सुबह से ही तेज बारिश हो रही थी इसलिए मौसम बड़ा सुहाना हो गया
था। शाम को जाकर बारिश थम चुकी थी। मेरी पत्नी ने कहा, “चलो जरा
बाहर टहल कर आते हैं। मौसम बड़ा ही सुहाना है। इसी बहाने बच्चे भी घूम लेंगे।“
मैने कहा, “चलो चलते हैं। रिंकी और टिंकू भी बहुत दिनों
के बाद आये हैं। बोलेंगे की चाचा ने कुछ खिलाया पिलाया नहीं।“
रिंकी और टिंकू मेरे बड़े भाई के बच्चे हैं। मैं, मेरी पत्नी,
मेरा बेटा गोलू, रिंकी और टिंकू; सब एक साथ निकल पड़े। लिफ्ट से बाहर आते ही सामने का पार्क नजर आ रहा था। बारिश
होने के कारण धुली हुई पत्तियाँ तरोताजा लग रही थीं। अपार्टमेंट के ज्यादातर लोग शाम
का आनंद लेने के लिए पार्क में टहल रहे थे। वहाँ से लगभग दो सौ मीटर चलने के बाद अपार्टमेंट
का में गेट पड़ता है। उस गेट से निकलते ही बाहर एक शॉपिंग कॉम्पलेक्स है। उसके सामने;
सड़क की दूसरी ओर कई ठेले वाले नजर आ रहे थे। वहाँ पर कुछ सब्जी वाले,
फल वाले, अंडे वाले, आइसक्रीम
वाले और एक गोलगप्पे वाला था। बच्चों ने आइसक्रीम की फरमाइश की थी। तभी मेरी पत्नी
ने कहा, “क्यों ना आज गोलगप्पे खायें। लगता है एक अरसा बीत गया
गोलगप्पे खाये हुए। जब हमारी नई-नई शादी हुई थी तब तो आप मेरे लिये ढ़ेर सारे गोलगप्पे
लाया करते थे।“
मैने कहा, “हाँ उस शहर में गोलगप्पों के अलावा और कुछ
भी नहीं मिलता था।“
फिर हम गोलगप्पे के खोमचे के पास खड़े हो गये। बच्चों ने बड़ी
मुश्किल से गोलगप्पे खाने के लिए हामी भरी। फिर हम लोग उस खोमचे के आसपास एक गोला बनाकर
खड़े हो गये। गोलगप्पे वाले ने हम सबको एक एक डिस्पोजेबल प्लेट पकड़ा दी। फिर उसने बड़े
ही लगन के साथ आलू, प्याज और मसाले का मिक्सचर तैयार किया। वह बड़ी ही फुर्ती से गोलगप्पे
में सुराख करता, उसमें आलू मसाला डालता और फिर गोलगप्पे को बड़ी
सी हाँडी में डुबोने के बाद हमारी प्लेटों में डाल देता। उसकी दक्षता देखकर कोई भी
उसका कायल हो जाये। गोलगप्पों में वही खास स्वाद और चटकारापन था जो कि अकसर हुआ करता
है। मैने कोई पाँच गोलगप्पे खाए होंगे। मेरी पत्नी ने दस गोलगप्पे खाये। लेकिन उन तीन
बच्चों ने मिलकर दस से अधिक नहीं खाये होंगे।
मुझे इसमें कोई ताज्जुब भी नहीं हुआ क्योंकि वे आधुनिक जमाने
के बच्चे हैं और वो भी टीनएजर। फिर भी मैंने रिंकी से पूछा, “बेटा,
गोलगप्पे कैसे लगे?”
रिंकी ने जवाब दिया, “इंटेरेस्टिंग!”
टिंकू ने कहा, “वंडरफुल, लेकिन उतना
भी टेस्टी नहीं जितना कि आप और चाची उछल रहे थे।“
गोलू ने कहा, “मैने तो रिंकी और टिंकू का साथ देने के खयाल
से खा भी लिया वरना ऐसी चीजों को तो मैं हाथ भी नहीं लगाता। ये भी कोई चीज है खाने
की। इतना मसाला, उसपर से उसकी गंदी सी हाँडी। जब वह अपनी उंगलियाँ
उस हाँडी में डुबाकर गोलगप्पे निकालता है तो मुझे तो घिन आती है। पता नहीं आप लोग ऐसी
चीजें पचा कैसे लेते हैं?”
फिर रिंकी ने कहा, “चाचा, अब हमारी आइसक्रीम
तो बनती ही है।“
मैने पास ही खड़े आइसक्रीम वाले से कहा, “भैया,
इनको इनके पसंद की आइसक्रीम दे दो।“
जब वे आइसक्रीम खा रहे थे तो मैं सोच रहा था, “अब आजकल
के बच्चों को हमारे जमाने की चीजें कैसे पसंद आएँगी। पैकेट में बंद चीजों को खाते-खाते
इनको तो पता ही नहीं कि किसी के हाथ से बनी चीजों में क्या स्वाद होता है।“
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