आज शकीरा बहुत जोश में थी क्योंकि आज वह जी भर कर शॉपिंग करने के मूड में थी। शुक्रवार को किसी त्योहार के कारण छुट्टी पड़ जाने से यह वीकेंड लम्बा चलने वाला था यानि तीन दिनों का। जी हाँ, पूरे तीन दिनों की छुट्टी मतलब शुक्र, शनि और रवि। ऐसे मौके हर साल थोड़े ही आते हैं। अगर मौसम सही होता तो पूरा परिवार किसी न किसी हिल स्टेशन घूमने चला जाता। लेकिन मूसलाधार बारिश के इस मौसम में अपने शहर से बाहर जितना कम निकलो उतना ही अच्छा होता है। हाँ, ऐसे में किसी शॉपिंग मॉल में जाकर शॉपिंग करना हर उस औरत को पसंद आता है जिसके पति के पेमेंट वालेट में अच्छा खासा बैलेंस हो और बेचारे पति के पास बच निकलने का कोई रास्ता न हो। अब छुट्टी के दिन शकीरा का पति काम का बहाना भी नहीं कर सकता।
सुबह सब लोग देर से उठे थे
क्योंकि ना तो शकीरा के पति को ऑफिस जाना था और ना ही उसके बेटे को स्कूल। इसलिए
बारह बजे के आस पास उन लोगों ने ब्रंच के रूप में छोले भटूरे खाए और उसके बाद उनकी
गाड़ी चल पड़ी सेंट्रल मॉल की तरफ। सेंट्रल मॉल उनके घर से ज्यादा दूर भी नहीं है और
वहाँ पार्किंग भी आसानी से मिल जाती है।
मॉल के भीतर पहुँचने पर वे
सीधे अपना बाजार के भीतर पहुँचे और वहाँ पहुँचते ही शकीरा के इशारा करते ही उसके
पति रमेश बाबू ने अपने हाथ में ठेलागाड़ी यानि शॉपिंग कार्ट थाम ली। सबसे आगे शकीरा
का बेटा गोलू, उसके पीछे शकीरा और उन सबके पीछे रमेश बाबू। ऐसी ही
टीम लगभग हर तरफ दिख रही थी जिसमें माँ और बच्चे आगे-आगे चल रहे थे और ठेला गाड़ी
को घसीटते हुए घर का मुखिया उनके पीछे-पीछे चल रहा था।
अपना बाजार में पहुँचते ही
शकीरा की खुशी दोगुनी हो गई। हर तरफ छूट और स्पेशल ऑफर के इश्तहार लगे हुए थे और
ग्राहकों को अपनी ओर खींच रहे थे। कोल्ड ड्रिंक की दो बड़ी बोतल खरीदने पर एक बोतल
मुफ्त मिल रही थी। रमेश बाबू ने कहा कि डायबिटीज के कारण उन्हें कोल्ड ड्रिंक की
मनाही है और शकीरा भी अपनी फिगर को लेकर ज्यादा ही जागरूक रहती है तो शकीरा ने कहा
कि घर में बिना नोटिस के आने वाले मेहमानों के लिए पहले से इंतजाम रखना जरूरी होता
है। इसी तरह से डील का फायदा उठाने के चक्कर में ज्यादातर सामानों के बड़े पैक
खरीदे गए जो कि उनके छोटे परिवार के लिए कम से कम तीन महीनों के लिए काफी होते।
ऐसे ही चलते चलते और
शॉपिंग कार्ट भरते हुए जब वे जैम जेली और अचार वाले सेक्शन में पहुँचे तो देखा
वहाँ ढ़ेर सारी औरतें एक रैक के पास धक्कामुक्की कर रही थीं। पास जाने पर पता चला
कि वहाँ पर मिठास ब्रांड के जैम पर एक पर एक का ऑफर चल रहा था। शकीरा बाकी औरतों
को धकियाते हुए उस भीड़ के भीतर पहुँच गई और उधर से जैम की आठ शीशियों के साथ एक
विजेता की मुद्रा में लौटी। जब रमेश बाबू ने उन शीशियों का मुआयना किया तो देखा कि
उनमें से दो ऑरेंज जैम की शीशियाँ थीं,
दो मैंगो जैम, दो
मिक्स्ड फ्रूट और बाकी बची दो शीशियाँ क्रैनबेरी जैम की थीं। रमेश तो जैम खाता ही
नहीं क्योंकि उसे डायबिटीज है। उसके बच्चों को केवल मिक्स्ड फ्रूट जैम पसंद हैं और
वे कभी कभी ऑरेंज या मैंगो जैम का इस्तेमाल कर लेते हैं। लेकिन घर में क्रैनबेरी
जैम किसी को पसंद नहीं है। कई साल पहले ट्रायल के लिए एक बार शकीरा ने खरीदा था तो
शीशी काफी दिनों तक वैसे ही पड़ी रही और जब जैम के ऊपर सफेद फफूंद पनप गई तो उस
शीशी को कचरे के डिब्बे में फेंक दिया गया था। सबने एक बार चखा जरूर था लेकिन हर
किसी को उसके अजीब से स्वाद से उबकाई आने लगी थी। इस बार पूछने पर शकीरा ने बताया
कि आने वाले महीनों में जब गोलू के किसी दोस्त का जन्मदिन आएगा तो उसे गिफ्ट कर
देगी।
शॉपिंग के बाद वे लोग जब
घर लौटे तो क्रैनबेरी जैम को लेकर शकीरा को थोड़ी शंका हुई और उसने रमेश बाबू से
कहा कि जाकर उसे वापस कर आए। रमेश बाबू का जवाब था कि सौ रुपए की शीशी वापस करने
के लिए उसे दो सौ रुपए की पेट्रोल जलाना और फिर पचास रुपए पार्किंग में खर्च करना
मुनासिब नहीं लगता है। इसलिए भले ही वह जैम घर में रखे रखे सड़ जाए उन्हें कोई
परवाह नहीं। वैसे भी आठ में से चार शीशियाँ तो मुफ्त में ही मिली थीं।
बात आई गई हो गई और जैम की
वे दोनों शीशियाँ फ्रिज की शोभा बढ़ा रही थीं। जब भी कोई फ्रिज का दरवाजा खोलता तो
उसे मुँह भी चिढ़ा देती थीं।
कई महीने बीतने के बाद
बच्चों के स्कूल में सर्दी की छुट्टियाँ शुरु हुईं तो शकीरा ने सोचा कि गोलू को
उसके ननिहाल घुमा दिया जाए। सही तारीख देखकर टिकट कटाया गया और रमेश बाबू ने गोलू
और उसकी मम्मी को स्टेशन जाकर गोलू के ननिहाल जाने वाली रेलगाड़ी में बिठा दिया। रमेश
बाबू को छुट्टी नहीं मिल पा रही थी इसलिए तय हुआ कि लौटते समय गोलू के मामा पटना
स्टेशन पर ट्रेन में बिठा देंगे और फिर दिल्ली स्टेशन पर जाकर रमेश बाबू शकीरा और गोलू को ले आएँगे।
कोई बीस दिन बीतने के बाद
गोलू अपनी मम्मी के साथ वापस लौट गया। जैसे ही उनकी कार उनके घर के पास रुकी तो शकीरा
को पड़ोसन के बरामदे में लगे बगीचे में कुछ
जानी पहचानी चीज नजर आई। गौर से देखने पर पता चला कि पड़ोसन ने क्रैनबेरी जैम की
खाली शीशी में मनीप्लांट का पौधा लगाया था। उस शीशी का डिजाइन इतना सुंदर था का मनीप्लांट
का रूप उसमें निखर कर आ रहा था। शकीरा ने
उसे नजरअंदाज करने की कोशिश की लेकिन अपने घर का ताला खोलते समय भी पता नहीं क्यों
उसका ध्यान उसी शीशी पर चला जाता था।
घर के भीतर पहुँचने के बाद
सफर की थकान मिटाने के लिए पहले नहाने धोने का काम हुआ उसके बाद नाश्ते का। शकीरा की
सहूलियत के लिए समय रहते रमेश बाबू ने गर्मागरम नाश्ते का ऑर्डर जोमैटो पर दे दिया
था। जैसे ही शकीरा और गोलू नहा धोकर तैयार हुए नाश्ता उनके सामने हाजिर था।
वह रविवार था इसलिए रमेश
बाबू को ऑफिस नहीं जाना था। थोड़ी देर आराम करने के बाद शकीरा अपने घर की साफ सफाई में जुट गई। कोई भी घर अगर
मर्द के भरोसे बीस दिनों के लिए छूट जाए तो उसकी हालत देखते बनती है। ऐसा लगता है
जैसे वहाँ इनकम टैक्स वालों की रेड पड़ी हो। रमेश बाबू के कपड़े सोफे पर बिखरे हुए
थे, ऑफिस की फाइलें किचन में और चाय के जूठे कप स्टडी रूम में। सब
कुछ ठीक ठाक करने के बाद शकीरा का ध्यान किचन की तरफ गया। वहाँ भी बुरा हाल था।
सिंक के आस पास बरतन बिखरे पड़े थे। पूछने पर पता चला कि महरी तीन दिनों से नहीं आई
थी।
सब कुछ ठीक ठाक करने के
बाद शकीरा ने जब फ्रिज का दरवाजा खोला तो हक्का बक्का हो गई। फ्रिज में क्रैनबेरी
जैम की शीशी नहीं दिख रही थी। उसने जब इस बाबत रमेश बाबू से पूछताछ की तो पता चला
कि पड़ोसन को दे दी। शकीरा इस बात के लिए परेशान थी कि अचानक से रमेश बाबू अपनी
पड़ोसन का इतना खयाल कैसे रखने लगे। एक दिन रमेश बाबू की तबीयत कुछ नासाज चल रही थी
इसलिए वे ऑफिस नहीं गए थे। उनका हाल चाल पूछने पड़ोसन आई थी। फिर पड़ोसन ने जब उनके
लिए नाश्ता और चाय बनाई तो कोई सामान निकालने के लिए फ्रिज खोला और उसे क्रैनबेरी
जैम की वह शीशी दिखी जिसका सील अभी तक अपनी जगह पर था। चाय और नाश्ते का आनंद लेते
हुए रमेश बाबू को जब पता चला कि पड़ोसन को क्रैनबेरी जैम बहुत पसंद है तो उन्होंने
उसे पड़ोसन को दे दिया। शकीरा से कहने लगे
कि पड़े पड़े सड़ जाने से तो अच्छा है कि किसी के काम आ गया।
उसके बाद शकीरा का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया। बताने लगी कि
इतने सालों से कभी भी वह पड़ोसन शकीरा का
हालचाल लेने नहीं आईं। शकीरा को यह भी
मलाल था कि इतने दिनों तक रमेश बाबू ने शकीरा की पसंद नापसंद के बारे में कभी नहीं पूछा और एक
दिन पड़ोसन ने चाय क्या पिला दी उसकी पसंद नापसंद तक का खयाल रखने लगे। शकीरा को पूरा शक हो रहा था कि उसके पीठ पीछे कोई और भी
खिचड़ी पक चुकी थी। उसने फौरन लैपटॉप ऑन किया और उसपर तत्काल रिजर्वेशन के जरिये
अपना और गोलू का टिकट बुक किया उसके बाद टैक्सी बुलवाई और गोलू को लेकर अपने मायके
के लिए रवाना हो गई।