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Sunday, July 10, 2016

DM Is Coming

First line managers are called by different names in different companies. Some of the designations for front line managers can be quite fancy. The front line managers in Pfizer are called DM which is a short form for District Manager. Coincidentally, the abbreviated form DM is also used for an important post in the Indian Administrative Services. The District Magistrate is an important person in districts and is considered to be very powerful person. In colloquial terms; he is often called as DM Sahib. This incident is related to the much revered term ‘DM’ in mofussil towns of India. This was shared by one of my colleagues during a sales meeting.

A PSO was going to some interior market along with his DM aka District Manager. They reached the nearby railway station only to find that the train was overcrowded. Even the first class coach was jampacked. They discovered that it was some auspicious day of a Hindu festival and people were going to a nearby bathing ghat to wash their sins.

The DM (of Pfizer) was scared to see the crowd and wanted to change the tour plan. He preferred to go back so that they could work in relative calm of the base town. But the PSO appeared to be unperturbed and insisted on proceeding as per the tour programme. The DM was not sure how to get in the train. The PSO found an ingenious way to solve the seemingly huge problem.

He went near the door of the first class coach and began to shout, “DM sahib is coming! DM sahib is coming! Make way for the DM.”


When the crowd in the compartment heard these words it apparently went into some sort of trance. People began to make way for the DM. Even a couple of policemen; present there; began shoving the people to make way for the DM. The DM (of Pfizer) followed the PSO the way a kid follows his mother. Both of them easily found their way inside the compartment. To their utter surprise, they also found that two seats were made vacant for them to sit comfortably. 

असली डॉक्टर

उस समय मेरा ट्रांसफर धनबाद से बहराइच हुआ था। धनबाद में मैं केवल क्वालीफाइड डॉक्टर से मिला करता था और इसलिए अपनी सेल्स पिच में अंग्रेजी का इस्तेमाल अधिक करता था। ठीक इसके उलट बहराइच उत्तर प्रदेश का एक छोटा सा शहर है जहाँ के मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव को झोला छाप डॉक्टर और बिएएमएस डॉक्टर से भी मिलना पड़ता है। बहराइच में काम करने के लिए हिंदी का दुरुस्त ज्ञान होना जरूरी है। मुझे हिंदी में सही तरीके से सेल्स पिच सिखाने के लिए रीजनल ट्रेनिंग मैंनेजर को जिम्मेदारी दी गई थी। वे एक बुजुर्ग और अनुभवी सेल्स प्रोफेशनल थे जिनके कैरियर का ज्यादातर भाग पूर्वी उत्तर प्रदेश के मार्केट में बीता था। एक बार हमलोग किसी छोटे से गाँव में काम करने गये थे। उस गाँव में पहुँच कर हम एक केमिस्ट की दुकान पर सर्वे कर रहे थे। तभी किसी मैले कुचैले कागज पर किसी डॉक्टर का पर्चा आया जिसपर दवा का नाम उर्दू में लिखा हुआ था। केमिस्ट से पता चला कि उसपर टेरामाइसिन लिखा हुआ था। केमिस्ट ने बताया कि कोई डॉक्टर अली थे जिन्होंने वह पर्चा लिखा था। उसने ये भी बताया कि वे फाइजर की दवाएँ खूब लिखा करते थे। 
ऐसा सुनकर मैं और मेरे रीजनल ट्रेनिंग मैनेजर उस डॉक्टर से मिलने चल दिए। केमिस्ट ने बताया था कि वह डॉक्टर बाजार में एक पीपल के पेड़ के पास वाले टीले पर क्लिनिक चलाते थे।

मैं अपनी मोटरसाइकिल चला रहा था और पिछली सीट पर मैनेजर साहब बैठे हुए थे। मैंने बड़ी स्टाइल से मोटरसाइकिल को उस टीले पर चढ़ा दी। हमारे सामने एक खस्ताहाल झोपड़ी सी दिखी जिसमें कुछ देहाती लोग बैठे हुए थे। झोपड़ी के बाहर एक अधेड़ उम्र का आदमी चेक वाली लुंगी और मटमैली बनियान पहने खड़ा था। मैंने अपनी बाइक पर बैठे बैठे ही उस आदमी से बड़े कड़क अंदाज में पूछा, “ओ भैया, ये अली डॉक्टर कहाँ मिलेंगे।“

वह आदमी थोड़ा सकपकाते हुए बोला, “डॉक्टर तो नहीं हैं, किसी दूसरे गाँव गये हैं। एकाध घंटे बाद आएँगे।“

मैंने अपने मैनेजर से वापस चलने को कहा तो उन्होंने मुझे इशारे से चुप होने को कहा। फिर वे बाइक से उतर कर उस आदमी के पास पहुँचे और बोला, “हम लोग दवा कंपनी फाइजर से आए हैं। आप कहें तो थोड़ी देर आपसे ही बात कर लें।“

उस आदमी ने हामी भरी और फिर हम उसके पीछे उसकी झोपड़ीनुमा क्लिनिक के अंदर चले गए। फिर मेरे ट्रेनिंग मैनेजर ने मुझे उस आदमी को डिटेलिंग करने के लिए इशारा किया। मैं मन ही मन भन्ना रहा था क्योंकि मुझे उस देहाती आदमी को डिटेलिंग करना अच्छा नहीं लग रहा था। फिर थोड़ी देर तक मैनेजर ने उसे ठेठ हिंदी में कुछ दवाओं के बारे में बताया। उनके कहने पर मुझे उस आदमी को एक गिफ्ट भी देना पड़ा। अंत में पता चला कि वह आदमी और कोई नहीं बल्कि डॉक्टर अली था।

वहाँ से निकलने के बाद मैंने अपने ट्रेनिंग मैनेजर से पूछा, “मुझे दो बातें समझ में नहीं आई। इसने पहले ये क्यों कहा कि ये डॉक्टर नहीं है? फिर आपने कैसे पकड़ लिया कि यही असली डॉक्टर है?”

इस पर मेरे मैनेजर ने जो जवाब दिया उससे मैं उनके अनुभव का कायल हो गया। उस दिन मेरी आँखें खुल गईं कि किसी की पोशाक देखकर ही किसी के व्यक्तित्व का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। उन्होंने कहा, “जब उसने देखा कि दो लोग पैंट शर्ट और टाई में इतनी हेकड़ी से उसके टीले के ऊपर पहुँचकर सवाल पूछ रहे हैं तो वो डर गया होगा कि कहीं कोई सरकारी अधिकारी छापा मारने तो नहीं आ गया। मैंने इस तरह के बाजारों में वर्षों काम किया है इसलिए उसे देखते ही मैं ताड़ गया कि यही वह आदमी होगा जिसे हम तलाश रहे थे। देखा नहीं वह कितने इत्मिनान से उस टीले पर टहल रहा था।“ 

Thursday, July 7, 2016

डॉक्टर के लिए उपहार

मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव एक ऐसा शख्स होता है जो डॉक्टरों के पास जाकर अपनी कंपनी की दवाई का गुणगान करता है। ऐसा करने के लिए उसकी मदद के लिए विजुअल ऐड होता है जिसमें रंग बिरंगी फोटो होती है और दवाइयों की बड़ाई होती है। विजुअल ऐड में छपी हुई बातों को ज्यादातर मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव कंठास्थ याद कर लेते हैं और डॉकटरों के सामने किसी रट्टू तोते की तरह सुनाया करते हैं। किसी भी डॉक्टर के लिए यह उतनी ही आम बात होती है जैसे कि किसी आम आदमी के लिए मोबाइल फोन पर वाटर प्योरिफायर या होम लोन की कॉल आना। लेकिन ग्रामीण इलाकों के मरीजों और उनके साथ आए लोगों के लिए यह किसी अनूठे नजारे से कम नहीं होता। ऐसा ही एक वाकया मेरे किसी मित्र ने मुझे सुनाया था; जो कि मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव था।

वह अपने एरिया मैनेजर के साथ किसी छोटे से गाँव में काम कर रहा था। वे लोग किसी ऐसे झोला छाप डॉक्टर की कॉल कर रहे थे जिसे अंग्रेजी क्या ठीक से हिंदी भी नहीं आती थी। वह मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव अपने अनुभव से जानता था कि ऐसे डॉक्टरों के पास अंग्रेजी में बात करने से वे खुश होते हैं; क्योंकि उन्हें लगता है कि इससे समाज और लोगों में उनकी इज्जत में इजाफा हो जाता है। यही सब ध्यान में रखते हुए उस मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव ने अपना गला साफ किया और डॉक्टर के सामने अपना रटा रटाया भाषण शुरु कर दिया। उस डॉक्टर की जबरदस्त प्रैक्टिस चलती थी; लिहाजा उसके क्लिनिक में अच्छी खासी भीड़ जमा थी। वह डॉक्टर गर्मी के कारण लुंगी और बनियान पहने था। लेकिन मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव और उसका मैंनेजर; दोनों ने पैंट शर्ट के साथ टाई भी लगा रखी थी। दोनों ठेठ शहरी बाबू लग रहे थे जिनपर पूरी तरह अंग्रेजियत का भूत सवार हो। जब वे अपनी सेल्स पिच सुना रहे थे तो डॉक्टर भी बीच बीच में येस नो कहकर जवाब दे रहा था जैसे बहुत अंग्रेजी जानता हो। उसके इर्द गिर्द जमा लोग बड़े भाव विभोर होकर उनकी गुफ्तगू को सुन रहे थे।
लगभग 15 से 20 मिनट की सेल्स पिच के बाद मैंनेजर ने अपने बैग में से एक आकर्षक गिफ्ट पैक निकाला और बड़ी नफासत से उसे डॉक्टर के सामने इस तरह से टेबल पर रखा जैसे कोहिनूर का हीरा सौंप रहा हो। ऐसा देखते ही उस डॉक्टर के इर्द गिर्द जमा हुए लोग उठ कर खड़े हो गए और जोर-जोर से तालियाँ बजाने लगे।

बेचारा डॉक्टर, मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव और मैनेजर; तीनों ब‌ड़े हैरान होकर उन्हें देखने लगे। फिर डॉक्टर ने थोड़ा झुंझला कर पूछा, “भैया ये बताओ कि तुम लोगों ने तालियाँ क्यों बजाई?”


इस पर उस भीड़ में से एक अकलमंद से दिखने वाले अधेड़ उम्र के व्यक्ति ने जवाब दिया, “हम सब समझ गये डॉक्टर साहब। ये दोनों शहरी बाबू किसी बड़े अस्पताल से आए हैं। इन्होंने आपसे अंग्रेजी में काफी सवाल पूछे। जब आपने इनके सवालों के सही जवाब दे दिये तो इन्होंने इनाम में आपको ये उपहार दिया।“ 

Wednesday, July 6, 2016

कुछ तो लोग कहेंगे

हम चाहे कितना भी आगे क्यों न बढ़ जाएँ, कुछ पुरानी आदतें छूटती ही नहीं। सत्तर के दशक के सुपरस्टार राजेश खन्ना की फिल्मों के गीतों का लुत्फ उठाना इन्हीं आदतों में से एक है। राजेश खन्ना के अनूठे चार्म के साथ सदाबहार गीतों ने सोने पे सुहागे का काम किया था जिसका असर आज भी दिखाई देता है। हमारी दूसरी बुरी आदत है अपनी सहूलियत के हिसाब से सारे नियमों को ताक पर रख देना। टू व्हीलर चलाते समय हेलमेट से परहेज, और कार चलाते समय सीट बेल्ट से परहेज, आदि इसके अन्य उदाहरण हैं। ऐसी ही आदतों के असर में हमारी निवर्तमान मानव संसाधन विकास मंत्री ने न मौका देखा और न ही दस्तूर और राजेश खन्ना कि एक फिल्म का गाना गुनगुना दिया, “कुछ तो लोग कहेंगे लोगों का काम है कहना।“

अब आप सोच रहे होंगे कि यह तो बड़ा ही सुंदर गीत है जिसके साथ बड़ा ही मधुर संगीत जुड़ा हुआ है। साथ में नायक और नायिका का असीम रोमांस इसमें चार चाँद लगा देता है। इतने सुंदर और सदाबहार गीत को गुनगुनाने में हर्ज ही क्या है? वैसे भी उनका पसंदीदा मंत्रालय छिन जाने के बाद लोग तरह तरह की बातें कहने लगे थे। इसलिए भावनाओं में बहते हुए उन्होंने इस गाने की एक पंक्ति गुनगुना दी। मेरी उलझन समझने के लिए आपको उस फिल्म का दृश्य याद करना होगा। या फिर उस गाने की अगली पंक्ति जो इस प्रकार है, “छोड़ो बेकार की बातों में कहीं बीत न जाए रैना।“ मूल सिचुएशन में यह गाना तब गाया जाता है जब नायक और नायिका का मिलन होता है। नायिका नायक से बताती है कि किस तरह से लोग उनके रोमांस के बारे में उल्टी सीधी बातें करते हैं। इस पर नायक का उत्तर मिलता है कि लोगों की परवाह नहीं करनी चाहिए। लोगों की बातों में उलझने से बहुमूल्य समय व्यर्थ चला जाता है और काम की बातें नहीं हो पाती हैं। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो यह गाना मिलन के समय गाने लायक है न कि जुदाई के समय। अब निवर्तमान मंत्री इस गाने को तब गुनगुना रही हैं जब उनका सबसे फेवरीट मंत्रालय उनसे अलग हो रहा है।


यह तो वही बात हुई कि कोई गायक राग भैरवी को आधी रात में गाने लगे। आपकी जानकारी के लिए यह बताना उचित होगा कि राग भैरवी सुबह के समय गाया जाने वाला राग है न की रात्रि के समय। आप कभी भी ब्रेकफास्ट रात में नहीं करते, लंच सुबह नहीं करते और डिनर दिन में नहीं करते। हर तरह के भोजन का अपना निर्धारित समय होता है। हो सकता है कि ये नियम उन निशाचरों पर लागू नहीं होता होगा जो बीपीओ में कार्यरत हैं। लेकिन मंत्री जी बीपीओ में नहीं बल्कि मंत्रालय में कार्यरत हैं। भारत सरकार का एक अहम नुमाइंदा होने के नाते हमें उनसे ऐसी उम्मीद करनी चाहिए कि कम से कम वे तो नियमों का पालन करें। वरना नियम तोड़ने वाली तुच्छ प्रजा और नियम बनाने वाले राजाओं में कोई अंतर नहीं रह जाएगा। 

Monday, July 4, 2016

ग्रीन टैक्स का मतलब

भारत हिंदुओं का देश है; ऐसा कई आधुनिक राजनेताओं और ज्ञानियों का मानना है। वे ऐसा इसलिए समझते हैं क्योंकि इस देश में हिंदु धर्म को मानने वाले अन्य धर्मों की अपेक्षा अधिक संख्या में हैं। अन्य किसी भी धर्म की तरह हिंदु धर्म की भी अपनी कई विशेषताएँ हैं। इन्हीं विशेषताओं में से एक है हर तरह के पाप से बरी होने के सैंकड़ों जुगाड़। आप पूरे जीवन काल में चाहे जितने दुष्कर्म करें, मरने से ठीक पहले यदि आपने गोदान कर दिया तो आप आराम से वैतरणी पार करके स्वर्ग में जगह रिजर्व करा सकते हैं। यदि बुढ़ापे तक इंतजार नहीं करना चाहते हैं तो आप किसी तीर्थस्थान तक दंड प्रणाम करते हुए जाइए और आपको अपने किए पापों से मुक्ति मिल जाएगी। यदि आप धनाढ़्य हैं तो किसी भी नामी गिरामी मंदिर में सवा लाख रुपए नकद का चढ़ावा चढ़ा दीजिए फिर आपको अपने पाप से मुक्ति मिल जाएगी। हमारे देश में एक मंदिर ऐसा भी है जो मात्र ग्यारह रुपए का चढ़ावा देने से ही पापमुक्त होने का सर्टिफिकेट देता है।

हिंदु धर्म की इसी अतुलनीय शक्ति के कारण उन हजारों पंडों और पुजारियों को कोई पाप नहीं लगता जो मंदिरों में घटिया प्रसाद बेचते हैं या गंगा जल के नाम पर कोई भी पानी बेच देते हैं या दूध के नाम पर दूधिया पानी बेचते हैं। कुछ लोग तो इन चढ़ावों से बचने के लिए भी कोई न कोई जुगाड़ निकाल लेते हैं। एक बार मैंने अपने एक पड़ोसी को ऐसा करते हुए रंगे हाथों पकड़ लिया था। वे पिछ्वाड़े के बगीचे में एक बोरी में मरी हुई बिल्ली को दफन कर रहे थे। जब उनका मुझसे सामना हुआ तो उन्होंने बताया कि किसी बिल्ली की हत्या हो जाने के बाद बिल्ली के वजन के बराबर सोने की बिल्ली किसी ब्राह्मण को दान में देनी पड़ती है। वैसे आजकल के ब्राह्मण छोटे आकार की सोने की बिल्ली से भी मान जाते हैं। लेकिन सोने के भाव आसमान छूने के कारण मेरे पड़ोसी को दूसरा रास्ता खोजना पड़ा था।

पाप के दंड से बचने की इसी कोशिश में आजकल नए-नए फैशन चल पड़े हैं। आपको कहीं भी कोई आदमी अपनी कार रोककर उसकी खिड़की से हाथ बढ़ाकर किसी गाय को रोटी खिलाते हुए दिख जाएगा। मेरे मुहल्ले में एक सज्जन के यहाँ तो काले रंग के कुत्तों की लाइन लगी रहती है। उन्हें किसी परम ज्ञानी ज्योतिषी ने बताया है कि काले कुत्ते को रोटी खिलाने से उसके सारे पाप धुल जाएँगे। अब उसके पाप धुलेंगे या नहीं ये तो पता नहीं लेकिन इससे उन कुत्तों की आजकल अच्छी कट रही है।


लगता है हमारे राजनेता और प्रशासनिक अधिकारी भी हिंदू धर्म के इस फार्मूले से अच्छी तरह से प्रभावित हैं। लगभग दो साल पहले दिल्ली में डीजल गाड़ियों की बिक्री पर बैन लगाने की बात उठी थी। इससे न सिर्फ डीजल गाड़ियों की बिक्री पर असर पड़ा बल्कि काम धंधे पर भी असर पड़ने लगा। जब उद्योगपतियों और व्यवसायियों का दवाब सरकार पर बढ़ने लगा तो सरकार ने प्रदूषण के पाप से लोगों को उबारने का अनूठा तरीका निकाल लिया है। पहले बताया गया कि अब डीजल गाड़ियों पर 1% ग्रीन टैक्स देने से काम बन जाएगा। फिर अफसरों को लगा कि 15 से 50 लाख की गाड़ियाँ खरीदने वाले लोग बड़े-बड़े मंदिरों में ग्यारह रुपए का चढ़ावा तो नहीं चढ़ाते होंगे इसलिए 1% की ग्रीन टैक्स उनके लिए मामूली रकम होगी। अब बात हो रही है कि इसे 10 से 20% तक कर दिया जाएगा। एक बार आपने अपनी नई डीजल गाड़ी के लिए ग्रीन टैक्स दे दिया फिर उससे होने वाले प्रदूषण के पाप आपके सिर से अपने आप धुल जाएँगे। 

Saturday, July 2, 2016

मोहिनी की तलाश

आपमें से अधिकतर लोगों को भष्मासुर की कहानी जरूर याद होगी। भष्मासुर नाम का राक्षस अमर होने की इच्छा रखता था। इसलिए उसने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए वर्षों तक घनघोर तपस्या की जिससे भगवान शिव खुश हो गए और प्रकट होकर भष्मासुर से कोई वरदान माँगने को कहा। जब भष्मासुर ने अमर होने का वरदान माँगा तो भगवान ने बताया कि अमरत्व पर केवल भगवानों की मोनोपॉली होने के कारण असुर या मानव को इसका वरदान नहीं दिया जा सकता था। फिर काफी मोलभाव होने के बाद भष्मासुर ने वरदान माँगा कि जिस किसी के सिर पर उसका हाथ पड़ जाएगा वह वहीं पर जल कर भष्म हो जाएगा। भगवान शिव ने तथास्तु कहा और भष्मासुर को लगा जैसे उसके हाथ कोई परमाणु बम लग गया हो। अपनी नई शक्ति की जाँच करने के लिए वह भगवान शिव के पीछे दौड़ा। आखिर में इस कहानी में भगवान विष्णु मोहिनी का अवतार लेते हैं और भष्मासुर को डांस सिखाने के बहाने उसे अपने ही सिर पर हाथ रखने को विवश कर देते हैं। भष्मासुर जल कर राख हो जाता है और कहानी खत्म हो जाती है।

हिंदुस्तान के एक बहुत ही पढ़े लिखे राजनेता भी भष्मासुर की तरह बर्ताव कर रहे हैं। ऐसा वे वर्षों से कर रहे हैं। उन्होंने भारत की राजनीति के कई महत्वपूर्ण देवी देवताओं को प्रसन्न करने के लिए वर्षों से तपस्या की। जब भी किसी देवी या देवता ने उनसे प्रसन्न होकर उन्हें अपना शरणागत बनाया तो फिर इस कलियुगी भष्मासुर ने उस देवी या देवता को ही भष्म करने की कोशिश की। कुछ महान आत्माओं की राजनैतिक मृत्यु (हार) इस भष्मासुर के कारण पहले भी हो चुकी है। आप जब भारत के आधुनिक इतिहास का अध्ययन करेंगे तो आपको इसके कई उदाहरण मिल जाएँगे। इस कलियुगी भष्मासुर से घबड़ाकर काफी वर्षों तक कोई भी राजनेता या राजनैतिक पार्टी उससे दूर रहना ही बेहतर समझती थी। इसलिए वे एक सांसद वाली पार्टी चलाते हुए अपना जीविकोपार्जन कर रहे थे।

लगभग दो वर्ष पहले भारत (या विश्व) की सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टी ने उन्हें अपने आप में समाहित कर लिया। बस फिर क्या था, इस भष्मासुर को लगा कि उसे दूसरे को भष्म करने की शक्ति (जो वर्षों पहले खो गई थी) दोबारा मिल गई। अपनी शक्ति का सदुपयोग करते हुए इस कलियुगी भष्मासुर ने भारत के तैंतीस करोड़ नेताओं में से चुन चुनकर बदला लेना शुरु किया। कई नेता इस भष्मासुर के प्रहार से मर्माहत होते दिखे। उन्हें पीड़ा से तड़पते देखकर अनगिणत टीवी चैनलों के अनगिणत रिपोर्टर को अभूतपूर्व आनंद की अनुभूति होने लगी। इस तरह से सबका समय सुखपूर्वक बीत रहा था कि बीच में एक आयातित गंधर्व आए जिन्हें भारतवर्ष की अर्थव्यवस्था को ठीक करने की जिम्मेदारी दी गई। इन नए गंधर्व के रूप और गुणों की चर्चा न सिर्फ पूरा आर्यावर्त करता था बल्कि पूरा विश्व भी उस रूप और गुणों की खान से प्रभावित था। इसलिए जब इस कलियुगी भष्मासुर के प्रहारों से वह बेचारा गंधर्व मर्माहत हुअ जा रहा था तो लगता था की पूरी प्रजा और पूरी मीडिया भी मर्माहत हो रही थी। उस बेचारे गंधर्व ने अंत में हार मान ली और अपनी जान बचाने के लिए अपने लोक को प्रस्थान करने का फैसला लिया। गंधर्व होने के नाते उसे भारत के किसी भी देवी या देवता का माकूल समर्थन नहीं मिला।

इस जीत से उत्साहित होकर कलियुगी भष्मासुर ने फैसला किया कि उच्च पदों पर आसीन देवी देवताओं पर प्रहार किया जाए। लेकिन इस कोशिश में उसे कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। अपनी झल्लाहट में उसने अब सीधा भगवान शिव पर ही प्रहार करना शुरु कर दिया है। भगवान शिव ने पहले तो अन्य किन्नरों और गंधर्वों द्वारा भष्मासुर को समझाने की कोशिश की लेकिन उनके सारे प्रयास विफल हो गए। थक हारकर भगवान शिव अब सीधा भगवान विष्णु के पास अपनी गुहार लेकर गए। उनसे विनती की कि वे मोहिनी का रुप लेकर उसे अपनी डांस क्लास के बहाने फँसा लें। भगवान विष्णु का मानना है कि पारंपरिक शास्त्रीय नृत्य आजकल फैशन में नहीं है। अब तो लोग रेमो फर्नांडिस और प्रभु देवा के फ्यूजन डांस को ज्यादा तरजीह देते हैं। फिर मोहिनी बनने के चक्कर में ये खतरा भी है कि भष्मासुर को फँसाने के चक्कर में कहीं वे स्वयं ही जलकर भष्म न हो जाएँ। भगवान विष्णु ने किसी और मोहिनी को तलाश करने की सलाह दी। 1980 के दशक की मोहिनी यानि माधुरी दीक्षित से बात की गई। उन्होंने जवाब भेजा कि अब उन्हें अपने बच्चों और परिवार को पालने की जिम्मेदारी निभानी होती है। फिर अपने डॉक्टर पति की सलाह पर उन्होंने केवल डांस कंपिटीशन में जज बनने का फैसला किया है। कई आधुनिक मोहिनियों से इस बारे में बातचीत करने पर जवाब मिला कि अभी तो उनकी खाने खेलने की उम्र है। इतनी कच्ची उम्र में कोई भी किसी भष्मासुर जैसे कुरूप राक्षस के लिए अपनी जान भला क्यों देगा।


फिलहाल मोहिनी की तलाश जारी है ताकि भष्मासुर से हमेशा के लिए छुट्टी मिल जाए। इस बीच भष्मासुर अनेक सुरों, असुरों, गंधर्वों, किन्नरों और तुच्छ मानवों को परेशान कर रहे हैं। 

Friday, July 1, 2016

कुँवारा बाप

एकता ने तुषार से कहा, “अब तो तुम्हारी भी उम्र सारी हदें पार कर चुकी है। ना तो कोई फिल्म मिल रही है और ना ही कोई ऐसी लड़की जो तुमसे शादी करने को तैयार हो। क्या सोचा है, आगे की जिंदगी के लिए?”

तुषार ने जवाब दिया, “मेरे बारे में सोचने से पहले अपने बारे में सोचो। तुम्हारा क्या होगा?”
इस पर एकता ने कहा, “मैंने हम दोनों के बारे में सोच लिया है। शुरु से मुझे ही पूरे परिवार की जिम्मेदारी उठानी पड़ रही है। बूढ़े माँ बाप और एक प्रौढ़ होते हुए भाई की जिम्मेदारी उठाना आसान काम नहीं है। अब इस ढ़लती उम्र में कौन मुझसे शादी करेगा। अब तो मैं केवल एक ही बात सोच रही हूँ। कोई ऐसा होता जो हमारे मरने के बाद हमारी चिता को मुखाग्नि देता। ऐसा करो कि तुम किसी बच्चे के पिता बन जाओ।“

तुषार ने चौंकते हुए कहा, “मैं अकेला आदमी हूँ। किसी बच्चे के लालन पालन की जिम्मेदारी मैं अकेले कैसे उठा सकता हूँ?”

एकता ने कहा, “अरे, उस सुष्मिता सेन को देखो। दो-दो बच्चियों को अकेले ही पाल रही है।“
तुषार ने कहा, “तुम तो बॉस हो। तुम भी सुष्मिता सेन की तरह बन के दिखाओ।“

एकता ने कहा, “मैंने हमेशा कुछ नया करने की कोशिश की है। मेरे सारे टीवी सीरियल कुछ अलग किस्म के होते हैं। मैं चाहती हूँ कि तुम सुष्मिता सेन की तरह बन के दिखाओ।“

तुषार ने पूछा, “तुम चाहती हो कि मैं मिस वर्ल्ड या मिस यूनिवर्स बन के दिखाऊँ। ऐसा मुझसे नहीं हो पाएगा।“

एकता ने कहा, “नहीं, मैं चाहती हूँ कि तुम भी किसी बच्चे को अपना लो।“

तुषार ने पूछा, “तो तुम चाहती हो कि मैं भी किसी बच्चे को गोद ले लूँ। या फिर महमूद की तरह कुँवारा बाप बन जाऊँ।“

एकता ने किसी महान ज्ञानी की मुद्रा में कहा, “1970 के दशक में टेकनॉलॉजी का उतना विकास नहीं हुआ था कि महमूद उसकी मदद लेकर पिता बनने का सुख पा सकते थे। फिर अब भारत पोलियो मुक्त हो चुका है। इसलिए किसी पोलोयो पीड़ित बच्चे को अपनाकर टीआरपी रेटिंग नहीं बढ़ने वाली। आज का जमाना काफी हाइटेक हो चुका है। अब प्रोजेरिया से पीड़ित बच्चे को ढ़ूँढ़ना तो तारे तोड़ने जैसा है। तुमने सुना नहीं किस तरह से बॉलिवुड के दो मशहूर खान ने नई टेकनॉलॉजी की मदद से 50 की उम्र में पिता बनने का सुख प्राप्त किया? आजकल तो अधेड़ उम्र में पिता बनने का फैशन चल पड़ा है। नारायण दत्त तिवारी को नहीं देखा था? कैसे अस्सी साल की उम्र में पिता बनने पर शर्मा और सकुचा रहे थे।”

तुषार उछलकर सोफे पर बैठ गया और बोला, “तुम चाहती हो कि मैं महाराज दशरथ की तरह पुत्र्येष्टि यज्ञ करूँ, या फिर विचित्रवीर्य की तरह वेदव्यास की मदद लूँ। अरे, उन राजाओं के पास इस काम को मूर्त रूप देने के लिए रानियाँ भी थीं। मेरे पास तो ऐसा कुछ भी नहीं है। मैं कोई सूर्यदेव तो हूँ नहीं कि झट से किसी कुंती को मंत्रप्रसाद दे दूँ।“

एकता ने गंभीर मुद्रा में कहा, “तुम हमेशा ऐसे ही रहोगे। घिसे पिटे खयालों के कारण ही तुम्हारी कोई भी फिल्म हिट नहीं होती। आज की टेकनॉलॉजी के कारण अब तीन-तीन क्या, एक रानी की भी जरूरत नहीं पड़ेगी। एक बार तुम किसी बच्चे के पिता बन गए फिर ट्विटर पर तुम्हारे फॉलोवर की संख्या बड़े-बड़े नेताओं और अभिनेताओं से कई गुणा अधिक हो जाएगी। फिर तुम्हारी फोटो दिल्ली टाइम्सजैसे अखबारों में रोज छपेगी। टीवी पर के पैनल बहसों में तुम कम से कम एक सप्ताह तक छाए रहोगे। फिर मैं तुम्हें लीड रोल में रखते हुए एक सीरियल बनाऊँगी बाप भी कभी बेटा था।“


फिर दोनों भाई बहन इस बात के लिए राजी हो गए। उचित समय बीतने पर तुषार का मुसकराता चेहरा अखबारों और टीवी पर नजर आने लगा। आखिरकार, वह एक कुँवारा बाप बन ही गया।