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Monday, November 6, 2017

राजा की खिचड़ी

मंगरू नाली के किनारे बैठकर दातुन कर रहा था। दातुन को बीच से चीड़ कर जीभ साफ की और फिर पूरी ताकत से गरारा करने लगा। उसके बाद अपने फटे पुराने गमछे से मुँह पोछने के बाद उसने पूरी ताकत से दातून को हवा में उछाला तो दातून सीधा नाली के उस पार लगभग बीसेक गज जाकर गिरा। तभी मंगरू की धर्मपत्नी रतिया की आवाज आई, “नाश्ते में खिचड़ी बना दूँ?”

मंगरू खाने के मामले में नखरे नहीं करता था। वैसे भी उस जैसे गरीब के पास खाने के लिये नखरे करने का कोई विकल्प ही नहीं था। फिर भी उसे खिचड़ी का नाम सुनकर ही उबकाई आती थी। जब वह छोटा बच्चा था तो उसकी माँ अक्सर सुबह दोपहर और रात को खिचड़ी ही परोसा करती थी। शायद बचपन में खिचड़ी के ओवरडोज के कारण उसकी यह हालत हुई थी। मंगरू ने लगभग गुर्राती हुई आवाज में कहा, “तेरी जो मर्जी आये बना दे, लेकिन खिचड़ी न बना। बाजरे की रोटी और मिर्च की चटनी से भी काम चल जायेगा।“

मंगरू को कभी कभी लगता था कि उसकी पत्नी की जन्मकुंडली मंगरू की माँ से मिलवाई गई थी। रतिया को भी पता नहीं क्यों खिचड़ी बनाने में बड़ा मजा आता था। उनके आधा दर्जन बच्चे भी अपनी माँ के हाथ की बनी खिचड़ी को बड़े चाव के साथ सुपड़-सुपड़ कर चट कर जाते थे। मंगरू अपनी सोच में डूबा हुआ था कि उसकी पत्नी की तीखी आवाज गूँजी, “अब तो राजा ने भी मुनादी करवा दी है। अब खिचड़ी को राष्ट्रीय भोजन की उपाधि मिलेगी। उसके बाद हर व्यक्ति के लिये खिचड़ी खाना जरूरी हो जायेगा।“

मंगरू ने बुझी आवाज में जवाब दिया, “हाँ, लगता है राजा भी तुमसे और तुम्हारे बच्चों से प्रभावित हैं। ये भी सुना है कि आज विजय पथ के पास एक बड़े से कड़ाह में राजा का खास रसोइया प्रजा के लिये खिचड़ी पकायेगा। महाराज स्वयं आकर खिचड़ी में नमक डालेंगे। राजवैद्य ने उस खिचड़ी में डालने के लिये खास मसालों और जड़ी बूटियों की लम्बी फेहरिस्त भी बनाई है।“

रतिया ने खुश होते हुए कहा, “और हाँ, खिचड़ी पक जाने के बाद उसमें राजपुरोहित अपने कर कमलों से तड़का लगायेंगे। इस राज्य के हर नागरिक के लिये आदेश है कि वह खिचड़ी ग्रहण करने के लिये विजय पथ पर उपस्थित हो जाये। अब जल्दी से नहाधोकर तैयार हो जाओ। हमें भी तो वहाँ जाना होगा।“

मंगरू ने धीमे से कहा, “हाँ, जाना तो पड़ेगा ही। नहीं तो क्या पता राजा के सिपाही काल कोठरी में न डाल दें।“

आधे घंटे के बाद मंगरू, उसकी पत्नी रतिया और उनके आधा दर्जन बच्चे सज धजकर तैयार हो गये। मंगरू ने मलमल का कुर्ता पहना था जो बहुत दिनों तक टोकरी में रखे होने के कारण बहुत ही बेढ़ंगे तौर पर मुड़ा तुड़ा था। रतिया ने वो साड़ी पहनी थी जिसमें वह अपनी शादी के बाद विदा होकर आई थी। रतिया के तीन बेटों ने केवल हाफ पैंट पहनी थी, शर्ट उनके पास थी नहीं। उसकी तीन बेटियों ने वो फ्राक पहनी थी जो उन्हें तब मिली थीं जब गाँव का जमींदार पुराने कपड़े बाँट रहा था।

मंगरू और उसका परिवार दस बजते बजते विजय पथ पर पहुँच चुके थे। वहाँ का दृश्य अद्भुत था। लाखों की संख्या में लोग उपस्थित थे। जिधर निगाह डालो उधर आदमी ही आदमी। आज खेत खलिहानों में सूनापन पसरा हुआ था। विजयपथ पर हर तरफ रंग बिरंगी तिलिंगियाँ फड़फड़ा रही थीं। ऊँचे ऊँचे डंडों पर राजध्वज लहरा रहे थे। राजभवन के गीतकार और संगीतकार मोहक धुन और तान छेड़ रहे थे। पंडितों की टोली एक तरफ मंत्रोच्चारण कर रही थी। किशोरवय पंडित शंखनाद कर रहे थे। राजा का रथ किसी दुल्हन की भाँति सजा हुआ था। रथ में जो घोड़े जुते थे उन्हें भी गेंदे के फूलों से सजाया गया था। ढ़ोल नगाड़े भी बज रहे थे।

महाराज, महारानी अपने परिवार के सदस्यों के साथ अपने अपने आसनों पर विराजमान थे। फिर महाराज ने एक खास अंदाज में अपना हाथ हवा में लहराया। उनके ऐसा करते ही खास तौर पर प्रशिक्षित हाथियों के एक दल ने एक बड़े से कड़ाह को एक बड़े से चूल्हे के ऊपर रखा। उसे देखकर मंगरू ने कहा, “इस चूल्हे की सारी लकड़ियाँ अगर मिल जाएँ तो तुम्हें एक साल तक जंगल जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।“

यह सुनकर रतिया ने कहा, “बड़े आये। शादी से पहले तो कहते थे कि जंगल से लकड़ियाँ तुम ही लाओगे। लकड़ियाँ लाने के चक्कर में मेरे पैरों में ऐसी बिवाई फटी है जो अब मेरे मरने के साथ ही जाएगी।“

फिर कड़ाही में हाथियों ने अपनी सूँड़ों से पानी भरा। पानी में उबाल आने के बाद राजा के सिपाहियों ने उसमें ढ़ेर सारा चावल और दाल डाल दिया। उसके बाद महाराज स्वयं आये और अपने कर कमलों से एक बड़ी सी कलछुल से चावल और दाल को हिला दिया। वह कलछुल इतनी बड़ी लग रही थी जैसे कि उसे कभी कुंभकर्ण को खाना परोसा जाता रहा होगा। महाराज के जाने के बाद राजमहल के खानसामे खिचड़ी को चलाने लगे। बीच बीच में राजवैद्य सोने की तराजू से तौलकर जड़ी बूटियाँ मिला रहे थे। जब खिचड़ी पक गई तो राजगुरु आये और एक बड़ी सी देग में तड़का बनाकर खिचड़ी में डाल दिया।

उसके बाद राष्ट्रीय हरकारे ने ढ़ोल पीटना शुरु किया। वहाँ उपस्थित प्रजा को समझ में आ गया कि फिर से कोई मुनादी होने वाली है। उस मुनादी को ठीक से सुनने के लिये लोगों में खामोशी छा गई। ढ़ोल पीटना समाप्त करने के बाद हरकारे ने बोलना शुरु किया, “सुनो, सुनो, आज के शुभ दिन में शुभ मुहूर्त में समस्त प्रजागण के लिये विशेष रूप से खिचड़ी पकाई गई है। महाराज ने अपने विशाल हृदय का परिचय देते हुए एक हजार किलो खिचड़ी बनवाने का आदेश दिया था। अब इस खिचड़ी को यहाँ उपस्थित प्रजा में वितरित किया जायेगा।“


यह सुनकर मंगरू हिसाब लगाने लगा, “यहाँ लगभग एक लाख लोग उपस्थित हैं। एक हजार किलो खिचड़ी के हिसाब से एक लाख ग्राम खिचड़ी हुई। इस हिसाब से तो हर व्यक्ति को एक ग्राम से अधिक खिचड़ी नहीं मिलेगी। उतनी खिचड़ी तो बस दाँतों के बीच कहीं फँसकर रह जायेगी। चलो अच्छा हुआ। कम से कम यहाँ तो खिचड़ी खाने से बच गये।“ 

Wednesday, October 18, 2017

चमत्कारी राजा

किसी समय की बात है। भारत का कीर्तिमान विश्व के पटल पर किसी ध्वज की तरह लहराया करता था। इस महान देश में दूध दही की नदियाँ बहती थीं। पावन गंगा के जल से सिंचित भूमि से अन्न धन के रूप में सोने की उपज होती थी। उसी काल में इस देश पर एक महान और गौरवशाली राजा राज करता था। अपनी कीर्ति गाथाओं के अनुरूप उस राजा ने पहले तो महाराज की उपाधि धारण कर ली थी। उसके बाद वह महाराजाधिराज बन गया। कालांतर में अश्वमेध यज्ञ में विजयी होकर वह एक चक्रवर्ती सम्राट बन गया।

चक्रवर्ती सम्राट बनने के बाद राजा के मन में बस एक ही इच्छा शेष रह गई थी। वह हर वह शक्ति हासिल करना चाहता था जिससे वह यहाँ की प्रजा को हर वह खुशी प्रदान कर सके जिसके बारे में आज तक किसी भी राजा ने सोचा भी नहीं था। ऐसा करने की धुन में राजा ने एक हजार वर्षों तक घने वन में जाकर घनघोर तपस्या की। उसकी कठिन तपस्या से भगवान प्रसन्न हो गये और उसके सामने प्रकट हो गये।

भगवान ने राजा से कहा, “हे राजन, तुम्हारे जैसे महान राजा की तपस्या से मैं प्रसन्न हुआ। माँगो क्या वर माँगते हो।“

राजा ने कहा, “भगवान की चरणों में मेरा सादर प्रणाम। मैं ऐसी शक्ति चाहता हूँ जिससे मैं पूरी प्रजा को इमानदार बना दूँ। उस शक्ति से हर उस गरीब को मदद पहुँचे जो उसका असली हकदार है। वणिकों के मन में बेईमानी करने से पहले उस शक्ति का डर समा जाये। कोई भी व्यक्ति कर की चोरी ना कर सके। छोटे से छोटे अपराध का चुटकी में पता चल जाये। हे भगवान, यदि आप मेरी तपस्या से और प्रजा के लिए किये गये कार्यों से प्रसन्न हैं तो कृपया मुझे ऐसी शक्ति प्रदान कीजिए।“

भगवान मंद मंद मुसकाए और कहा, “तथास्तु, इसके लिए मैं तुम्हें ऐसी युक्ति बताता हूँ जो एक अचूक दवा की तरह काम करेगी। इस युक्ति का प्रयोग अभी प्रयोगात्मक रूप में कुछ देशों में हो रहा है। लेकिन भारतवर्ष जैसे महान देश में तुम पहले राजा बनोगे जिसके पास यह युक्ति होगी।“

चक्रवर्ती सम्राट अधीर होने लगा, “भगवन, कृपया कर के शीघ्र उस युक्ति के बारे में बताएँ।“

भगवान ने कहा, “हे राजन, इस युक्ति का नाम है विश्वाधार कार्ड। संक्षेप में तुम इसे आधार कार्ड भी कह सकते हो। इसके लिए सबसे पहले तो तुम्हें सात समुंदर पार के देशों से कंप्यूटर नाम का एक बेशकीमती यंत्र मंगवाना होगा। उसके बाद प्रजा के हर व्यक्ति का एक आधार कार्ड बनवाना होगा। एक आधार कार्ड अपने आप मे अनोखा होगा जिसपर उस व्यक्ति की अंगुलियों के निशान और आँखों की पुतलियों के निशान होंगे। इससे किसी भी व्यक्ति की पहचान आसानी से की जा सकेगी। बिना आधार कार्ड दिखाए प्रजा के किसी भी व्यक्ति को कोई भी कार्य करने की अनुमति नहीं होगी। इससे सभी आर्थिक क्रियाओं का लेखा जोखा रखना आसान हो जायेगा। इससे किसी भी संदिग्ध व्यक्ति के पीछे गुप्तचर छोड़ने की आवश्यकता भी नहीं पड़ेगी। जो यंत्र महाभारत काल में संजय के पास था उससे भी परिष्कृत यंत्र तुम्हारे मंत्रियों और अधिकारियों के पास होगा। उस यंत्र से तुम हर गतिविधि पर नजर और नियंत्रण रख पाओगे। फिर अगले हजार वर्षों तक राज करने से तुम्हें कोई भी नहीं रोक पायेगा।“

इतना कहने के बाद भगवान अंतर्धान हो गये। राजा वन से अपने राजमहल को लौट गया। फिर उसने द्रुतगामी पुष्पक विमानों से अपने दूतों को सात समुंदर पास के देशों में भेजा ताकि कंप्यूटर नामक परिष्कृत यंत्र को लाया जा सके। उसके बाद राज्य में मुनादी करवा दी गई कि हर व्यक्ति को आधार कार्ड बनवाना पड़ेगा। बिना आधार कार्ड के कोई भी व्यक्ति कुछ भी नहीं कर पायेगा।
छ: मास बीतते बीतते लगभग हर व्यक्ति का आधार कार्ड बन गया। उसे एक विशिष्ट विधि से बनाये गये ताम्रपत्र पर बनाया गया था। उस ताम्रपत्र पर व्यक्ति का चित्र, उसकी अंगुलियों के निशान, पुतलियों के चित्र उकेरे गये थे। इसके अलावा उस कार्ड पर एक क्रमांक लिखा गया था जिसके बारे में बताया गया कि हर व्यक्ति का क्रमांक अपने आप में अनूठा है।

आधार कार्ड बनने से ऐसा लगने लगा की जीवन कितना आसान हो गया था। किसी को सोमरस खरीदना होता था तो दुकान के सामने आधार कार्ड हिलाता और जैसे जादू हो जाता था। सोमरस का गागर एक आकर्षक पैकिंग में उस व्यक्ति के पास स्वयं पहुँच जाता था। किसी को यदि कोई मिस्ठान्न खाना होता तो हलवाई की दुकान के सामने आधार कार्ड हवा में लहराता और मिठाई स्वयं उस व्यक्ति के मुँह में प्रवेश कर जाती। किसी को शौचालय जाना होता तो आधार कार्ड लहराते ही शौचालय का दरवाजा स्वत: खुल जाता था। यदि कोई कहीं खुले में शौच करने बैठता तो आधार कार्ड से एक विकिरण निकलती और उसका शौच उतरना बंद हो जाता था। अब पंडित शादी करवाने के लिए जन्मकुंडली के स्थान पर आधार कार्ड का मिलान करने लगे थे। नये शिशु के जन्म लेते ही कर्मचारी आकर उसका आधार कार्ड बनवा देते थे। आधार कार्ड के कारण राशन पानी भी आसानी से मिलने लगा था।

अब राजा ठहरा एक आदर्श राजा। इसलिए उसने अपने परिवार के लोगों और मंत्रीमंडल के लोगों के भी आधार कार्ड बनवा दिये। राजमहल में एक खास सुविधा प्रदान की गई। ऐसा इसलिए किया गया कि विशिष्ट व्यक्तियों के समय की बचत हो सके और उसे व्यर्थ कार्यों में गंवाना ना पड़े। किसी मंत्री को जब भूख लगती तो उसे केवल इतना करना होता था कि आधार कार्ड को हवा में लहराना होता था। एक स्वचालित मशीन उसके सामने प्रकट होती थी और उसके मुँह में निवाला डालने लगती थी। इससे वह खाते समय भी अधिक जिम्मेदारी वाले कार्य कर सकता था। जब किसी मंत्री को शौच करना होता था तो आधार कार्ड को हवा में लहराते ही उसके नितंबों के नीचे शौच करने वाली आलीशान कुर्सी लग जाती थी। जब तक वह जरूरी कागजात पर हस्ताक्षर कर रहा होता था तब तक नीचे की मशीन सारी गंदगी स्वत: साफ कर देती थी।

राजा ने एक खास शैली में बनवाये हुए भवन में सब कार्यों पर नजर रखने के लिए कंप्यूटरों का जाल बिछा दिया था। उन मशीनों को चलाने के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित कर्मचारी और अधिकारी दिन रात काम पर लगे रहते थे।

अब केवल एक ही काम बिना आधार कार्ड के हो पाता था और वह था साँस लेना और शरीर के अंदर की जैविक क्रियाओं का संचालन।

एक बार कुछ ऐसा संयोग बना कि राजा की पुत्री; जो कि उस राज्य की इकलौती राजकुमारी भी थी; अपनी सहेलियों के साथ नदी में क्रीड़ा विहार करने गई। जब राजकुमारी का रथ नदी के तट पर पहुँचा तो दास दासियों की सहायता से राजकुमारी रथ से उतरी। उसने अपना आधार कार्ड हवा में लहराया और नदी के तट पर एक सीढ़ीनुमा रचना अवतरित हो गई। इन सीढ़ियों से उतरकर राजकुमारी सीधा नाव पर सवार हो गई। उस नाव पर राजकुमारी की कुछ सहेलियों को भी स्थान दिया गया। अन्य नावों पर संगीतकार अपने गाजे बाजे के साथ बैठ गये। उसके बाद क्रीड़ा विहार का कभी न रुकने वाला सिलसिला शुरु हुआ। गर्मी की तपिश से बचने के लिए राजकुमारी ने तैराकी और गोताखोरी का आनंद भी लिया।

क्रीड़ा विहार का आनंद लेने के बाद राजकुमारी जब वापस राजमहल पहुँची तो उसके होश उड़ गये। उसकी कमरघनी में से सदैव लटकने वाला आधार कार्ड का कहीं अता पता नहीं था। राजकुमारी ने याद किया कि तैराकी के लिये जल में कूदते समय तो आधार कार्ड उसकी कमरघनी में ही बंधा हुआ था। लगता था कि गोताखोरी के समय किसी जलीय जीव ने उसके आधार कार्ड को अपना ग्रास बना लिया था।

अब राजकुमारी कुछ भी नहीं कर सकती थी। वह न तो भोजन कर सकती थी ना ही जल ग्रहन कर सकती थी। यह समाचार सुनकर राजा चिंता की मुद्रा में आ गया। राजा ने अपनी थाली में राजकुमारी को भोजन कराना चाहा लेकिन आधार कार्ड की अनुपस्थिति में राजकुमारी का मुँह ही नहीं खुल पा रहा था जिससे भोजन प्रवेश कर सके।

राजा ने अपने दक्ष कंप्यूटरबाजों को आदेश दिया कि राजकुमारी के लिए डुप्लिकेट आधार बना दिया जाये। पता चला कि उस प्रक्रिया में कम से कम सात दिनों का वक्त लगने वाला था। फिर राजा ने आदेश दिया कि कंप्यूटर में कुछ छेड़छाड़ कर दिया जाये ताकि डुप्लिकेट आधार कार्ड बनने तक किसी तरह से राजकुमारी की दिनचर्या सामान्य रखी जा सके। पूरे आर्यावर्त के एक से एक कंप्यूटरबाजों ने अपना दिमाग लगाया लेकिन कोई कुछ न कर सका।


अब राजा की स्थिति किसी विक्षिप्त व्यक्ति की तरह हो गई थी। सुकुमार राजकुमारी भोजन न मिलने के का दर्द झेल नहीं पाई। एक सप्ताह बीतने से पहले ही वह स्वर्ग सिधार गई। राजा ने घोषणा कर दी कि वह अपना राजपाट छोड़कर वान्यप्रस्थ को चला जायेगा। ऊपर से देखने पर लगता था कि प्रजा का हर व्यक्ति उस महान राजा के सन्यास की घोषणा से बहुत दुखी था। लेकिन तह में जाकर पता चलता था हर व्यक्ति इस बात के लिए प्रसन्न था कि अब भोजन करने जैसी नैसर्गिक गतिविधि के लिए जादुई मशीनों का आसरा नहीं रह जायेगा। 

Wednesday, September 20, 2017

अब जमाना बदल चुका है

मौसम बदलने लगा था। अब सूरज जल्दी से ढ़लने लगा था और ठंड भी पड़ने लगी थी। दिन भर बंठू धूप में खेलने का मजा लेता था लेकिन रात होते ही दुबक कर गुफा के किसी कोने में अपनी दादी से चिपका रहता था। इस बीच उसकी माँ मोरी खाना बनाती रहती थी। उसका पिता मतलू तब तक मशाल की रोशनी में गुफा की दीवार पर अपनी कला के नमूने उकेरता रहता था।

ऐसी ही एक रात को मतलू गुफा की दीवार पर मैमथ और बारहसिंघे की तसवीर में गेरू के रंग भर रहा था। तभी मोरी ने अलाव पर माँस के टुकड़े को पलटते हुए कहा, “बंठू अब इतना बड़ा हो गया है कि उसे भी आग जलाने का तरीका सिखाना पड़ेगा। यही सही समय है। तुम्हें क्या लगता है?”

मतलू ने गुफा की दीवार पर अपनी हथेलियों की छाप लेते लेते जवाब दिया, “सही कह रही हो। अभी से नहीं सिखाया तो देर हो जायेगी। ऐसे भी आग जलाना तो हर किसी को पता होना चाहिए। बिना आग के हम जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते।“

इस बीच बंठू के दादा भी उस महत्वपूर्ण बहस में कूद पड़े, “अरे आग जलाना कौन सी बड़ी बात है। कल ही मैं इसे आग जलाना सिखा दूँगा।“

मतलू ने अपने पिता को टोकते हुए कहा, “अरे नहीं बाबा। अब जमाना बदल गया है। अब सिखाने पढ़ाने का तरीका आपके जमाने का नहीं रहा। अब तो नये नये तरीकों का इस्तेमाल होने लगा है। पिछले वसंत में मैं जब दूर के कबीले से मिलने गया था तो मुझे उन नये तरीकों के बारे में पता चला जिससे बच्चे को अच्छे तरीके से सिखाया पढ़ाया जाता है। मैने तो बकायदा उस कबीले से उसकी ट्रेनिंग भी ली थी। आप मुझपर छोड़ दीजिए। वैसे भी आप बूढ़े हो चुके हैं।“

अगले दिन तड़के ही बंठू को नहला धुलाकर बाजरे की रोटी और बकरी के दूध का नाश्ता कराया गया। उसके बाद मतलू उसे लेकर गुफा के बाहर चला गया ताकि उसे आग जलाने की ट्रेनिंग दे सके। बंठू भी बहुत उत्साहित लग रहा था। उसे पता था कि एक बार वह आग जलाना सीख ले तो फिर बड़े से बड़े जानवर को मात दे सकता था।

उन्हें गुफा के बाहर जाता देख बंठू के दादा ने पूछा, “अरे बेटा मतलू, ये कौन सी ट्रेनिंग देने जा रहे हो। साथ में ना तो चकमक पत्थर है और ना ही बरमा और टेक। फिर आग जलाना कैसे सिखाओगे?”

मतलू ने बिना पीछे मुड़े जवाब दिया, “अरे बाबा, आप बस देखते जाओ।“

गुफा के बाहर पहुँचकर मतलू जमीन पर पालथी लगाकर बैठ गया। उसके सामने बंठू भी उसी मुद्रा में बैठ गया। मतलू ने सबसे पहले सरकंडे का लगभग आधे फुट का टुकड़ा लिया और उसके एक सिरे को चाकू से नुकीला कर दिया। उसके बाद मतलू ने जमीन पर उस सरकंडे की कलम से बरमा और टेक की आकृति बनाई। फिर मतलू शुरु हो गया, “देखो बेटा, सबसे पहले हम सीखेंगे कि आग क्या है और उससे क्या क्या फायदे हैं।“

बंठू उत्साहित होकर बोला, “बाबा, आग सुर्ख लाल फूल होता है जो पेड़ों पर नहीं लगता बल्कि इसे हम इंसान पैदा करते हैं। आग से बहुत फायदे ............”

मतलू ने उसे चुप होने का इशारा करते हुए कहा, “जब मैं पढ़ाने लगूं तो बीच में मत बोला करो। ध्यान से मेरी बात सुनों। तुम मुझसे ज्यादा नहीं जानते।

बंठू ने मुंह बना लिया। मतलू आगे बढ़ा, “हाँ, तो आग एक फूल होता है जो सुर्ख लाल रंग का होता है। लेकिन यह फूल पेड़ों पर नहीं लगता। इसे हम इंसान पैदा करते हैं। कभी कभी आसमान से भी आग पैदा होती है और धरती पर गिरती है। आग में बहुत शक्ति होती है। इस शक्ति को नियंत्रित करने की कला भगवान ने केवल इंसानों को दी है। आग से हम अपनी गुफा को सुरक्षित करते हैं। आग से हम भयानक जानवरों को दूर भगा देते हैं। आग पर हम खाना भी पकाते हैं। आग से ही हम जंगल साफ करते हैं ताकि खेती के लिए जमीन बना सकें।“

बंठू को उस लंबे प्रवचन से नींद आने लगी थी। ऐसा देखकर मतलू ने जोर से उसके कान खींच लिये ताकि नींद भाग जाये।

खैर, लगभग एक पहर बीतने के बाद आग के गुण और अवगुण वाला वह पाठ आखिरकार समाप्त हो गया। बंठू ने भी चैन की सांस ली। लेकिन अभी उसका दिन और भी लंबा होने वाला था। मतलू ने उसके बाद बरमा और टेक की संरचना का वर्णन करना शुरु किया, “देखो बेटा, ये बरमा है। यह मजबूत लेकिन लचीली लकड़ी का बना होता है और कुछ कुछ धनुष जैसा दिखता है। लेकिन आकार में यह धनुष से छोटा होता है। इसमें भी धनुष की तरह ही मजबूत डोर चढ़ी होती है लेकिन थोड़ी ढ़ीली होती है। यह लकड़ी का जो चौकोर टुकड़ा देख रहे हो, उसे टेक कहते हैं। इसके बीचोबीच एक छोटा सा गड्ढ़ा बना रहता है। बरमा की डोरी को बीच में लपेट कर उसमें से लकड़ी की एक पतली लेकिन मजबूत डंडी को फँसाते हैं। डंडी के निचले सिरे को टेक के गड्ढ़े में टिकाकर बरमा को दाएँ बाएँ करते हैं जिससे डंडी अपनी धुरी पर घूमने लगे। इन सब औजारों को बनाने के लिये अच्छी लकड़ी का चुनाव बहुत महत्वपूर्ण होता है। बरमा को तेजी से अगल बगल चलाते हैं ताकि डंडी तेजी से घूमे। डंडी को जोर से पकड़ना होता है ताकि यह टेक के गड्ढ़े में बनी रहे। गड्ढ़े के आस पास सूखी घास फूस रखते हैं। जब डंडी तेजी से घूमती है तो उससे घर्षण पैदा होती है। घर्षण से गर्मी पैदा होती है। यह गर्मी जब अपनी चरम सीमा पर पहुँच जाती है तो सूखी घास फूस में आग लग जाती है। उसके बात मुँह से फूँक फूँक कर उस आग को बढ़ाया जाता है। उसके बाद उस आग से लकड़ी में आग लगाई जाती है।“

उस पाठ के समाप्त होते होते दोपहर भी बीत गई। बंठू का भूख और नींद के मारे बुरा हाल था। मतलू ने कहा, “आज के लिए इतना काफी है। आज रात में इस पाठ को रटकर याद कर लेना। कल इस पर सवाल पूछूँगा। एक भी गलत जवाब दिया तो तुम्हारी खैर नहीं।“

जब बंठू अपने पिता के साथ खाना खाने गुफा के अंदर गया तो उसके दादा ने पूछा, “और बंठू, कितनी लकड़ियों में आग लगाई। कहीं अपनी लंगोट तो नहीं जला ली तुमने।“

मतलू ने बहुत रूखे स्वर में कहा, “अरे बाबा, आज तो केवल पहला दिन था। कम से कम एक सप्ताह तो इसकी थ्योरी की क्लास लूँगा। उसके बाद डमी पर प्रैक्टिकल होगा तब कहीं जाकर असली बरमा को हाथ लगाने का मौका मिलेगा इसे। आपको पता नहीं है, सुरक्षा कितनी जरूरी होती है।“

मतलू के पिता जोर से हँसे और बोले, “पता है, जब तुम बंठू की उमर के थे तभी मैंने एक ही दिन में तुम्हे आग जलाना सिखा दिया था। उम्मीद है तुम आज भी नहीं भूले होगे।“


मतलू ने कहा, “बाबा, आपका जमाना अलग था। अब जमाना बदल चुका है।“ 

Monday, August 28, 2017

फालतू का फोन

मोबाइल फोन आने से जिंदगी बिलकुल बदल गई है। अब आप जब चाहें, जिससे चाहें, जहाँ से चाहें; बातें कर सकते हैं। इससे लोगों के बीच के रिश्ते पहले से शायद ज्यादा मजबूत भी हुए हैं। लेकिन कुछ ऐसे रिश्ते भी जरूरत से ज्यादा मजबूत होने लगे हैं, जिसे शायद बहुत कम लोग मजबूत करना चाहते हों। जैसे बॉस और उसके मातहतों के बीच का रिश्ता। मोबाइल फोन के ढ़ेर सारे फायदे हैं लेकिन कुछ नुकसान भी हैं। उनमें से एक नुकसान है वक्त बेवक्त आने वाले फालतू के फोन कॉल से जिनके द्वारा आपको कुछ न कुछ बेचने की कोशिश की जाती है। कभी कोई वाटर प्यूरिफाय्रर बेचने लगता है, तो कोई मकान बेचने लगता है। कोई इंश्योरेंस बेचने लगता है तो कोई क्रेडिट कार्ड देने लगता है। सब यही जताने की कोशिश करते हैं कि आप उन सबसे लकी लोगों में से हैं जिन्हें उस अभूतपूर्व ऑफर के लिये चुना गया है। कभी कभी तो ऐसे कॉल आधी रात के समय भी आ जाते हैं। जब कोई आदमी धड़कते हुए दिल से किसी अशुभ समाचार की आशंका में फोन उठाता है तो उसे कम से कम ये तसल्ली जरूर मिल जाती है कि चिंता की कोई बात नहीं है, क्योंकि वह कोई सेल्स कॉल होता है। मेरे पास भी ऐसे ढ़ेरों फोन कॉल आते रहते है। मैंने डीएनडी (डू नॉट डिस्टर्ब) में अपना नम्बर भी रजिस्टर्ड करवाया हुआ है लेकिन उसका कोई फायदा नजर नहीं आता। ऐसे अधिकतर कॉल्स को मैं बड़े ही कड़े अंदाज से खारिज कर देता हूँ। इस काम में मेरी भारी आवाज काफी मदद करती है। लेकिन कभी कभी जब मैं खाली होता हूँ तो ऐसे कॉल करने वाले से बात भी कर लेता हूँ। इससे मेरा भी दिल बहलता है और कॉल करने वाले का भी। ऐसा ही एक कॉल आज मेरे पास आया। कॉल में जो बातचीत हुई वह कुछ इस तरह से है।

“हलो, हाँ जी बताइए आप कौन बोल रहे हैं?”

उधर से किसी पुरुष की आवाज थी जो कोई तीसेक साल का युवक लग रहा था। आवाज में थोड़ा सा अनगढ़पना था जो ट्रेनिंग की कमी जाहिर कर रहा था। वैसे भी पाँच छ: हजार पाने वाले वैसे लोग जो हिंदी वाले कॉल सेंटर में काम करते हों, उनके लिये शायद ही कोई कम्पनी ट्रेनिंग पर खर्च करती होगी। उस व्यक्ति ने कहा, “नमस्कार, सर मैं निदान डायग्नोस्टिक से बोल रहा हूँ। क्या मैं आपकी उम्र जान सकता हूँ?”

मैंने कहा, “भैया, जब तुमने फोन नम्बर पा लिया तो उम्र के बारे में भी पता कर लेते।“

उधर से जवाब आया, “सर, हमारी कम्पनी फुल बॉडी टेस्ट पर आकर्षक डिस्काउंट दे रही है।“
“अच्छा किस तरह के टेस्ट करवाते हैं आप?”

“सर, केवल दो हजार रुपए में हम आपकी किडनी, लिवर, डायबिटीज, हार्ट, थायरायड, रेटिना, आदि लगभग पचास टेस्ट कर देंगे।“

मैंने अपनी आवाज में झूठा उत्साह दर्शाते हुए कहा, “अच्छा, ये तो बहुत अच्छी बात है। लेकिन इन टेस्ट को करवाने से मेरा क्या फायदा होगा?”

“सर जब टेस्ट की रिपोर्ट आयेगी तो आपको पक्का यकीन हो जायेगा कि आपको डॉक्टर के पास जाने की जरूरत नहीं है।“

मैंने कहा, “अरे भैया, ऊपरवाले की दया से मैं बिलकुल फ़िट फ़ाट हूँ। फिर मुझे ऐसे भी डॉक्टर के पास जाने की जरूरत नहीं पड़ती है।“

सर, एक बार हमारी टेस्ट रिपोर्ट आपको मिल जायेगी तो फिर गारंटी होगी कि आपको डॉक्टर के पास जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।“

मैंने कहा, “भैया, मुझे तो अब तक ये पता था कि किसी बीमारी से छुटकारा पाने के लिए दवाइयाँ लेनी पड़ती हैं। आज तो तुमने मेरी आँखें ही खोल दीं। आज पता चला कि केवल टेस्ट करवा लेने से ही बिमारी भाग जाती है। कमाल है।

“सर, आपने बिलकुल ठीक समझा। तो आप अपना पता नोट करवा दें, ताकि मैं अपने कलेक्शन स्टाफ को आपके घर भेज दूँ, सारे सैंपल लेने के लिए।“

अब मेरा धैर्य जवाब देने लगा था। मैंने कहा, “भाई, तुम पहले तो अपना ज्ञान दुरुस्त कर लो। टेस्ट करवाने से केवल यह पता चलता है कि कोई बीमारी है या नहीं। टेस्ट से इलाज नहीं होता। अपनी कम्पनी के साहबों से बताओ कि तुम्हें ठीक से ट्रेनिंग दिया करें, उसके बाद ही किसी को कॉल करना।“


उसकी आवाज से लगता है कि उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था। उसने किसी तरह से लड़खड़ाती आवाज में कहा, “ठीक है सर, थैंक यू सर, हैव अ गुड डे सर।“ 

Tuesday, August 15, 2017

नागिन डांस

जैसे ही ई-रिक्शा दरवाजे के सामने रुका, उसपर लदे हुए लोगों और सामान को देखकर मधुरेश कुछ ज्यादा ही खुशी जाहिर करते हुए जोर से बोला, “आइए, आइए, आपकी ही बाट जोह रहा था। उम्मीद है मकान खोजने में परेशानी नहीं हुई होगी। गुड्डू ने ईरेल पर देखकर बताया था कि आपकी ट्रेन चार घंटे लेट चल रही थी।“

अपने सामान और परिवार को बरामदे पर पहुँचाते हुए नरेंद्र सिन्हा अपनी बत्तीसी दिखाने की असफल कोशिश करते हुए बोले, “अरे नहीं, मेरा बचपन तो इसी समस्तीपुर में बीता था। अपनी स्कूली शिक्षा मैंने यहीं से प्राप्त की थी। अभी भी बहुत कुछ वैसा ही है। हाँ भीड़-भाड़ बढ़ गई है। पहले जो गाँव जैसे इलाके थे अब वहाँ भी शहर पहुँच चुका है।“

सामान उठाने में मदद करते हुए मधुरेश ने कहा, “मैं खुद ही आ रहा था, आपको स्टेशन से लिवा लाने के लिए। लेकिन क्या करूँ, शादी ब्याह का घर है कोई न कोई काम निकल ही जाता है।“

नरेंद्र सिन्हा ने कहा, “अरे इसकी क्या जरूरत है? आपने बड़ी जिम्मेदारी ली है अपने ऊपर। किसी की की शादी सही ढ़ंग से सम्पन्न करा देना कोई हँसी मजाक थोड़े ही है। इतना बिजी होने के बावजूद भी आपने मेरे परिवार के लिए अलग से ठहरने का इंतजाम कर दिया। ...”

मधुरेश ने बरामदे से लगे कमरे का दरवाजा खोलते हुए कहा, “अरे, ये तो मेरा कर्तव्य था। आपके पुराने अहसान हैं हमपर। और फिर मुझे आपकी बेटी पूनम की शादी भी तो करवानी है।“

नरेंद्र सिन्हा ने बैग और सूटकेस कमरे के अंदर पटकते हुए कहा, “हाँ, आजकल अच्छे लड़के बड़ी मुश्किल से मिलते हैं। आपके बताये लड़के को देखने के खयाल से ही तो हम इस शादी में शरीक होने आए हैं। नहीं तो मै तो अपने लड़के के हाथों ही शगुन भिजवा देता। आजकल टाइम कहाँ मिल पाता है। ऊपर से अगर साल में तीन चार शादियों में न्योता करना पड़े तो पूरा बजट बिगड़ जाता है। वैसे, जिस लड़के की बात आपने की है, वो इस शादी में शामिल तो होगा ना?”

मधुरेश ने कहा, “अरे जिनके यहाँ शादी है उनके और इस लड़के के परिवार को समझिये जनम जनम का नाता है। ये लोग हमेशा से एक दूसरे के सुख दुख में शरीक होते रहे हैं। और तो और, यह लड़का तो समझिये कि मेरी जेब में है। है तो मेरे दूर के रिश्ते का भांजा लेकिन आस पास रहने की वजह से मेरे मुँह लगा है। आप तो तब उछल पडेंगे जब आपको पता चलेगा कि यह कमरा जहाँ मैंने आपके ठहरने का इंतजाम किया है, यह उन्हीं के मकान का हिस्सा है।“

यह सुनकर नरेंद्र सिन्हा की मुसकान रोके न रुक रही थी। उन्होंने कहा, “अच्छा है, पूनम और उसकी माँ भी आराम से घरेलू माहौल में लड़के को देख लेगी। आजक्ल अच्छा लड़का तो बड़ा महँगा आता है। आपको हमारी माली हालत का पता ही है। हम उतना दहेज देने की स्थिति में नहीं हैं। हाँ बेटी को बड़े जतन से पढ़ाया है, बरौनी के डीएवी स्कूल में टीचर है। अच्छी खासी तनख्वाह मिलती है। उम्मीद है कि कमाउ लड़की देखकर लड़के वाले थोड़ा पसीज जाएँ।“

मधुरेश ने कहा, “आप अब नहाधो लीजिए और तैयार हो जाइए। आज शाम को तिलक है, वहीं लड़के को देख भी लीजिएगा। परसों बारात जानी है, और उसके तीसरे दिन रिसेप्शन है। उसके बाद वाले दिन की तारीख ले लेता हूँ मैं लड़के के पापा से। लड़का अकेला भाई है और उसकी एक ही बहन है जिसकी शादी हो चुकी है। लड़के के पापा का अपना मकान है जिसमें आप अभी विराजमान हैं। और कुछ तो नहीं है लेकिन बीच शहर में मेन मार्केट में अपना मकान होना ही बहुत बड़ी बात होती है। लड़की की शादी हो चुकी है इसलिए कोई बोझ भी नहीं है। अब आजकल के कायस्थों के पास इससे अधिक की आप उम्मीद भी नहीं कर सकते।“

मधुरेश के जाने के बाद नरेंद्र सिन्हा ने कमरे का मुआयना किया। उस कमरे में एक पलंग और एक तखत बिछी हुई थी। एक पुराना सा जर्जर सोफा सेट भी था जिसपर लाल रंग के मखमल का कवर चढ़ा हुआ था। उन तीन जनों के रुकने के लिए वह कमरा काफी लग रहा था। उस कमरे का भीतरी दरवाजा आंगन में खुलता था। आंगन में एक कोने में हैंडपंप लगा था। हैंडपंप के पास ही एक दरवाजा था जिसपर लगी नमी से यह अंदाजा लगाया जा सकता था कि वह गुसलखाना था। थोड़ी देर में अंदर से एक अधेड़ महिला दाखिल हुईं। नरेंद्र सिन्हा और उनकी पत्नी को नमस्ते करने के बाद उस महिला ने उन्हें गुसलखाने का रास्ता बता दिया। उसने ये भी बता दिया कि नरेंद्र सिन्हा उसे अपना ही घर समझें और बेहिचक जो जरूरत पड़े मांग लें। उसने ये भी बताया कि नरेंद्र सिन्हा को अपने घर में ठहराने का जो सौभाग्य उसे प्राप्त हुआ था उससे वह बहुत प्रसन्न थी।

राहुल उतना ही बाँका नौजवान है जितना उसकी उमर के लड़के हुआ करते हैं। पतला दुबला छरहरा शरीर जिसपर एक छोटी सी तोंद यह बता रही थी कि लड़का दो तीन साल से नौकरी कर रहा था और अपनी जिंदगी से काफी संतुष्ट था। उसकी बड़ी-बड़ी आँखों के ऊपर गिर आये उसके काले-काले बाल किसी भी युवती को मोहित करने का दम रखते थे। राहुल और मधुरेश के बीच गहरी दोस्ती थी, क्योंकि उन दोनों के बीच उम्र का फासला कम ही था। मधुरेश रिश्ते में उसका मामा लगता था लेकिन राहुल के बहुत सी राज का राजदार था। राहुल किसी प्राइवेट कम्पनी में बतौर सेल्स रिप्रेजेंटेटिव काम करता था इसलिए लड़की वाले उसके घर की तरफ झाँकते भी नहीं थे। इसलिए उसे अपने मुँहबोले मामा की पैरवी करनी पड़ती थी ताकि कोई लड़की वाला उसकी तरफ भी निगाह डाल सके। मधुरेश कभी कभी उससे बड़े ज्ञान की बातें करता था। एक बार मधुरेश ने कहा था, “पता है, हमारे देश में लिंग अनुपात बड़ा खराब है। हर एक हजार पुरुष पर केवल नौ सौ चालीस के आस पास स्त्रियाँ हैं। अगर तुम्हारी किस्मत खराब हुई तो तुम्हारा रॉल नम्बर नौ सौ चालीस के बाद आयेगा और फिर तुम रह जाओगे आजीवन कुँवारे।“

इस बार राहुल को बहुत उम्मीद थी। मधुरेश ने बताया था कि लड़की दिखने में ठीक ठाक है और साथ में नौकरी भी करती है। लड़की के पिताजी के पास धन संपदा नाम की कोई चीज नहीं थी, इसलिए वहाँ आशा की जा सकती थी। राहुल को तो किसी तरह से एक लड़की चाहिए थी जो उसकी बीबी बने और आगे के सफर में साथ दे। उसे या उसके परिवार वालों को एक बहू मिल जाए यही बहुत था, दहेज के बारे में तो वो कबकी उम्मीद छोड़ चुके थे।

शाम को तिलक समारोह में नरेंद्र सिन्हा और उनकी बीबी उतना ही सजे धजे जितना उनकी उम्र पर फब सकता था। बेटी को सजाने में उसकी माँ ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी। उधर राहुल भी ब्लू जींस और लाल टी-शर्ट पहनकर आया था। राहुल के दोस्तों ने घर के पिछवाड़े में एक पेड़ की ओट में एक खटारा सी मारुति कार में पूरा इंतजाम कर रखा था। राहुल ने इशारा पाते ही उस पेड़ की तरफ कूच कर दिया। पता चला कि जिस लड़के की शादी थी उसके छोटे भाई ने व्हिस्की और रम का भरपूर इंतजाम किया था। राहुल और उसकी उम्र के लड़के तो बस वहीं डेरा जमाए हुए थे। थोड़ी अधिक उम्र के पुरुष बीच बीच में आकर गटागट एक एक पेग गटककर चले जाते थे। जब तक सोमरस का स्टॉक समाप्त हुआ तबक राहुल और उसके दोस्तों पर शुरूर पूरी तरह से छा चुका था। उसके बाद वे लड़के डांस के लिए बने स्टेज पर पहुँच गये और उसपर कब्जा कर लिया। उसके बाद बाकी लोगों को डांस फ्लोर छोड़कर जाना पड़ा। राहुल ने गजब का डांस दिखाया। बॉलीवुड के लेटेस्ट नम्बर की हूबहू नकल उतारने में उसका कोई सानी नहीं था। जब सभी लेटेस्ट डांस का दौर खतम हुआ तो बारी आई उस डांस की जिसकी पॉपुलरिटी के आगे बाकी के हार डांस पीछे रहते हैं; खासकर शादियों के मौसम में। जी हाँ, मैं नागिन डांस की बात कर रहा हूँ। राहुल पहले तो नागिन बनकर डांस करता रहा। फिर संपेरा बन गया। नागिन से संपेरा और संपेरे से नागिन बनने का दौर जो शुरु हुआ वह खतम होने का नाम ही नहीं ले रहा था। उस डांस पर जवान लोग तो सीटियाँ बजा रहे थे। लेकिन बुजुर्ग और महिलाएँ अपने नाक भौं सिकोड़ रही थीं। तिलक का भोज खाने के बाद सारे मेहमान चले गये लेकिन राहुल और उसकी मंडली का प्रोग्राम तबतक चलता रहा जबतक वो लोग निढ़ाल होकर गिर नहीं गये।

इसी तरह बारात में भी उन लड़कों जमकर मजा किया और हंगामा किया। उनका मूड बनाने के लिए व्हिस्की और रम की सप्लाई सुचारु रूप से चलती रही। फिर दुल्हन की विदाई हुई और उसके बाद रिसेप्शन भी हुआ। रिसेप्शन के बाद वह दिन आ गया जिसका राहुल और उसके मम्मी पापा को बेसब्री से इंतजार था।

राहुल के पापा ने खुद जाकर बाजार से गुलाब जामुन, नमकीन और जिंदा रोहू मछली लाई। राहुल की मम्मी ने बड़े जतन से मछली बनाई। उनके घर में पहली बार कोई लड़की वाला रिश्ते की बात करने आ रहा था। इसलिए वे उनकी खातिर में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते थे। अब अगर आप मिथिला में रहते है तो किसी को मछली भात खिलाने से बड़ी खातिर और क्या हो सकती है। मछली देखना और खाना तो यहाँ शुभ माना जाता है।

लंच का वक्त होने को आ रहा था लेकिन नरेंद्र सिन्हा का कहीं अता पता नहीं था। दोपहर के तीन बजने वाले थे तभी मधुरेश आता दिखाई दिया। मधुरेश के चेहरे को देखकर लग रहा था कि मामला कुछ ठीक नहीं है। राहुल के पापा ने पूछा तो मधुरेश ने बताया कि नरेंद्र सिन्हा के प्रोग्राम में थोड़ा बदलाव हुआ था। उनको अचानक बरौनी में कोई काम पड़ गया था इसलिए वे बता रहे थे कि एक दो महीने बाद ही आएँगे। इतना सुनने के बाद राहुल और उसकी मम्मी पापा के चेहरे बुझ गये। 

राहुल के पापा अपनी भड़ास निकालने लगे, “पहले ही कहता था कि किसी कंपिटीशन की तैयारी करो। अरे, अगर बैंक में क्लर्क भी हो जाते तो लड़की वालों की लाइन लग जाती। दिमाग खराब हुआ था कि चले थे प्राइवेट नौकरी करने। अभी भी उम्र नहीं बीती है। दो साल मैं तुम्हें पाल सकता हूँ। ठीक से तैयारी करोगे तो बैंक क्लर्क का कंपिटीशन निकालने के लिये दो साल बहुत होते हैं।“

उन्हें बीच में ही टोकते हुए मधुरेश ने कहा, “अरे नहीं जीजाजी, वो बात नहीं है। वे लोग तो इस नालायक के दारू पीने की वजह से भड़क गये हैं। और करो नागिन डांस। अरे अब उम्र हो गई है। अभी इंप्रेशन खराब हो गया तो आस पास के सौ किलोमीटर से कोई लड़की वाला झाँकने तक नहीं आयेगा।“

मधुरेश ने आगे कहा, “जैसे ही नरेंद्र सिन्हा ने अपनी बीबी को राहुल के बारे में बताया वो फौरन भड़क उठी। कहने लगी कि उसी दारू के चक्कर में उनकी जिंदगी नरक हो गई। वो अपनी बेटी को आजीवन कुँवारी रखेंगी लेकिन किसी बेवड़े के हाथ में कभी नहीं देंगी।“

राहुल के पापा ने कहा, “ठीक ही तो कह रही थीं। नरेंद्र सिन्हा को मैं कोई आज से जानता हूँ? उसकी रेलवे की नौकरी उसी दारू के चक्कर में छूट गई थी। फिर उसके चाचा ने पैरवी करके बरौनी रिफाइनरी में रखवाया था, वहाँ से भी भगा दिया गया था।“

मधुरेश ने कहा, “हाँ नरेंद्र सिन्हा तो कह ही रहे थे कि लड़का थोड़ जॉली नेचर का है। उमर है इसलिए खाता पीता है। एक बार शादी हो जाएगी तो रास्ते पर आ जायेगा। लेकिन उनकी बीबी ने अपना वीटो लगा दिया।“

उसके बाद मधुरेश ने राहुल से कहा, “बेटा, एक बात गाँठ बाँध लो। आज के बाद नागिन डांस बंद। कभी पीने पिलाने का प्रोग्राम हो तो छुपाकर ही करना। तभी कोई तुम्हारी शादी कराने का बीड़ा लेगा।“


राहुल ने नजरें झुकाकर कहा, “मामा, मैं वादा करता हूँ कि आज के बाद नागिन डांस बिलकुल बंद। अब तो मेरी शादी भी हो जायेगी तब भी नागिन डांस नहीं करूँगा।“ 

Tuesday, July 25, 2017

SMS from School

Text messages are still the rage with marketing guys, and it is evident from numerous messages which I get from numerous marketers. While normal mortals like me and you have long switched over to Whatsapp; private and government organizations still rely on text messages to sell their products or ideas to us. Recently, there was a flood of messages from the Income Tax Department urging all and sundry to pay taxes before 31st July. Private schools have also come on this bandwagon and have started sending messages to parents. Messages from schools generally include notice about due date for fees payment, on PTMs, examination schedules, Olympiads, etc. Some messages can be quite useful, e.g. if a child does not reach school then the parents may come to know that the child has bunked his classes and has landed up at the cinema hall instead of the classroom. Some messages can be plain boring while some can be hilarious. Recently, I got a text message from the school about which I am yet to understand whether it is serious or hilarious. Following is the message:

“Dear Parents,

This is to inform you all that dengue viral is going on. So, please use coconut oil below your knees till your footsteps. It is antibiotic. Dengue mosquito cannot fly higher than knees. Please keep this in mind and start using it. Spread this message as much as you can. Your one message can save many lives. Herbal tips: Kindly keep kapur, long and elaichi in your pocket too. “

This message is apparently a useful one because it is giving a warning about dengue. It appears to be on time; unlike delayed anti-dengue initiatives which the government authorities take. Chief Ministers and Health Ministers usually get a wakeup call only after news of dengue-related deaths start appearing in newspaper and on television.

This message urges the parents to apply coconut oil. Hopefully, school teachers must have conveyed the same message to their students in classrooms.

This message says that coconut oil is an antibiotic. Thanks to copy & paste culture prevalent even among teachers, coconut oil has been declared as an antibiotic. But an antibiotic is of no use against virus; which dengue parasite is. To the best of my knowledge, mosquitoes belong to the class Insecta of phylum Arthropoda. An antibiotic is not going to act against an insect. So, what is the use of applying coconut oil?

I searched Google to find answer. You will land up on hundreds of sites which write shenanigans about naturopathy and Ayurveda; in the name of promoting and conserving the ancient culture of India. All these sites give lot of information without an iota of credibility, i.e. without proper reference.

Mosquito repellant creams and some other concoctions work by masking the body odour of humans. But coconut oil is unable to do this.

This message also urges to stuff the pocket of a student with spices; as if the student is going to cook biryani in the school. I fear that the school may start selling packets of assorted prices and may make it mandatory for all parents to buy the packets for their wards. Schools will charge very high price for such packets, and parents will not be allowed to buy spices from the market. This will be a new revenue stream for the school; that too in the lean season. Schools have already made hefty amount of money at the beginning of academic session; by selling books, notebooks and uniforms for all occasions. But earning more money in the mid of the academic season must be the brainchild of school management with great business acumen.

A school is the place where we send our children to study and to learn certain aspects of life. All modern schools are expected to instill knowledge through scientific methods. They are not expected to brainwash the students with myths about whatever culture they believe in.


As an instant reaction to this message, I planned to meet the class-teacher. I wanted to argue with her about futility of sending such messages. But my wife advised me against doing so, because she fears that this will hamper the scores of my son. I had no other way than to surrender to my wife’s commands. 

Saturday, July 22, 2017

तुलसी किसके आँगन की?

रेखा आज बहुत खुश लग रही थी। आखिरकार उसे किराये के मकान से निजात मिल ही गई थी। कल ही उसने अपने पति और दो बच्चों के साथ अपने मकान में  शिफ्ट किया था। कहने को तो ये टू बी एच के फ्लैट था लेकिन था बड़ा ही छोटा। लेकिन मकानों की आकाश छूती कीमतों और अपने बजट को देखते हुए रेखा और उसके पति (राकेश) को वही फ्लैट पसंद आया। वह फ्लैट राजधानी दिल्ली की सीमा पर उस इलाके में था जिसे एन सी आर कहते हैं। आस पास के ग्रामीण परिवेश में बहुमंजिला इमारतों यह कतार ऐसी लगती थी जैसे किसी ने जबरदस्ती खेतों के बीच में कंक्रीट का एक विशाल बिजूका खड़ा कर दिया हो। बहरहाल, रॉयल सिटी नामक उस टाउनशिप में लगभग हर वह सुविधा थी जिससे किसी मिडल क्लास परिवार का जीवन सामान्य ढ़ंग से चल सके। उस टाउनशिप के अंदर बने शॉपिंग कॉम्प्लेक्स में जरूरत की लगभग हर चीजें मिलती थीं।

उनका फ्लैट ग्राउंड फ्लोर पर था जिसके कारण उन्हें दोनों कमरों के आगे अच्छी खासी जगह मिल गई थी। ऊपर की मंजिलों पर तीन फीट की चौड़ाई वाली बालकनी में दो लोग भी बड़ी मुश्किल से खड़े हो पाते थे। लेकिन ग्राउंड फ्लोर की तथाकथित बालकनी में इतनी जगह थी की चार पाँच कुर्सियों के साथ साथ एक खटिया भी लगाई जा सकती थी। उस जगह में कपड़े सुखाने के लिए भी काफी जगह थी जो कि आजकल के सिमटे हुए फ्लैटों में किसी लक्जरी से कम नहीं थी।

सुबह सुबह नहाने धोने के बाद रेखा ने जल्दी से नाश्ता बनाकर अपने पति और बच्चों को खिलाया। राकेश ने घर का सामान ढ़ंग से रखवाने के खयाल से चार दिनों की छुट्टी ले ली थी। बच्चों के लिए इस नये इलाके में स्कूल एडमिशन का काम अभी बाकी था। नाश्ते का स्वाद लेते हुए राकेश को लगा कि रेखा थोड़ी परेशान लग रही थी। उसने जब रेखा से पूछा तो रेखा ने बताया, “नहीं, कुछ खास नहीं। सोच रही हूँ कि एक नया गमला लेकर उसमें तुलसी का पौधा लगा दूँगी। सुबह की पूजा ठीक से हो जायेगी।“

राकेश ने कहा, “अरे गमले की क्या जरूरत है। सामने जो पार्किंग स्पेस है, उसके आगे फूलों और डेकोरेटिव प्लांट्स की कतारें लगी हैं। उसी में कहीं जगह देखकर तुलसी का पौधा लगा दो। पौधे को फलने फूलने के लिये भरपूर जगह मिलेगी। फिर तुम भी खुश और तुलसी भी खुश।“

अगले दिन रेखा ने अपने फ्लैट के सामने वाली तथाकथित ग्रीन बेल्टमें तुलसी का पौधा लगा दिया। फिर रोज सुबह नहा धोकर तुलसी को पानी का अर्ध्य देना और उसकी पूजा करने का सिलसिला शुरु हो गया। महीने दो महीने बीतते बीतते वह तुलसी का पौधा काफी मशहूर हो गया। उस हाउसिंग सोसाइटी की कई महिलाएँ सुबह सुबह नहा धोकर तुलसी को जल चढ़ाने आने लगीं। कुछ महिलाएँ तो देर दोपहर को तुलसी को जल चढ़ाने आया करती थीं। यह सब देखकर रेखा को आत्मसंतुष्टि का अनुभव होता था।

छ: महीने बीतते बीतते वह तुलसी का पौधा काफी फैल चुका था। तीज त्योहारों के मौकों पर शाम की आरती के लिए वहाँ कई महिलाएँ इकट्ठी हुआ करती थीं। भजन कीर्तन का आयोजन भी होने लगा। इसी बहाने वहाँ पर अक्सर शाम को अच्छी खासी चहल पहल होने लगी। कुछ लोगों ने उस तुलसी के आस पास देवी देवताओं की छोटी-छोटी मूर्तियाँ भी रख दी थीं। इस तरह से वह स्थान एक पवित्र स्थलमें बदल चुका था।

अब रेखा को अक्सर तुलसी पर जल चढ़ाने के लिए अपनी बारी का इंतजार करना पड़ता था। उसे लगता था कि उस तुलसी के पौधे पर उसका पहला अधिकार था क्योंकि उसी ने उस पौधे को लगाया था। लेकिन वह चाहकर भी कुछ नहीं कर सकती थी। रेखा को यह बात अंदर से खाने लगी। वह अब हमेशा की तरह पूजा करने के बाद खुश नहीं होती थी। उसे अब कभी कभी सर दर्द का दौरा भी पड़ने लगा था। राकेश उसे अक्सर समझाने की कोशिश करता था, “तुम्हें तो खुश होना चाहिए। तुम्हारे कारण कितने लोगों को पूजा करने के लिए एक निश्चित स्थान मिल गया। भगवान तो सबके होते हैं। उन पर किसी की मोनोपॉली नहीं होती। इसमें इतना परेशान होने की बात ही नहीं है।“

इस बीच रेखा को सर दर्द के इलाज के लिए कई डॉक्टरों से दिखाया गया। लेकिन किसी भी दवा का उसपर कोई असर नहीं होता था। अब तो सर दर्द के और भी नये नये कारणों का जन्म होने लगा था। कभी कोई वहाँ पर भंडारे का आयोजन करा देता। भंडारे के समय जो खलबली मचती थी कि रेखा अपने घर में भी शांति से बैठ नहीं पाती थी। उससे भी ज्यादा जुल्म तब होता था जब कोई मंडली वहाँ पर माता के जागरण का अनुष्ठान कर देती थी। फिर तो रेखा और उसके परिवार को रात भर जाग कर ही बिताना पड़ता था। एकाध बार रेखा ने रेजिडेंट वेलफेअर एसोशियेशन में इसकी शिकायत की तो जवाब मिला कि धार्मिक मामलों में वे कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकते। लगभग दो साल बीतने का बाद एक दिन उस हाउसिंग सोसाइटी के हर टावर के नोटिस बोर्ड पर एक नोटिस लग गया।

“बड़े हर्ष के साथ यह सूचना दी जाती है कि गंगा टावर के सामने जो पूजा स्थल है, वहाँ पर एक भव्य मंदिर का निर्माण कराने का फैसला लिया गया है। मंदिर बनाने में जो खर्च आयेगा उसका पचास प्रतिशत वहन करने का वादा बिल्डर के द्वारा किया गया है। बाकी की राशि चंदे के माध्यम से इकट्ठी की गई है। गंगा टावर के ग्राउंड फ्लोर के दो फ्लैट में रहने वाले परिवारों को फ्लैट खाली करने होंगे। बदले में उनके लिये सबसे ऊपरी मंजिल यानी एक्कीसवीं मंजिल पर नये फ्लैट बनाकर दिये जाएँगे। चूँकि वहाँ पर सबसे पहला तुलसी का पौधा रेखा जी ने लगाया था इसलिए उन्हें मंदिर का ट्रस्टी नियुक्त किया जायेगा। रॉयल सिटी के निवासी रेखा जी के सदैव आभारी रहेंगे।“


उस नोटिस को पढ़ने के बाद रेखा की समझ में नहीं आ रहा था कि हँसे या रोये। हाँ वह इस बात से जरूर खुश थी कि नये फ्लैट में शिफ्ट करने के बाद रोज रोज के कोलाहल से मुक्ति जरूर मिलेगी।