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Monday, December 19, 2016

टेम्पलेट से परेशानी

यदि आप इस ब्लॉग को पढ़ रहे हैं तो इससे यह साबित होता है कि आप कम्प्यूटर और इंटरनेट का इस्तेमाल बखूबी जानते हैं। इससे यह भी अनुमान लगाया जा सकता है कि आप टेम्पलेट का इस्तेमाल भी करते होंगे। कुछ लोग टेम्पलेट का इस्तेमाल थोड़ा बहुत करते होंगे तो कुछ लोग बहुत अधिक करते होंगे। सबकी अपनी अपनी पसंद के हिसाब से टेम्पलेट इस्तेमाल करने की आदत होती है और इसके खिलाफ अभी तक हमारे देश में कोई बैन भी नहीं लगा है। लेकिन मुझे लगता है कि कुछ गंभीर विषयों के मामलों में टेम्पलेट के इस्तेमाल से बचना चाहिए। लेकिन हमारे राजनेता तो अपना पूरा करियर टेम्पलेट के सहारे ही चला लेते हैं। इसका यदि आप एक उदाहरण खोजने निकलेंगे तो आपको हजार उदाहरण मिलेंगे।

गांधीजी के बारे में कहा जाता है कि वे टॉल्सटॉय से बहुत प्रभावित थे। टॉल्सटॉय की तर्ज पर गांधीजी एक ऐसे समाज की परिकल्पना करते थे जिसमें हर व्यक्ति एक समान होगा। ऐसा ही खयाल समाजवाद के शुरुआती प्रैक्टिशनरों का भी था। लेनिन और स्टालिन भी किसी ऐसे ही समाज का निर्माण करना चाहते थे। सोवियत रूस के विघटन के बाद यह साबित हो गया कि ऐसे समाज का चित्र कितना भी रोमांचकारी क्यों न हो, ऐसा समाज बनाना असंभव है। आज दुनिया के कुछ मुट्ठी भर देशों को छोड़कर कहीं भी समाजवादी सरकार नहीं है। चीन में सत्ता तो समाजवादी सोच वाली पार्टी की है लेकिन वहाँ भी पूँजीवाद ही हावी है। हमारे उत्तर प्रदेश में भी समाजवादी पार्टी की सरकार होने के बावजूद समाजवादी परिवार में भी पूँजीवाद का ही बोलबाला है। बहरहाल, गांधीजी हर घर में एक कुटीर उद्योग लगवाना चाहते थे। गांधीजी ने शायद हेनरी फोर्ड के आधुनिक मैनेजमेंट के बारे में नहीं पढ़ा होगा। उस समय भारत के समाज और आर्थिक व्यवस्था की स्थिति के बारे में मुझसे ज्यादा जानकारी गांधीजी को रही होगी। हो सकता है कि उस जमाने के हिसाब से उनकी सोच भी सही रही होगी। लेकिन तब से लेकर आजतक जमाना बदल चुका है। फिर भी हमारे आधुनिक नेता गांधीजी के दिये टेम्पलेट का ही इस्तेमाल कर रहे हैं। वे गांधीजी की तरह लंगोट तो नहीं पहनते लेकिन जैसे ही कोई आदमी राजनीति में आता है तुरंत वह धोती कुर्ता या पाजामा कुर्ता धारण कर लेता है। हो सकता है कि गांधीजी के जमाने में हिंदुस्तान के ज्यादातर लोग धोती कुर्ता या पाजामा कुर्ता पहनते रहे होंगे। लेकिन आज अगर आप गाँव में भी चले जाएँ तो ज्यादातर लोग आपको जींस टीशर्ट में मिलेंगे। एक खास उम्र से नीचे के लोग आपको शॉर्ट्स में ही नजर आएँगे। अरविंद केजरीवाल जब राजनीति में आये थे तो उनसे कुछ उम्मीद बनी थी। लेकिन उनकी जरूरत से ज्यादा ढ़ीली शर्ट देखकर लगता है कि गांधीजी के टेम्पलेट में उन्होंने दिल्ली के हिसाब से बदलाव भर कर दिया है। अखिलेश यादव और राहुल गांधी भारत की राजनीति के हिसाब से अभी युवा हैं। लेकिन ये दोनों भी कुर्ता पायजामा ही धारण करते हैं। बीजेपी के नेताओं के परिधान भी पारंपरिक ही होते हैं लेकिन कुछ डिजायनर किस्म के। अब इन नेताओं को कौन समझाए कि भारत बदल चुका है और अब ज्यादातर लोग पारंपरिक परिधान किसी खास मौके पर ही धारण करते हैं। जिस दिन देश के नेता यहाँ के आम लोगों जैसे पोशाक पहनने लगेंगे उस दिन हमारी समस्या काफी कुछ हल हो जायेगी।

गांधीजी गरीबों के बारे में बहुत कुछ सोचते थे। उनका मानना था कि कुटीर उद्योग से गरीबी दूर होगी। उनके टेम्पलेट को इंदिरा गांधी एक नये मुकाम पर तब ले गईं जब उन्होंने गरीबी हटाओका नारा दिया। ये बात और है कि अभी भी भारत में गरीबी मौजूद है। मजा तो तब आता है जब कोई नेता डिजायनर जैकेट के साथ कुर्ते पाजामे में किसी हवाई जहाज या हेलिकॉप्टर से उतरता है और अपने आप को गरीबों का सबसे बड़ा रहनुमा बताता है।

एक और कमाल का टेम्पलेट सम्राट अशोक ने बनाया था जिसकी नकल आज के नेता जमकर करते हैं। माना जाता है कि अशोक वह पहला राजा था जिसने जनता तक अपना संदेश पहुँचाने के लिए मास मीडिया का इस्तेमाल किया था। उस समय होर्डिंग का फैशन नहीं आया था इसलिए अशोक ने बड़े बड़े शिलालेख लगवाये जिनपर संदेश खुदे होते थे। उस जमाने में इस काम में कितना  खर्चा आया होगा, कितने का घोटाला हुआ होगा, ट्रैफिक को कितनी बाधा पहुँची होगी, ये सब बताना बहुत मुश्किल है। लेकिन आज के जमाने में मास मीडिया में विज्ञापन देने में करोड़ों का खर्चा आता है। इसमें नीचे स्तर के नेताओं में कुछ न कुछ बंदरबाँट भी होती होगी। कई शहरों में तो नेताओं की होर्डिंग ठीक ट्रैफिक साइन के ऊपर या मुहल्लों या शहरों का रास्ता बताने वाले बोर्ड के ऊपर ही लगा दी जाती है। इससे लोगों को अच्छी खासी परेशानी होती है। कई बार तो अखबार का कवर देखकर शक होने लगता है कि गलती से अखबार वाले ने अखबार की जगह किसी पार्टी का घोषणापत्र तो नहीं डाल दिया।


इन सबसे होता कुछ भी नहीं है। गरीब आज भी गरीब ही हैं। लोग आज भी भूखमरी से मर रहे हैं। भारत अभी भी स्वच्छ नहीं हो पाया है। यह सब टेम्पलेट इस्तेमाल करने के साइड इफेक्ट हैं। जिस दिन हमारे नेता सामान्य लोगों की तरह कपड़े पहने लगेंगे, जिस दिन पुलिस वाले हेल्मेट पहनकर बाइक चलाने लगेंगे, उस दिन हमारी ज्यादातर समस्याएँ अपने आप दूर हो जाएँगी। 

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