।“
“अरे नहीं, इससे
तो नचिकेता या आपके नम्बर पर भी पैसे ट्रांसफर कर सकते हैं ना। वही कर के बताइए।“
“ठीक है, मैं
अपने नम्बर पर पचास रुपए ट्रांसफर करके दिखाता हूँ।“
यह कहकर विनोद ने अपने नम्बर
पर पैसे ट्रांसफर करके दिखाया। लुत्ती झा तो ऐसे खुश हो रहे थे जैसे कोई बच्चा तब खुश
होता है जब उसे कोई महंगा वाला गेमिंग कंसोल लाकर देता है। लुत्ती झा ने फौरन अपने
पोते, पोती और नाती को साथ लिया और लिफ्ट से नीचे उतरने लगे। शॉपिंग आर्केड
में जाकर उन्होंने तीनों को आइसक्रीम खरीद दी, बाकी लोगों के लिए आइसक्रीम
पैक करवाया और फिर अपने लिए पान के चार पाँच बीड़े बंधवा लिए।
रात में जब नचिकेता ऑफिस से
लौटा तो लुत्ती झा ने उससे अपनी नई उपलब्धि के बारे में बताया। यह सुनकर नचिकेता ने
कहा, “आप भी पापा,
कमाल करते हैं। क्या जरूरत है पेमेंट
ऐप्प के चक्कर में पड़ने की। जरूरत की हर चीज तो आपके लिए आ ही जाती है। वैसे भी जीजाजी
को आप नहीं जानते हैं। किसी दिन आपका पूरा खाता साफ कर देंगे तो फिर आप क्या करेंगे।“
“खबरदार, जो
दामाद जी के लिए ऐसी वैसी बात की। वो हमारे लिए नए थोड़े ही हैं। पंद्रह साल हो गए उनकी
शादी को। तुम तो बस उनसे जल भुनकर ऐसा सोचते हो।“
“मोटी रकम देखकर कब किसकी नीयत
डोल जाए कौन जानता है।“ लाइए, अपना फोन। जरा चेक तो करूँ कि किसी ने कुछ गड़बड़ तो नहीं
की है।
जब नचिकेता ने मैसेज चेक किए
तो पाया कि विनोद के नम्बर पर पचास रुपए की जगह पाँच हजार रुपए ट्रांसफर हो चुके थे।
नचिकेता ने लुत्ती झा को बताया तो लुत्ती झा ने उसे यह बात किसी को भी बताने से मना
किया। कहने लगे कि दामाद की इज्जत बचाने में ही घर की इज्जत बची रहती है।
अगला दिन था शनिवार, यानि
वीकेंड। विनोद और नचिकेता शाम में बाजार गए और लौटते समय मटन, मिठाइयाँ, कोल्ड
ड्रिंक और व्हिस्की खरीद कर लाए। लौटते ही दोनों एक कमरे में बैठ गए और अपने सामने
नमकीन की प्लेटें, सोडा की बोतलें और
गिलासें सजा लीं। अपना पेग बनाने के बाद विनोद एक ट्रे में एक गिलास, सोडे
की एक बोतल और व्हिस्की का एक क्वार्ट सजाकर दबे पाँव गया और अपने ससुर के सामने रख
दिया। दोनों की नजरें मिलीं और दोनों की मुसकान खिल गई।
वापस नचिकेता के कमरे में पहुँचकर
विनोद ने उसके साथ चीयर्स किया और दोनों अपनी शाम रंगीन करने लगे। जब दूसरा पेग शुरु
हुआ तो नचिकेता ने पूछा, “एक बात पूछूँ जीजाजी? इस बार आपने बहुत महंगा ब्रांड
खरीदा है। आप जैसे मक्खीचूस से यह कुछ ज्यादा लग रहा है। इस साल इंसेंटिव में मोटी
रकम मिली है? या मोटा बोनस मिला है?”
विनोद ने हँसते हुए कहा, “मोटा
बोनस ही समझो। हुआ यूँ कि कल जब मैं पापाजी को पैसे ट्रांसफर करना सिखा रहा था तो मुझे
एक शरारत सूझी। मैंने पचास रुपए की जगह पूरे पाँच हजार ट्रांसफर कर दिए। आखिर ओल्ड
वार हॉर्स के लिए नया स्मार्टफोन खरीदने पर एक शानदार पार्टी तो बनती है।“
यह सुनकर नचिकेता जोर से हँसा।
विनोद भी उसकी हँसी में शामिल हो गया। बाद में जब लुत्ती झा को यह बात पता चली तो वे
भी मंद मंद मुसकरा रहे थे।