सुबह सुबह दरवाजे की घंटी
बजी। जब दरवाजा खोला तो सामने सिन्हा जी खड़े थे। उनके चेहरे पर इतनी खिली हुई
मुसकान थी कि तंबाकू से काले पड़े हुए उनके दाँत बस कभी भी बाहर गिरने को बेताब लग
रहे थे। मैंने उन्हें नमस्ते कहकर बैठने के लिए कहा तो उन्होंने कहा, “नहीं! नहीं! बड़ी जल्दी में
हूँ। बस आपको निमंत्रण देने आया था। आज शाम में मेरे यहाँ सत्यनारायण भगवान की
पूजा है और फिर उसके बाद प्रीतिभोज भी है। और जगह भी जाना है, निमंत्रण
देने।“
“अरे वाह! लगता है कोई खास खुशखबरी है। तभी आप इतने बड़े
अनुष्ठान का आयोजन करवा रहे हैं।“ मैंने पूछा।
सिन्हा जी ने खीसें निपोरते हुए कहा, “हाँ!
हाँ! वो बात ऐसी है कि मेरे दोनों लड़कों का सेलेक्शन आइआइटी के लिए हो गया है।
बहुत दिनों से मन्नत माँग रखी थी। इसलिए पूजा करवा रहा हूँ। पूरे परिवार के साथ
आइएगा।“
सिन्हा जी तो अपना निमंत्रण देकर निकल लिए। लेकिन उनके जाने
के बाद मैं सोच में पड़ गया कि आइआइटी के एंट्रेंस एग्जाम का रिजल्ट तो जून के
महीने में आता है और अभी फरवरी के महीने में ही उनके लड़कों ने उस कंपिटीशन को कैसे
निकाल लिया। बहरहाल, जब मैंने अपनी पत्नी से इस बात की चर्चा की तो वह उल्टा मुझपर
ही भड़क पड़ी।
मेरी पत्नी ने कहा, “आपको तो बिना वजह किसी पर शक करने की आदत
है। अपनी रिचा पर तो ध्यान ही नहीं देते। कहते हैं कि इंजीनियर नहीं बनेगी तो कौन
सा पहाड़ टूट पड़ेगा। अरे आज के जमाने में कोई इंजीनियर नहीं बनेगा तो फिर उसका जीवन
तो व्यर्थ ही हो जाएगा। मुझे तो आजकल मुहल्ले के पार्क में भी जाने में हीन भावना
सी लगती है। सबके बच्चे इंजीनियरिंग की तैयारी कर रहे हैं। केवल मेरी ही बेटी इस
सुख से मरहूम है।“
शाम होते ही मैं अपनी पत्नी और बेटी के साथ सिन्हा जी के घर
पहुँच गया। बाहर का माहौल देखकर लग रहा था कि सिन्हा जी ने भव्य आयोजन किया था।
बड़ा सा शामियाना लगा हुआ था। करीने से कुर्सियाँ लगी थीं जिनपर सफेद कपड़े मढ़े हुए
थे। बीच में पूजा का हवन कुंड सजा हुआ था; जहाँ पर सिन्हा जी; अपनी
पत्नी के साथ गठबंधन किए हुए पूजा के आसन पर विराजमान थे। पंडित जी पूरी तन्मयता
के साथ मंत्र पढ़ा रहे थे। उसी बीच में सिन्हा जी सभी आने जाने वालों की तरफ नजरें
उठाकर उनका अभिवादन भी स्वीकार कर रहे थे। सिन्हा जी के दोनों लड़कों ने नई शेरवानी
पहन रखी थी; जैसे कि किसी की शादी में आए हों। शामियाने के
पीछे से एक से एक व्यंजनों के पकने की खुशबू भी आ रही थी। मैंने सही जगह देखकर एक
कुर्सी हथिया ली। मेरी पत्नी और बेटी महिलाओं के ग्रुप में चली गईं। मेरी बगल में
वर्मा जी बैठे थे। पास में मेहता साहब, गुप्ता जी, मिश्रा जी, ठाकुर जी, आदि लोग
बैठे थे। सब आपस में खुसर पुसर कर रहे थे। मैं भी उनकी बातों में शामिल हो गया।
मिश्रा जी ने बगल में पान की पीक फेंकते हुए कहा, “मेरी
समझ में ये नहीं आ रहा है कि फरवरी के महीने में आइआइटी के एंट्रेंस एग्जाम के
रिजल्ट कब से आने लगे। अरे मेरा बेटा तो पहले से ही पटना के एनआइआइटी में पढ़ रहा
है। उसे भी यही टेस्ट निकालना पड़ा था।“
गुप्ता जी बीच में बोल पड़े, “अरे भाई साहब, सिन्हा जी का कोई भरोसा नहीं है। इनकी पहुँच बहुत ऊपर तक है। इनके जैसा
शातिर आदमी कुछ भी कर सकता है। देखते नहीं, कैसे पिछले दस
सालों से ऑफिस में एक ही टेबल को पकड़े हुए हैं; जहाँ से गाढ़ी
कमाई होती है।“
ठाकुर जी अपनी बाइक की चाबी से अपने कान खुजा रहे थे।
उन्होंने कहा, “अरे नहीं, मेरा बेटा तो आइआइटी खड़गपुर
में ही पढ़ता है। उसके एंट्रेंस एग्जाम में कोई बेइमानी नहीं होती है। फिर चाहे
सिन्हा जी हों या फिर उनके आका। मुझे तो लगता है कि इन्होंने इंस्टिच्यूट के
नाम में एकाध ‘आइ’ गायब कर दिए होंगे।
अब भला अन्य लोगों को कैसे बताएँ कि उनका बेटा आइआइटी में जाने से रह गया। यहाँ
क्या है, लोग आएँगे, खाना खाएँगे और
फिर सब अपनी जिंदगी में मशगूल हो जाएँगे। फिर किसे फुरसत है ये जानने की कि सिन्हा
जी का बेटा कहाँ से इंजीनियरिंग कर रहा है।“
तभी पंडित जी की आवाज गूँजी, “अब सत्यनारायण भगवान की
पूजा समाप्त हुई। बोलिए श्री सत्यनारायण भगवान की जय!”
सब लोग एक सुर में बोल उठे, “जय!”
उसके बाद आरती हुई। सभी लोगों ने खड़े होकर आरती को उचित
सम्मान दिया। फिर प्रसाद वितरण के बाद लोग बुफे के लिए लगी हुई मेजों की तरफ टूट
पड़े। जब खाने की प्लेटों को भरने का युद्ध कुछ शाँत हुआ तो अधिकाँश लोग फिर उसी
गंभीर चर्चा में जुट गए कि आखिर सिन्हा जी ने बेमौसम पूजा और भोज का आयोजन क्यों
किया। सब लोग बाल की खाल निकाल रहे थे। तभी वहाँ से ऑफिस का चपरासी जीतन जाता दिखा।
कहते हैं कि किसी ऑफिस के चपरासी के पास जितनी गुप्त जानकारी होती है उतनी तो शायद
कैबिनेट सेक्रेटरी के पास भी नहीं होती। हमारे आस पास खाना खा रहे लगभग सभी लोगों
ने एक साथ जीतन को आवाज लगाई। जीतन फौरन वहाँ आ गया। फिर जीतन ने जो खुलासा किया
उसे आप खुद ही सुन लीजिए।
जीतन ने बड़ा रहस्योद्घाटन किया, “नहीं
साहब! आइआइटी में नहीं हुआ है। उसका टेस्ट तो जून में होता है। इनके लड़कों ने कोटा
के किसी कोचिंग इंस्टिच्यूट में नाम लिखवाने के लिए कोई टेस्ट दिया था, उसी में पास हो गए हैं। कल ही तो ट्रेन से ये कोटा जा रहे हैं। साथ में मैं
भी जा रहा हूँ। मेरा बच्चा भी वहाँ पढ़ता है। क्या है साहब, कि
कोटा में जाना तो आइआइटी में जाने के बराबर है। सब लोग कहाँ भेज पाते हैं अपने बच्चे
को। बड़ा खर्चा लगता है। मैंने तो अपनी पूरी जमीन बेच दी अपने बच्चे को कोटा भेजने में।
खैर, मेरा क्या है। मेरे बच्चे को तो रिजर्वेशन मिलेगा;
इसलिए आइआइटी की पढ़ाई में कोई फीस नहीं देनी पड़ेगी। इसलिए कोटा में ही
सारे पैसे लगा दिए। मेरे बेटे को तो आइआइटी में जाने से अब कोई नहीं रोक सकता। लेकिन
सिन्हा जी के बेटों को तो रिजर्वेशन मिलने से रहा। अब देखते हैं, आगे क्या होता है।“
भोज समाप्त होने के बाद सिन्हा जी से विदा लेकर हम अपने घर की
ओर लौट चले। रास्ते भर मेरी पत्नी मुझे धिक्कारती रही। उसे लगता है कि मेरी वजह से
पूरे मुहल्ले में उसकी नाक कट गई है। मैं अपनी बिटिया को वही बनाना चाहता हूँ जो वो
चाहती है। मैं उसपर कोई भी दवाब नहीं डालना चाहता हूँ।
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