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Saturday, July 2, 2016

मोहिनी की तलाश

आपमें से अधिकतर लोगों को भष्मासुर की कहानी जरूर याद होगी। भष्मासुर नाम का राक्षस अमर होने की इच्छा रखता था। इसलिए उसने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए वर्षों तक घनघोर तपस्या की जिससे भगवान शिव खुश हो गए और प्रकट होकर भष्मासुर से कोई वरदान माँगने को कहा। जब भष्मासुर ने अमर होने का वरदान माँगा तो भगवान ने बताया कि अमरत्व पर केवल भगवानों की मोनोपॉली होने के कारण असुर या मानव को इसका वरदान नहीं दिया जा सकता था। फिर काफी मोलभाव होने के बाद भष्मासुर ने वरदान माँगा कि जिस किसी के सिर पर उसका हाथ पड़ जाएगा वह वहीं पर जल कर भष्म हो जाएगा। भगवान शिव ने तथास्तु कहा और भष्मासुर को लगा जैसे उसके हाथ कोई परमाणु बम लग गया हो। अपनी नई शक्ति की जाँच करने के लिए वह भगवान शिव के पीछे दौड़ा। आखिर में इस कहानी में भगवान विष्णु मोहिनी का अवतार लेते हैं और भष्मासुर को डांस सिखाने के बहाने उसे अपने ही सिर पर हाथ रखने को विवश कर देते हैं। भष्मासुर जल कर राख हो जाता है और कहानी खत्म हो जाती है।

हिंदुस्तान के एक बहुत ही पढ़े लिखे राजनेता भी भष्मासुर की तरह बर्ताव कर रहे हैं। ऐसा वे वर्षों से कर रहे हैं। उन्होंने भारत की राजनीति के कई महत्वपूर्ण देवी देवताओं को प्रसन्न करने के लिए वर्षों से तपस्या की। जब भी किसी देवी या देवता ने उनसे प्रसन्न होकर उन्हें अपना शरणागत बनाया तो फिर इस कलियुगी भष्मासुर ने उस देवी या देवता को ही भष्म करने की कोशिश की। कुछ महान आत्माओं की राजनैतिक मृत्यु (हार) इस भष्मासुर के कारण पहले भी हो चुकी है। आप जब भारत के आधुनिक इतिहास का अध्ययन करेंगे तो आपको इसके कई उदाहरण मिल जाएँगे। इस कलियुगी भष्मासुर से घबड़ाकर काफी वर्षों तक कोई भी राजनेता या राजनैतिक पार्टी उससे दूर रहना ही बेहतर समझती थी। इसलिए वे एक सांसद वाली पार्टी चलाते हुए अपना जीविकोपार्जन कर रहे थे।

लगभग दो वर्ष पहले भारत (या विश्व) की सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टी ने उन्हें अपने आप में समाहित कर लिया। बस फिर क्या था, इस भष्मासुर को लगा कि उसे दूसरे को भष्म करने की शक्ति (जो वर्षों पहले खो गई थी) दोबारा मिल गई। अपनी शक्ति का सदुपयोग करते हुए इस कलियुगी भष्मासुर ने भारत के तैंतीस करोड़ नेताओं में से चुन चुनकर बदला लेना शुरु किया। कई नेता इस भष्मासुर के प्रहार से मर्माहत होते दिखे। उन्हें पीड़ा से तड़पते देखकर अनगिणत टीवी चैनलों के अनगिणत रिपोर्टर को अभूतपूर्व आनंद की अनुभूति होने लगी। इस तरह से सबका समय सुखपूर्वक बीत रहा था कि बीच में एक आयातित गंधर्व आए जिन्हें भारतवर्ष की अर्थव्यवस्था को ठीक करने की जिम्मेदारी दी गई। इन नए गंधर्व के रूप और गुणों की चर्चा न सिर्फ पूरा आर्यावर्त करता था बल्कि पूरा विश्व भी उस रूप और गुणों की खान से प्रभावित था। इसलिए जब इस कलियुगी भष्मासुर के प्रहारों से वह बेचारा गंधर्व मर्माहत हुअ जा रहा था तो लगता था की पूरी प्रजा और पूरी मीडिया भी मर्माहत हो रही थी। उस बेचारे गंधर्व ने अंत में हार मान ली और अपनी जान बचाने के लिए अपने लोक को प्रस्थान करने का फैसला लिया। गंधर्व होने के नाते उसे भारत के किसी भी देवी या देवता का माकूल समर्थन नहीं मिला।

इस जीत से उत्साहित होकर कलियुगी भष्मासुर ने फैसला किया कि उच्च पदों पर आसीन देवी देवताओं पर प्रहार किया जाए। लेकिन इस कोशिश में उसे कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। अपनी झल्लाहट में उसने अब सीधा भगवान शिव पर ही प्रहार करना शुरु कर दिया है। भगवान शिव ने पहले तो अन्य किन्नरों और गंधर्वों द्वारा भष्मासुर को समझाने की कोशिश की लेकिन उनके सारे प्रयास विफल हो गए। थक हारकर भगवान शिव अब सीधा भगवान विष्णु के पास अपनी गुहार लेकर गए। उनसे विनती की कि वे मोहिनी का रुप लेकर उसे अपनी डांस क्लास के बहाने फँसा लें। भगवान विष्णु का मानना है कि पारंपरिक शास्त्रीय नृत्य आजकल फैशन में नहीं है। अब तो लोग रेमो फर्नांडिस और प्रभु देवा के फ्यूजन डांस को ज्यादा तरजीह देते हैं। फिर मोहिनी बनने के चक्कर में ये खतरा भी है कि भष्मासुर को फँसाने के चक्कर में कहीं वे स्वयं ही जलकर भष्म न हो जाएँ। भगवान विष्णु ने किसी और मोहिनी को तलाश करने की सलाह दी। 1980 के दशक की मोहिनी यानि माधुरी दीक्षित से बात की गई। उन्होंने जवाब भेजा कि अब उन्हें अपने बच्चों और परिवार को पालने की जिम्मेदारी निभानी होती है। फिर अपने डॉक्टर पति की सलाह पर उन्होंने केवल डांस कंपिटीशन में जज बनने का फैसला किया है। कई आधुनिक मोहिनियों से इस बारे में बातचीत करने पर जवाब मिला कि अभी तो उनकी खाने खेलने की उम्र है। इतनी कच्ची उम्र में कोई भी किसी भष्मासुर जैसे कुरूप राक्षस के लिए अपनी जान भला क्यों देगा।


फिलहाल मोहिनी की तलाश जारी है ताकि भष्मासुर से हमेशा के लिए छुट्टी मिल जाए। इस बीच भष्मासुर अनेक सुरों, असुरों, गंधर्वों, किन्नरों और तुच्छ मानवों को परेशान कर रहे हैं। 

Friday, July 1, 2016

कुँवारा बाप

एकता ने तुषार से कहा, “अब तो तुम्हारी भी उम्र सारी हदें पार कर चुकी है। ना तो कोई फिल्म मिल रही है और ना ही कोई ऐसी लड़की जो तुमसे शादी करने को तैयार हो। क्या सोचा है, आगे की जिंदगी के लिए?”

तुषार ने जवाब दिया, “मेरे बारे में सोचने से पहले अपने बारे में सोचो। तुम्हारा क्या होगा?”
इस पर एकता ने कहा, “मैंने हम दोनों के बारे में सोच लिया है। शुरु से मुझे ही पूरे परिवार की जिम्मेदारी उठानी पड़ रही है। बूढ़े माँ बाप और एक प्रौढ़ होते हुए भाई की जिम्मेदारी उठाना आसान काम नहीं है। अब इस ढ़लती उम्र में कौन मुझसे शादी करेगा। अब तो मैं केवल एक ही बात सोच रही हूँ। कोई ऐसा होता जो हमारे मरने के बाद हमारी चिता को मुखाग्नि देता। ऐसा करो कि तुम किसी बच्चे के पिता बन जाओ।“

तुषार ने चौंकते हुए कहा, “मैं अकेला आदमी हूँ। किसी बच्चे के लालन पालन की जिम्मेदारी मैं अकेले कैसे उठा सकता हूँ?”

एकता ने कहा, “अरे, उस सुष्मिता सेन को देखो। दो-दो बच्चियों को अकेले ही पाल रही है।“
तुषार ने कहा, “तुम तो बॉस हो। तुम भी सुष्मिता सेन की तरह बन के दिखाओ।“

एकता ने कहा, “मैंने हमेशा कुछ नया करने की कोशिश की है। मेरे सारे टीवी सीरियल कुछ अलग किस्म के होते हैं। मैं चाहती हूँ कि तुम सुष्मिता सेन की तरह बन के दिखाओ।“

तुषार ने पूछा, “तुम चाहती हो कि मैं मिस वर्ल्ड या मिस यूनिवर्स बन के दिखाऊँ। ऐसा मुझसे नहीं हो पाएगा।“

एकता ने कहा, “नहीं, मैं चाहती हूँ कि तुम भी किसी बच्चे को अपना लो।“

तुषार ने पूछा, “तो तुम चाहती हो कि मैं भी किसी बच्चे को गोद ले लूँ। या फिर महमूद की तरह कुँवारा बाप बन जाऊँ।“

एकता ने किसी महान ज्ञानी की मुद्रा में कहा, “1970 के दशक में टेकनॉलॉजी का उतना विकास नहीं हुआ था कि महमूद उसकी मदद लेकर पिता बनने का सुख पा सकते थे। फिर अब भारत पोलियो मुक्त हो चुका है। इसलिए किसी पोलोयो पीड़ित बच्चे को अपनाकर टीआरपी रेटिंग नहीं बढ़ने वाली। आज का जमाना काफी हाइटेक हो चुका है। अब प्रोजेरिया से पीड़ित बच्चे को ढ़ूँढ़ना तो तारे तोड़ने जैसा है। तुमने सुना नहीं किस तरह से बॉलिवुड के दो मशहूर खान ने नई टेकनॉलॉजी की मदद से 50 की उम्र में पिता बनने का सुख प्राप्त किया? आजकल तो अधेड़ उम्र में पिता बनने का फैशन चल पड़ा है। नारायण दत्त तिवारी को नहीं देखा था? कैसे अस्सी साल की उम्र में पिता बनने पर शर्मा और सकुचा रहे थे।”

तुषार उछलकर सोफे पर बैठ गया और बोला, “तुम चाहती हो कि मैं महाराज दशरथ की तरह पुत्र्येष्टि यज्ञ करूँ, या फिर विचित्रवीर्य की तरह वेदव्यास की मदद लूँ। अरे, उन राजाओं के पास इस काम को मूर्त रूप देने के लिए रानियाँ भी थीं। मेरे पास तो ऐसा कुछ भी नहीं है। मैं कोई सूर्यदेव तो हूँ नहीं कि झट से किसी कुंती को मंत्रप्रसाद दे दूँ।“

एकता ने गंभीर मुद्रा में कहा, “तुम हमेशा ऐसे ही रहोगे। घिसे पिटे खयालों के कारण ही तुम्हारी कोई भी फिल्म हिट नहीं होती। आज की टेकनॉलॉजी के कारण अब तीन-तीन क्या, एक रानी की भी जरूरत नहीं पड़ेगी। एक बार तुम किसी बच्चे के पिता बन गए फिर ट्विटर पर तुम्हारे फॉलोवर की संख्या बड़े-बड़े नेताओं और अभिनेताओं से कई गुणा अधिक हो जाएगी। फिर तुम्हारी फोटो दिल्ली टाइम्सजैसे अखबारों में रोज छपेगी। टीवी पर के पैनल बहसों में तुम कम से कम एक सप्ताह तक छाए रहोगे। फिर मैं तुम्हें लीड रोल में रखते हुए एक सीरियल बनाऊँगी बाप भी कभी बेटा था।“


फिर दोनों भाई बहन इस बात के लिए राजी हो गए। उचित समय बीतने पर तुषार का मुसकराता चेहरा अखबारों और टीवी पर नजर आने लगा। आखिरकार, वह एक कुँवारा बाप बन ही गया। 

एन सी आर में स्कूल

भारत की राजधानी दिल्ली से सटे कुछ शहर एनसीआर के क्षेत्र में आते हैं। सरकारी मान्यताओं के अनुसार ये सभी शहर दिल्ली की श्रेणी में ही आते हैं। ऐसा इसलिए भी किया गया है ताकि दिल्ली पर से जनसंख्या का दवाब कम हो। जो लोग गुड़गाँव, नोएडा, फरीदाबाद या गाजियाबाद में रहते हैं उनके आत्मसम्मान को भी इस बात से संतुष्टि मिलती है। लेकिन दिल्ली के ठीक उलट इन शहरों में ऐसी बहुत सारी समस्याएँ हैं जिन्हें देखकर लगता है कि इनसे दिल्ली अभी भी दूर है। ऐसी ही एक समस्या है इन शहरों के स्कूलों की।

दिल्ली में ऐसा माना जाता है कि दिल्ली सरकार के हस्तक्षेप के कारण स्कूलों की फीस थोड़ी कम है; जिसे मिडल क्लास थोड़ी कम परेशानी से दे पाता है। लेकिन एनसीआर के शहरों के स्कूलों की फीस कम से कम डेढ़गुणा तो है ही। यहाँ के स्कूल बाहर से किसी फाइव स्टार होटल को भी मात देते हैं; खासकर से उनका रिसेप्शन वाला पोर्शन। रिसेप्शन में आपको फुल मेकअप में रिसेप्शनिस्ट नजर आ जाएगी जो इतनी अंग्रेजी तो बोल ही लेती है जिससे ऐडमिशन के लिए आए बच्चे के माँ बाप पूरी तरह से अभिभूत हो जाएँ। रिसेप्शनिस्ट से बातचीत के बाद स्कूल का पूरा सिस्टम नए आगंतुक को तरह तरह से लूटने में लग जाता है। सबसे पहले बारी आती है रजिस्ट्रेशन की जिसके नाम पर कम से कम एक हजार रुपए वसूले जाते हैं। फिर बच्चे का लिखित टेस्ट होता है। ये बात और है कि ज्यादातर नेता अपने भाषणों में उस टेस्ट के खिलाफ बोलते हैं। टेस्ट के बाद बच्चे और उसके माता पिता का स्कूल के प्रिंसिपल के साथ इंटरव्यू होता है जिसे इंटरऐक्शन का नाम दिया जाता है। इस इंटरऐक्शन में इस बात को टटोलने की कोशिश होती है कि बच्चे के माता पिता स्कूल की फीस देने में समर्थ हैं या नहीं।

टेस्ट के दो तीन दिन बाद बच्चे के पास होने की खुशखबरी फोन पर आती है। उसके बाद तरह तरह से दवाब बनाने का सिलसिला शुरु हो जाता है। बताया जाता है कि जल्दी से सीट बुक करवा लें नहीं तो सारी सीटें भर जाएँगी। ये और बात है कि ज्यादातर स्कूलों में सीटें कभी नहीं भरती हैं और साल भर ऐडमिशन चलता रहता है। ऐडमिशन चार्ज और ऐनुअल चार्ज के नाम पर मोटी रकम वसूली जाती है। फिर स्कूल वाले इस बात के लिए भी दवाब डालते हैं कि आप ट्रांसपोर्ट के लिए बुकिंग करवा लें। मैं अपने बच्चे को रोज स्वयं स्कूल छोड़ने जाता हूँ। मुझे भी रोज इस बात के लिए समझाने की कोशिश होती है कि ट्रांसपोर्ट बुक करवा लूँ।

सरकार की गाइडलाइन कहती है कि स्कूलों में केवल एनसीईआरटी की किताबें चलेंगी। लेकिन ज्यादातर स्कूल वाले प्राइवेट पब्लिशर की किताबें चलवाते हैं जिनके ऊपर एमआरपी स्कूल की मर्जी के मुताबिक छपा होता है। आपको हर सामान; यानि कि कॉपी, पेंसिल, ड्रेस, वगैरह स्कूल से ही लेने हैं। आजकल हर स्कूल में स्मार्ट क्लास का रोग भी लग गया है। स्मार्ट क्लास के लिए अलग से फीस ली जाती है। ये अलग बात है की टीचर इतनी स्मार्ट नहीं हैं कि स्मार्ट क्लास जैसे टूल का सही इस्तेमाल कर सकें।

इन स्कूलों में पढ़ाई के नाम पर ऊल जलूल प्रोजेक्ट दिए जाते हैं। सबसे अच्छी साज सज्जा वाले प्रोजेक्ट को सबसे अच्छे नंबर मिलते हैं। अंदर क्या लिखा है इससे किसी को कोई मतलब नहीं है। जब मैंने पढ़ाई के बारे में पूछा तो जवाब मिला कि आप अपने बच्चे को ट्यूशन लगवा दीजिए ताकि वो ठीक से पढ़ सके। मुझे लगा कि जवाब देने वाली टीचर अंतर्मन में कह रही हो कि उन्हें पढ़ाने की कला तो आती ही नहीं है।


इन सब के बावजूद ताज्जुब यह होता है कि शायद ही कोई बच्चा होगा जिसे 90% से कम नंबर मिलते हों। गणित के प्रॉब्लम हल करते समय आप किसी बच्चे से पहाड़ा पूछ लीजिए तो 90% बच्चे बिना अ‍टके 20 तक का पहाड़ा शायद ही बोल पाएँ। स्कूल वाले बच्चों को अच्छे नंबरों से इसलिए पास कर देते हैं ताकि उनके ग्राहक संतुष्ट रहें और लगातार बिजनेस चलता रहे। 

Wednesday, June 29, 2016

अखबार में फोटो

सुबह सुबह मैं अखबार पढ़ रहा था। पहले पेज पर ही हमारे प्रधानमंत्री मोदी जी की तस्वीर छपी थी। पास में ही मेरी पाँच साल की बेटी बैठी थी। मैंने उसे वह फोटो दिखाई और पूछा, “ये किसकी फोटो है?”

उस छोटी सी बच्ची ने झट से पहचान लिया और बोली, “मोदी!”

मैं भी आश्चर्य में पड़ गया क्योंकि उस उम्र के बच्चे तो सारा दिन कार्टून देखते हैं। भला उनकी अनोखी दुनिया में किसी राजनेता का क्या काम। मैंने उससे फिर पूछा, “तुम्हें कैसे पता? इस आदमी को कैसे जानती हो?”

उसने जवाब दिया, “अरे, पता नहीं है, यह आदमी बहुत बोलता है। जब देखो तब बोलता ही रहता है।“

उसका जवाब सुनकर मैं बहुत कुछ सोचने को विवश हो गया। वह अक्सर मेरे साथ पास के ही पार्क में खेलने जाया करती है। जब मैं वहाँ पर बैठकर अपने पड़ोसियों के साथ भारत की राजनीति, अर्थव्यवस्था जैसे गंभीर विषयों पर बहस लड़ाता रहता हूँ तो हो सकता है वह उन बातों को सुनती हो। हो सकता है कि उसने अपनी माँ को भी दाल की बढ़ती कीमत पर चिंता जताते हुए सुना होगा। हो सकता है कि उसने टीवी पर होने वाले असंख्य पैनल डिसकशन को सुना होगा।

मुझे लगता है कि यह हमारी सत्ताधारी पार्टी के लिए भी चिंता का विषय है कि एक अबोध बच्ची उनके स्टार कैंपेनर का फोटो देखकर कहती है कि यह आदमी बहुत बोलता है। लगभग दो साल पहले भारत की जनता ने कांग्रेस के एक दशक के खराब शासन से तंग आकर, बड़ी उम्मीद से इस पार्टी को जिताया था। लोग इस उम्मीद में थे कि चीजों के दाम घटेंगे और लोगों की आमदनी बढ़ेगी। लेकिन हुआ ठीक उसके उलट। कुछ चीजों के दाम तो दोगुने से भी ज्यादा हो गए। रुपया और भी अधिक कमजोर हो गया। कई लोग: जो प्राइवेट नौकरी करते थे; अपनी नौकरी से हाथ धो बैठे। देश में कई जगह सांप्रदायिक तनाव बढ़ गए। मोदी जी की आड़ में कई नेताओं ने अपने विरोधियों को पाकिस्तान भेजने तक की धमकी दे डाली। मोटे तौर पर कहा जाए तो लोगों के सपने टूट गए।


मोदी जी अभी भी लोकप्रियता के मामले में अन्य किसी भी नेता से कोसों आगे चल रहे हैं। उनकी छवि एक मजबूत प्रशासक की है। उम्मीद है कि वे भी इस छोटी सी बच्ची की बातों पर ध्यान देंगे और अपनी पार्टी में वैसे लोगों का मुँह बंद करेंगे जिन्हें अनर्गल प्रलाप करने की आदत है। वे देश में ऐसा माहौल बनाने की कोशिश करेंगे ताकि यहाँ व्यवसाय फले फूले और आम जनता वाकई खुशहाल हो।  

तालमेल

“बड़ी देर लग गई लौटने में। क्या हुआ?” पूनम ने दरवाजा खोला और अपने पति से पूछा।

पूनम के पति विनोद ने अपना बैग लगभग पटकते हुए कहा, “हाँ, ट्रैफिक जाम कुछ ज्यादा ही था। आजकल तो अपनी कॉलोनी की ओर आने वाली सड़क पर कुछ ज्यादा ही जाम लगने लगा है।“

पूनम ने पानी का ग्लास विनोद के हाथों में थमाते हुए कहा, “जब हमने यहाँ शिफ्ट किया था तब तो ऐसा नहीं था। पिछले दो तीन सालों में इस कॉलोनी में नए मकान भी काफी बन गए हैं और नई दुकाने भी खुलती जा रही हैं। इसलिए जाम की समस्या बढ़ती ही जा रही है।“

विनोद ने एक ही साँस में पानी का गिलास खाली कर दिया और बोला, “अरे नहीं, देख नहीं रही हो सड़क पर हमेशा किसी न किसी काम के लिए खुदाई चलती ही रहती है। अरे तीन साल पहले ही तो नई सड़क बनी थी। इतने कम समय में ही इसकी हालत बदतर हो गई है।“

पूनम ने कहा, “पता नहीं, ये टेलिफोन वाले या जल बोर्ड वाले सड़क बनने के पहले अपना काम क्यों नहीं करते। उधर सड़क बनी नहीं कि इधर बिजली, टेलिफोन, जल बोर्ड और सीवर वालों की खुदाई चालू हो जाती है। सरकार के अलग-अलग विभागों में जरा भी तालमेल नहीं है।“

विनोद ने चाय की चुस्की लेते हुए कहा, “नहीं, मुझे तो लगता है कि इनमें बड़ा ही अच्छा तालमेल है। सभी विभाग वाले इसी बहाने एक दूसरे की कमाई बढ़ाते रहते हैं।“

पूनम ने आश्चर्य से पूछा, “वो कैसे?”


इस पर संजय ने कहा, “एक बार सड़क के लिए टेंडर निकलेगा जिससे ठेकेदार, इंजीनियर और अफसरों को कमाने का मौका मिलेगा। जैसे ही सड़क बनेगी तो जलबोर्ड की खुदाई का टेंडर निकलेगा। फिर से किसी ठेकेदार और इंजीनियर को कमाई का मौका मिलेगा। फिर उसके बाद बिजली विभाग का टेंडर निकलेगा जिससे किसी अन्य ठेकेदार या इंजीनियर को कमाई का मौका मिलेगा। इस तरह से जब पूरी सड़क लगातार खुदाई से जर्जर हो जाएगी तो फिर सड़क बनाने के लिए टेंडर निकलेगा। इस तरह से ये चक्र चलता रहेगा। बात समझ में आई? है न कमाल का तालमेल।“ 

Sunday, June 26, 2016

National Commission for Men

Karnataka Chief Minister Siddaramaiah is a nervous wreck these days. He is too horrified to even utter a single word; after what happened to him at a public function. Had it been a private function, he could have carried it with aplomb. All his reputation; earned after so many years of hard work; has suddenly burst like a fully inflated balloon. He is too ashamed to flaunt his 56 inch chest in public. To add insult to his injury, Pahlaj Nihalani is planning to censor all the press clippings and viral video of a woman kissing the Karnataka Chief Minister.

According to highly reliable sources, Siddaramaiah has secretly held a meeting with Somnath Bharti. Both of them are planning to form a National Commission for Men (NCM) with its head offices near the party office of Aam Admi Party. Even Salman Khan has assured them to join in their fight for the dignity of men. The newly formed NCM will look into cases pertaining to hurt dignity and sentiment of the male species in India. But they are facing an uphill task because National Commission for Women is against this idea.

With powerful male politicians at its helm, the proposed National Commission for Men begins its work without even setting a proper office. Within 24 hours, they get huge response from the common men of the country. There are many complaints regarding harassment of men by the females of the country. Our chief correspondent could lay his hands on some of the complaint letters which reached the office of NCM. Some excerpts are given below:

This is a complaint from a man from Bihar: “I was deeply addicted to the country liquor. I believe I was right because it promoted the Swadeshi industry; which even Baba Ramdev would approve. But my wife joined hands with several other women who rallied behind prohibition policy of Nitish Kumar. Unable to get my daily fix, I am just a disheveled heap of bones and muscles. My productivity is at its lowest. Please help.”

This is a complaint from a man from Delhi: “I was in a live in relationship with highly successful software professional. The lady always pressed me for an early marriage but I refused so that we could carry on with our independent lives. The woman has lodged an FIR; claiming harassment in the garb of false promise of marriage. I am a mama’s boy and cannot marry against my mother’s wishes. Isn’t it a show of respect for the womankind? But this lady has no respect for my mother. Please help.”

This is complaint from a doctor from a district hospital of a small town in Uttar Pradesh: “The lady in question was deeply in love with me. I tolerated her advances for many years. When I refused her marriage proposal, the lady threw acid at my face. My badly mutilated face has badly mutilated my clinical practice. What to do?”

This is a complaint from a superstar from the Bollywood film industry: “I have complaint against almost all the women of this country. I tried to make loveable relationship with many leading ladies of my fraternity. All of them ditched me midway and went on to pursue their own married lives. Even at the ripe age of fifty, I am unable to find a suitable match. Even the matrimonial classifieds have refused to carry my advertisement. Somehow, when I managed to get hold of a lady; these mediapersons are trying to spoil my last chance of finding a suitable bride.”

This is a complaint from a man who is working as a Sales Representative: “Because of my job, I need to travel on my bike for at least 10 hours in a day. When I come back to my home; I have no energy left to do anything. But my wife expects me to make a cup of coffee for her. She also wants me to take her for a ride. I am suffering from low performance not only in my sales but also in my personal life. It appears to me that all through the seven years of my married life, my wife has been taking me for a ride. She spends most of my income on her makeup and new dresses. Please help me to get out of this mess.”


Saturday, June 25, 2016

100% Placement

Every parent is worried these days; not about the higher education but about the placement after the coveted degree. Parents are paying through their noses so that their wards can secure the much coveted seat in premier institutions which can guaranty 100% placement. Every year; during the placement season, you will hear news stories about some bright guy or girl being offered astronomical pay packages by some or the other giant MNCs. But it seldom happens that the particular guy or girl belongs to your close circle of relatives and friends.

While selecting a particular institute of higher education, people keep the IITs and IIMs at the top of the list. If the candidate fails to secure a seat in these institutes, then people are forced to settle for some second rung institutions. While doing all these exercises, people always forget a highly promising institute which has given stellar performance; in terms of placement; right from its days of inception. I am talking about the Anna Hazare Institute of Political Management. This institute was the darling of the media; only a couple of years ago. It attracted some of the best minds and vagabonds of India in its first batch of students. Because of its octogenarian dean’s endless energy and astute mind, the institute could impart the true education among its alumni. So, it can be termed as a magic that all the past alumni of this institute created a record of sorts, i.e. of 100% placement in the very first batch.

You can make a long list of such candidates who are making their indelible mark in their chosen field. Let us start with the brightest kid who passed with honours from the Anna Hazare Institute of Political Management. Yes, I am talking about Arvind Kejriwal. This guy made a record comeback within a year to bag 67 out of 70 seats in Delhi Assembly. Even today, the guy is going great guns; as far as on the job performance is concerned.

The next number should be of General V K Singh; who was astute enough to switch sides at the right time and landed the post in the Union Ministry. Anupam Kher and Amir Khan also played some minor role in the workshop conducted by Anna Hazare. Amir seldom gets wrong in his choice of films and as a result keeps on producing blockbusters at the box office. Anupam Kher was able to make an alternate career in the industry of sycophancy; and he is also proving to be highly productive in his chosen field. The latest example of successful alumni from the esteemed institute is of Kiran Bedi. Initially, she applied for the same job opening as Arwind Kejriwal, but Arwind Kejriwal was the successful candidate for the vacany. After that ignominious rejection, Kiran Bedi did not lose her spirit. She has finally landed in the coveted post of gubernatorial assignment in Puducherry. The list can be pretty long so it is not prudent to mention all the candidates here. You are free to make your own list of successful alumni from the first batch of that institute.


Probably, the world economy was in bad shape or the local economy was not in healthy situation, hence the institute of Anna Hazare failed to attract any student in its subsequent batches. But all the parents and guardians of wannabe teenagers are also to blame for this development. They always go after the more established brands and tend to ignore a new player even if the new entrant promises a better future. I hope that Anna Hazare would once again muster up all his energies to reboot his flailing institution so that many kids of the new generation can benefit from his innovative pedagogy.