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Tuesday, November 29, 2016

पैसे कहाँ से आएँगे?

राहुल गहरी चिंता में डूबा हुआ था। राहुल की बीवी ने सुबह की चाय रखते हुए कहा था, “पिछले सप्ताह तुमने जो दो हजार रुपए निकाले थे वो अब खत्म होने को हैं। इस बार ज्यादा निकालना पड़ेगा। कामवाली को पगार देनी है। फूलवाले, अखबार वाले और गाड़ी पोंछने वाले को भी पैसे देने हैं।“

राहुल ने चाय की चुस्की लेते हुए कहा, “अरे हाँ, अगले सप्ताह तो किराया भी देना होगा। पंद्रह हजार तो किराये में ही निकल जाएँगे। मकानमालिक से बात की थी, कह रहा था कि चेक नहीं लेगा। बाकी लोगों को देने के बाद हमारे पास तो कुछ बचेगा ही नहीं।“

राहुल की बीवी ने कहा, “एटीएम से तो दो हजार ही निकलेंगे, उसकी भी गारंटी नहीं है। ज्यादातर एटीएम में कैश रहता ही नहीं है।“

राहुल ने कहा, “हाँ पिछली बार चार घंटे लाइन में लगा था तब जाकर कहीं पैसे निकाल पाया था। आज जाकर देखता हूँ कि ओरियेंटल बैंक के किसी लोकल ब्रांच से चेक से निकाल पाता हूँ या नहीं।“

राहुल की बीबी ने कहा, “तुम जल्दी से तैयार हो जाओ। तब तक मैं नाश्ता बना देती हूँ।“

थोड़ी देर बाद राहुल तैयार होकर नाश्ता करने लगा। इस बीच उसकी बीवी ने उसके बैग में चेक बुक, पास बुक और पहचान पत्र की फोटो कॉपी रख दी। राहुल नीचे उतरा, अपनी बाइक स्टार्ट की और चल पड़ा किसी ऐसे ब्रांच की तलाश में जहाँ उसे पैसे मिल सकते थे। वह तीन ब्रांच में गया लेकिन सब जगह एक ही जवाब मिला, “कैश नहीं है।“

चौथे ब्रांच के पास पहुँचकर उसने देखा कि बाहर लंबी लाइन लगी थी। उस लंबी लाइन को देखकर राहुल को कुछ उम्मीद बंधी। बाहर ही बैंक का एक स्टाफ भी खड़ा था जो लोगों के तरह तरह के सवालों के जवाब दे रहा था। राहुल के सवाल पर उसने कहा, “आय एम सॉरी। आपका खाता हमारे ब्रांच में नहीं है इसलिये हम आपको पैसे नहीं दे सकते हैं।“

राहुल ने कहा, “फिर कंप्यूटराइजेशन का क्या मतलब हुआ? माना कि मेरा खाता यहाँ नहीं है, लेकिन मैं तो हिंदुस्तान के किसी भी ब्रांच से पैसे निकाल सकता हूँ। मेरा खाता आपके ही बैंक में जो है।“

बैंक के स्टाफ ने बड़े रूखेपन से कहा, “सर, जब हमारे पास कैश ही कम आ रहा है तो इसमें हम क्या कर सकते हैं। सबसे पहले हम उन लोगों को पैसे देंगे जिनके खाते हमारे ब्रांच में है।“

राहुल निराश होकर अपने घर वापस आ गया। दरवाजा खोलते ही उसकी बीवी ने पूछा, “क्या हुआ, पैसे मिले?”

राहुल धम्म से सोफे पर बैठ गया और बोला, “अरे नहीं, बैंक वाले बता रहे हैं कि मेरा खाता जिस ब्रांच में है वहीं जाना होगा।“

राहुल की बीवी ने कहा, “लेकिन हमारा खाता तो गुड़गाँव की ब्रांच में है। अब क्या करोगे?”

राहुल ने कहा, “यही तो मुसीबत है। यहाँ से मेरा ब्रांच लगभग पचास किमी दूर है। लेकिन वह एक छोटा ब्रांच है। पता चला कि वहाँ पहुँचे तो वहाँ भी कैश न मिले। ऐसा करता हूँ कि कल कनाट प्लेस चला जाता हूँ। कनाट प्लेस के ई ब्लॉक में ओरियेंटल बैंक का एक बड़ा सा ब्रांच है। उम्मीद है कि कनाट प्लेस की ब्रांच में पैसे मिलने में कोई परेशानी नहीं होगी।“

राहुल की बीवी ने कहा, “अब जाने से क्या फायदा। दो बजने जा रहे हैं।“

राहुल ने कहा, “सोच रहा हूँ कि कल सुबह आठ बजे ही कनाट प्लेस के लिये चल दूँगा। यहाँ से बाइक से वैशाली मेट्रो स्टेशन जाउँगा। फिर वहाँ से मेट्रो ट्रेन से राजीव चौक चला जाउँगा। फिर देखते हैं क्या होता है।“

अगले दिन राहुल सुबह आठ बजे के आस पास रुपये निकालने के मिशन पर निकल पड़ा। उसकी बीवी ने एक टिफिन भी दे दिया ताकि रास्ते में कुछ खरीदकर पैसे बरबाद करने की नौबत न आये। मेट्रो के प्रीपेड कार्ड में बैलेंस था ही इसलिए मेट्रो के किराये की चिंता नहीं थी। राहुल ने पर्स में तीन सौ रुपये देखकर एक मशहूर शेर कहा, “आज इतनी भी मयस्सर नहीं मयखाने में, जितनी छोड़ दिया करते थे पैमाने में।“

शेर सुनकर उसकी बीवी ने कहा, “तुम भी अजीब इंसान हो। घर में खाने को फूटी कौड़ी नहीं है और तुम्हें शेर की सूझी है।“

राहुल को अपने घर से वैशाली मेट्रो स्टेशन तक पहुँचने में एक घंटा लग गया। उसके बाद मेट्रो से लगभग पच्चीस मिनट की यात्रा के बाद वह राजीव चौक स्टेशन पहुँच गया। राजीव चौक से बाहर गेट नंबर सात से निकलते ही सामने ओरियेंटल बैंक का बोर्ड नजर आया। वहाँ पर एक भी आदमी नहीं देखकर राहुल के मन में खटका हो रहा था। गेट पर एक दरबान खड़ा था। दरबान ने अपनी दाईं बाँह फैलाकर राहुल का रास्ता रोका और पूछा, “हाँ भई, कहाँ?”

राहुल ने कहा, “भैया, पैसे निकालने हैं, चेक से।“

दरबान ने कहा, ‘आपका खाता किस ब्रांच में है?”

राहुल ने कहा, “मेरा खाता गुड़गाँव के एक ब्रांच में है।“

इसपर दरबान ने थोड़ा झल्लाते हुए कहा, “तो अपने ब्रांच में जाओ। यहाँ कहाँ चले आये मुँह उठाये हुए। हमने दूसरे ब्रांच के खाताधारियों को पैसे देना बंद कर दिया है।“

राहुल ने कहा, “यहाँ पर ओरियेंटल बैंक का एक बड़ा ब्रांच भी तो है। आप बता सकते हैं कि वह किस ब्लॉक में है?”

दरबान ने कहा, “हाँ, ई ब्लॉक में है। लेकिन वहाँ जाकर भी कोई फायदा नहीं होगा।“

राहुल ने सोचा कि कोशिश करने में क्या हर्ज है। वह तेजी से चलता हुआ ई ब्लॉक की तरफ बढ़ा। लगभग दो सौ मीटर चलने के बाद उसे ई ब्लॉक के पास ओरियेंटल बैंक का ब्रांच दिखा। बाहर एक लंबी लाइन को देखकर उसे थोड़ी तसल्ली हुई। पास जाकर देखा तो वह लाइन एटीएम के बाहर लगी थी। बैंक के अंदर जाने के लिए कोई लाइन नहीं लगी थी। बैंक के गेट पर खड़े दरबान से पूछने पर पता चला कि वहाँ भी कैश नहीं था। जब राहुल ने दरबान से अपनी समस्या बताई तो उसने राहुल को अंदर जाने दिया। अंदर एक बड़ा सा वेटिंग एरिया था लेकिन वहाँ पर एक भी आदमी नहीं था। इधर उधर नजर दौड़ाने के बाद राहुल को एक काउंट के बाहर एक छोटी सी लाइन मिली जिसमें लगभग बीस लोग खड़े थे। उन सबके हाथों में चेक दिख रहा था। राहुल की उम्मीद कुछ कुछ बढ़ रही थी। वह उस लाइन में जाकर सबसे पीछे खड़ा हो गया। थोड़ी देर में लाइन में सबसे आगे खड़ा आदमी वापस लौट रहा था। उसके चेहरे पर के भाव देखकर कोई भी कह सकता था कि उसे पैसे नहीं मिले थे। राहुल ने उस आदमी से पूछा, “भाई साहब, पैसे मिल रहे हैं?”

उस आदमी ने कहा, “नहीं, आज पैसे नहीं मिल रहे हैं। ये लोग चेक लेकर टोकन दे रहे हैं। पैसे कल मिलेंगे।“

राहुल लाइन से निकलकर आगे पहुँच गया ताकि बैंक स्टाफ से जानकारी ले सके। उसने बैंक स्टाफ से कहा, “सर, मेरा खाता इस ब्रांच में नहीं है। मैं इस ब्रांच से पैसे निकाल सकता हूँ?”

बैंक के स्टाफ का मुँह लटका हुआ था। उसने भाव शून्य आँखों से कहा, “हाँ बिलकुल निकाल सकते हैं। जिनका खाता इस ब्रांच में है उन्हें हम दस हजार दे रहे हैं। जिनका खाता किसी दूसरे ब्रांच में है उन्हें हम केवल पाँच हजार दे रहे हैं। लेकिन आज हमारे पास कैश नहीं है। आज हम केवल टोकन दे रहे हैं। आपका खाता दूसरे ब्रांच में है इसलिए आपको पैसे परसों मिल पाएँगे।“

राहुल ने कहा, “सर, फिर कंप्यूटराइज्ड बैंकिंग का क्या मतलब हुआ? सरकार ने घोषणा की है कि अब कोई भी अपने खाते से चौबीस हजार तक निकाल सकता है।“

बैंक के स्टाफ ने हाथ जोड़कर कहा, “सर, हमारे पास कैश इतना कम आ रहा है कि हम अपने ग्राहकों को पूरी तरह से संतुष्ट नहीं कर पा रहे हैं। हमारी कोशिश है कि अधिक से अधिक लोगों को थोड़े ही सही पैसे दे सकें। रिजर्व बैंक ठीक से कैश सप्लाई ही नहीं कर पा रहा है।“

राहुल ने कोई जवाब नहीं दिया और वहाँ से वापस हो लिया। बैंक से निकलने के बाद राहुल बड़ा ही विक्षिप्त लग रहा था। बाहर ज्यादा भीड़भाड़ नहीं थी। कुछ जवान लड़के लड़की वहाँ चहलकदमी कर रहे थे, जो कि हमेशा ही करते रहते हैं। ज्यादातर फेरीवाले भी नदारद थे। राहुल एक बेंच पर बैठ गया और जेब से पान मसाला निकालकर मुँह में भर लिया। थोड़ी देर तक चबाने के बाद उसने पास रखे डस्टबिन में पीक की एक तेज धार छोड़ी। फिर उसने अपना मोबाइल फोन निकाला और अपनी बीवी का नंबर डायल किया, “यहाँ पर भी बुरा हाल है। यहाँ दो ब्रांच हैं लेकिन दोनों में से किसी के पास कैश नहीं है। सोचो, जब कनाट प्लेस का ये हाल है तो गुड़गाँव के छोटे ब्रांच में क्या होगा।“
उसकी बीवी ने कहा, “अब क्या करोगे?”

राहुल ने कहा, “अब गुड़गाँव तो कल ही जा पाउंगा। अभी जाने से कोई फायदा नहीं होगा। यहाँ से गुड़गाँव तो मेट्रो से आसानी से पहुँच जाउँगा। लेकिन एम जी रोड मेट्रो स्टेशन से मेरे बैंक का ब्रांच चौदह पंद्रह किलोमीटर दूर है। वहाँ से ऑटो से जाने में कम से कम एक घंटा लगेगा। वहाँ पहुँचते पहुँचते दो बज जाएँगे। पहुँचने पर पता चला कि वहाँ भी कैश खत्म हो चुका है। अब कल सुबह सात बजे बाइक से गुड़गाँव के लिये निकल लूँगा।“


थोड़ी देर बाद राहुल बोझिल कदमों से चलता हुआ गेट नम्बर दो से राजीव चौक मेट्रो स्टेशन के लिये जमीन के नीचे उतरने लगा। 

राजीव चौक पर सिक्योरिटी चेक के बाद राहुल ने अपना प्रीपेड कार्ड सेंसर के पास लगाया तो टर्न्सटाइल खुल गया और राहुल अंदर चला गया। उसने दाहिनी ओर देखा कि दो एटीएम के पास लंबी लाइनें लगी थीं। वह भीतर ही भीतर आत्मग्लानि से त्रस्त था क्योंकि उसके पास जो एटीएम था वह दो महीने पहले ही ब्लॉक हो चुका था। एटीएम को देखकर राहुल मन मसोसकर रह गया और तेजी से ट्रेन पकड़ने आगे बढ़ गया।

अगले दिन राहुल सुबह सुबह ही गुड़गाँव के लिये चल पड़ा। लगभग दो घंटे की थका देने वाली ड्राइव के बाद आखिरकार वह अपने बैंक के पास पहुँच गया। वहाँ पर ज्यादा भीड़ भाड़ नहीं थी। पास जाकर उसने देखा कि नो कैशनोटिस चिपका हुआ था। राहुल मन मसोसकर रह गया। फिर भी उसने सोचा कि एटीएम और चेक बुक के लिए आवेदन दे दे। गार्ड से बड़ी मिन्नत करने के बाद राहुल को बैंक के अंदर प्रवेश करने में सफलता मिली। उसने एटीएम और चेकबुक के लिए आवेदन दे दिया। उसके बाद थोड़ा सुस्ताने के लिए वह वहीं एक कुर्सी पर बैठ गया। लगभग पंद्रह मिनट के बाद बैंक के एक मैनेजर ने एक घोषणा की, “अभी अभी हमारे पास किसी बिजनेसमैन का एक लाख का डिपॉजिट आया है। इसलिए मैं केवल बीस लोगों को पेमेंट कर सकता हूँ वो भी पाँच हजार प्रति व्यक्ति को। आप जल्दी से लाइन में लग जाएँ।“


लोग आनन फानन में लाइन में लग गये। राहुल उन किस्मत वालों में से था जिन्हें टोकन मिल पाया। उसके बाद लगभग एक डेढ़ घंटे के इंतजार के बाद राहुल को पाँच हजार रुपये मिल ही गये। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि खुश हो या दुखी हो। उसने अपनी बीवी को फोन करके शुभ समाचार दिया और फिर वापस अपने घर की ओर चल पड़ा। 


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