डॉक्टर के पेशे में तगड़ा कंपिटीशन
है। डॉक्टरी की पढ़ाई में बहुत पैसे खर्च होते हैं और कई साल लग जाते हैं। केवल एमबीबीएस
करने में ही छ: साल लग जाते हैं। उसके बाद पोस्ट ग्रैजुएशन करने में दो साल और लग जाते
हैं। ठीक तरह से डॉक्टर बनने में लगभग दस साल तो लग ही जाते हैं। यदि किस्मत अच्छी
रही तो सरकारी नौकरी मिल जाती है नहीं तो प्राइवेट प्रैक्टिस जमाना आसान नहीं होता।
परिवार और समाज की उम्मीदों पर खड़ा उतरने के लिए हर डॉक्टर पर अधिक से अधिक पैसे कमाने
का प्रेशर भी रहता है। कुछ डॉक्टर इस चक्कर में बहुत सारे ऐसे काम कर बैठते हैं जो
उनके पेशे पर ही धब्बा लगाता है। हर मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव को ये बातें नजदीक से देखने
और समझने का मौका मिलता है।
एक बार मैं सुबह दस बजे के आसपास
तैयार होकर काम करने के लिए जिला अस्पताल पहुँचा। मुझे ऑर्थो डिपार्टमेंट में कॉल करना
था। उस डिपार्टमेंट की ओपीडी के बाहर पहुँचकर मैने देखा कि वहाँ पर कई डॉक्टरों की
भीड़ लगी थी और बहुत हो हल्ला मचा हुआ था। अपनी जिज्ञासा शाँत करने के लिए मैं भी वहाँ
रुक गया। मेरे पूछने पर डॉक्टर शर्मा; जो हड्डी रोग विशेषज्ञ
थे; ने बताया, “सुना आपने, उस डॉक्टर
बैरोलिया के बारे में?”
मैने कहा, “नहीं, क्या हुआ?”
डॉक्टर शर्मा ने बताया, “अरे उसने आजकल एक नया नर्सिंग
होम खोला है। साथ में उनकी पत्नी भी वहीं बैठती हैं। उन्हें शायद पता नहीं कि प्रैक्टिस
जमाने में एड़ी चोटी एक करनी पड़ती है। आजकल उसने गुंडे पाल रखे हैं। कल रात उसके गुंडे
यहाँ आये और ऑर्थो वार्ड से एक मरीज को उठाकर जबरन अपनी वैन में डाला और उनके नर्सिंग
होम में पहुँचा दिया।“
मैने सुना तो अचरज में पड़ गया। अब सोचिये उस मरीज के बारे में
जिसके सिर से पाँव तक प्लास्टर चढ़ा हुआ हो। वो बेचारा तो अपनी जान बचाने के लिए भाग
भी नहीं सकता है। उसे उठाकर जब कोई वैन में डालने लगे तो उसे ये भी समझ में नहीं आयेगा
कि उसका अपहरण किस वजह से हो रहा है। वैसे भी सरकारी अस्पतालों मे इतने गरीब मरीज आते
हैं जो फिरौती के तौर पर कुछ भी नहीं दे सकते।
फिर डॉक्टर शर्मा ने बताया, “हमलोगों ने आज ही सीएमओ के
साथ एक मीटिंग बुलाई है। वे जिला प्रशासन को लिखेंगे कि सदर अस्पताल में पुलिस की समुचित
व्यवस्था हो। अब यहाँ के डॉक्टर या नर्स उन गुंडों से दो दो हाथ तो नहीं कर सकते।“
मैने कुछ नहीं कहा बस उनकी हाँ में हाँ मिलाता रहा। फिर मेरे
मन में खयाल आया कि चलकर डॉक्टर बैरोलिया से मिल लेता हूँ। अब बैरोलिया जी की कहानी
उन्हीं की जुबानी सुन लीजिए।
डॉक्टर बैरोलिया ने कहा, “अरे भाई साहब क्या बताऊँ?
इस नर्सिंग होम को बनवाने में ही सत्तर अस्सी लाख खर्च हो गये। मरीज
हैं कि आने का नाम ही नहीं लेते। फिर मेरे एक सीनियर ने यह अनूठा सुझाव दिया। वैसे
जिला अस्पताल के डॉक्टर भी तो ओपीडी किसी सेवा भावना से जाते नहीं हैं। वे तो वहाँ
से मरीजों को बरगला कर शाम में अपनी क्लिनिक पर ही बुलवाते हैं। एकाध मरीज मैने हड़प
लिये तो कौन सा गुनाह कर दिया?”
डॉक्टर बैरोलिया ने आगे कहा, “मैने सोचा है कि खुद जाकर
सदर अस्पताल के डॉक्टरों से मिलूँगा। उन्हें उनका शेयर मिल जायेगा। लेकिन वे तो मुझे
ऐसी नीची नजर से देखते हैं जैसे मैं कोई वार्ड ब्वाय हूँ।“
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