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Thursday, October 6, 2016

दशरथ माँझी की रामलीला

माँझी फिल्म को बहुत सराहा गया था और उसके पीछे की एक वजह थी नवाजुद्दीन सिद्दीकी की गजब की ऐक्टिंग। यदि आपने इस फिल्म को देखा होगा तो उसका एक सीन याद कीजिये। इस सीन में दशरथ माँझी बड़ा हो जाता है और धनबाद की कोल माइंस से कमाकर अपने गाँव लौट रहा होता है। गाँव में पहुँचते ही उसे पता चलता है कि सरकार ने ऐलान कर दिया है कि अब उँची जाति और नीची जाति के लोगों में कोई भेदभाव नहीं है। उस गाँव के दलित लोग इस बात का जश्न मनाने लगते हैं। दशरथ माँझी भी अपनी भावनाओं में बह जाता है और जाकर मुखिया के बेटे के गले लग जाता है। अब कानून बनाने से समाज की कुरीतियाँ तो खत्म नहीं हो जातीं। इसलिए बदले में दशरथ माँझी की जमकर पिटाई की जाती है। उसका दोष इतना है कि एक दलित होते हुए भी उसने एक सवर्ण के गले लगने की कोशिश की थी। बेचारा दशरथ माँझी अपमान का घूँट पी जाता है और अपने घर पहुँचकर अपने लोगों के साथ नाचने लगता है।

नवाजुद्दीन सिद्दीकी को दशरथ माँझी की जगह रखकर यदि यह सीन लिखा जाये तो कम दिलचस्प नहीं होगा। नवाजुद्दीन सिद्दीकी बुढ़ाना के रहने वाले हैं। बुढ़ाना में यूँ तो हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्मों के लोग रहते हैं लेकिन इन दोनों समुदायों के बीच की खाई पिछले कुछ वर्षों में और भी चौड़ी हो गई है। नवाजुद्दीन सिद्दीकी की मुसीबतें एक नहीं रही होंगी बल्कि कई होंगी। कल्पना कीजिये कि नवाजुद्दीन सिद्दीकी को बचपन से ही कितने ताने झेलने पड़े होंगे।

आँखों में सपने और दिल में हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में अपना नाम रोशन करने के जज्बे से जब नवाजुद्दीन सिद्दीकी मुम्बई पहुँचे होंगे तो लोगों ने उनपर फब्तियाँ कसी होंगी। काला कलूटा, पतला दुबला और बदसूरत सा लड़का भला कैसे बॉलीवुड स्टार बनने के बारे में सोच सकता है। जब शुरु में छोटे मोटे रोल मिले होंगे तो हताशा भी हुई होगी।

फिर भी अपनी प्रतिभा और लगन के दम पर नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने हिंदी फिल्म जगत में अपनी पहचान बना ही ली। कुछ लोग शायद ये भी आरोप लगाएँ कि चूँकि बॉलीवुड पर मुसलमान कलाकारों का वर्चस्व है इसलिये नवाजुद्दीन सिद्दीकी को इतने मौके मिले। लेकिन वे शायद ये भूल जाते हैं कि फिल्मों में सफल होना पूरी तरह जनता पर निर्भर होता है। यदि ऐसा नहीं होता तो आज कुमार गौरव और अभिषेक बच्चन सुपर स्टार होते। यदि ऐसा नहीं होता तो शाहरुख खान और रणवीर सिंह जैसे लोगों का नाम कोई भी नहीं जानता।

बहरहाल; नाम और पैसा कमाने के बाद नवाजुद्दीन सिद्दीकी अपने गाँव लौट रहे हैं। वे माँझी की तरह बस की छत पर बैठकर नहीं आ रहे हैं बल्कि अपने पैसों से खरीदी हुई महँगी कार में आ रहे हैं। गाँव से कुछ दूर पहले जब वे एक ढ़ाबे पर रुकते हैं तो वहाँ बैठे कई लोग उन्हें पहचानने की कोशिश करते हैं लेकिन पहचान नहीं पाते हैं। अब ऊपर वाले ने शकल ही इतनी खराब बनाई है कि कोई इतनी आसानी से उन्हें स्टार नहीं मान पाता। आखिर में एक पंद्रह सोलह साल का लड़का एक फिल्मी मैगजीन में छपी फोटो से मिलान करने के बाद इस बात की पुष्टि कर देता है साक्षात नवाजुद्दीन सिद्दीकी ही उनके सामने बैठे हैं। फिर ढ़ाबे वाला मुफ्त में कोल्ड ड्रिंक बाँटता है और उसके बाद नवाजुद्दीन के साथ सेल्फी लेने का दौर चलता है।

गाँव में पहुँचते ही नवाजुद्दीन के स्वागत में तोरण द्वार सजे हुए हैं। एक बड़ी भीड़ फूल मालाओं से उनका स्वागत करती है। उस भीड़ में ज्यादातर नेता टाइप के लोग हैं। इसलिए आम जनता की भीड़ छतों से ही नवाजुद्दीन की झलक लेने की कोशिश कर रही है।

शाम में नवाजुद्दीन अपने घर के बाहर के दलान में बैठे हैं। उनके चारों ओर चाटुकारों की पूरी फौज है। नवाजुद्दीन सिद्दीकी थोड़ा गंभीर होकर कहते हैं, “भैया, ऊपर वाले की दया से मुझे अपना मुकाम मिल गया। अब सोचता हूँ कि अपने गाँव के लिये कुछ करूँ।“

वहाँ बैठे लोगों में से एक सख्श कौतूहल भरे स्वर में पूछता है, “वाह क्या बात कही है। क्या गाँव में सिनेमा हॉल खोलना चाहते हो?”

नवाजुद्दीन थोड़ा मुसकरा कर कहते हैं, “अब पाइरेटेड मूवी के जमाने में कौन जाता है सिनेमा हॉल। बचपन से ही एक अरमान था कि गाँव की रामलीला में कोई रोल मिल जाता। अब मेरी सूरत देख ही रहे हो। इस सूरत पर राम का क्या रावण का रोल भी न मिले। इसलिये जो भी कोई छोटा मोटा रोल मिल जायेगा वही करके तसल्ली हो जायेगी।“

गाँव के सरपंच भी वहीं बैठे हैं। वे कहते हैं, “भैया बात तो तुमने लाख टके की कही है। लेकिन इसमें एक अड़चन है। तुम तो ठहरे एक मुसलमान और रामलीला तो हिंदुओं की होती है। भला तुमको कोई रामलीला में रोल कैसे देगा।“

नवाजुद्दीन ने कहा, “क्या बात करते हो चाचा। दिल्ली में तो कितने ही मुस्लिम कलाकार रामलीला में काम करते हैं। मैंने सुना है कि दिल्ली की एक रामलीला में रावण का रोल कोई मुसलमान करता है।“

सरपंच ने कहा, “भैया, ये दिल्ली नहीं है। मैने अपने बाल धूप में सफेद नहीं किये हैं। अब तो सुना है कि दिल्ली की भी हवा बदली बदली सी लगती है।“

नवाजुद्दीन ने कहा, “अरे चाचा, आपकी तो पूरे गाँव में बहुत इज्जत है। आप चाहें तो रामलीला कमेटी वालों से मेरे लिये बात चला सकते हैं।“

सरपंच ने कहा, “ठीक है, मैं कोशिश करूँगा। लेकिन याद रखना, अपनी जान माल की सुरक्षा की जिम्मेदारी तुम्हें खुद लेनी होगी।“

उस छोटी सी मीटिंग के बाद अगले दिन सरपंच रामलीला कमेटी से मिलने गये। सरपंच की बात सुनकर तो रामलीला कमेटी में जैसे भूकंप आ गया। रामलीला कमेटी के एक सदस्य ने कहा, “आप हमरे बड़े बुजुर्ग हैं इसलिए आप अभी तक जीवित हैं। आप तो पूरे गाँव का धर्म भ्रष्ट करने पर तुले हुए हैं। आप ये मत भूलें कि रामकथा जिस जमाने की है उस जमाने में मुसलमान जैसा अपवित्र शब्द तो हमारे शब्दकोश में भी नहीं था।“

सरपंच थोड़ा सकते में थे फिर भी कुछ हिम्मत जुटाकर बोले, “अरे भैया, दूरदर्शन पर जो रामायण सीरियल आता था उसमें तो कितने ही मुसलमान कलाकारों ने काम किया था। इसमें कौन सी आफत आ जायेगी।“

रामलीला कमेटी का एक सदस्य बोला, “वो जमाना और था। अब वक्त बदल चुका है। अब हमारी आँखें खुल चुकी हैं। औरंगजेब की औलादों को हम एक एक करके उनके असली मुल्क तक खदेड़ न दें तब तक चैन से नहीं बैठेंगे।“

सरपंच ने देखा कि भैंस के आगे बीन बजाने से कोई फायदा नहीं। इसलिये वे वहाँ से उठकर चल दिये। उनमें इतनी भी हिम्मत नहीं बची थी कि यह खबर नवाजुद्दीन को सुनाएँ।


अगले दिन जब नवाजुद्दीन सुबह सुबह उठकर अपने दलान में आये तो देखा कि बाहर बहुत बड़ी भीड़ लगी थी। सब लोग नारेबाजी कर रहे थे। लोग मांग कर रहे थे कि नवाजुद्दीन तुरंत अपना बोरिया बिस्तर समेट कर मुम्बई के लिये कूच कर जाएँ। गनीमत ये थी कि उनकी सुरक्षा के लिये जिला प्रशासन की ओर से एक पुलिस बल वहाँ आ पहुँचा था। नवाजुद्दीन ने फौरन अपनी गाड़ी निकाली और उसे स्टार्ट कर वहाँ से निकल लिये। उनके आगे पीछे पुलिस की एस्कॉर्ट चल रही थी। मुम्बई पहुँचकर उन्हें एक पुरानी कहावत याद आ गई, “जान बची तो लाखों पाये, लौट के बुद्धु मुम्बई आये।“ 

Monday, September 26, 2016

दुर्वासा और पड़ोसी मुल्क

यदि आप पौराणिक कथाओं में थोड़ी सी भी रुचि रखते हैं तो आपने दुर्वासा का नाम सुना ही होगा। दुर्वासा अत्री और अनुसूया के पुत्र थे और अपने शॉर्ट सर्किट के लिए जाने जाते थे। उनके दिमाग का फ्यूज जरा जरा सी बात पर उड़ जाया करता था और फिर किसी न किसी को उनके गुस्से का दंड मिलता ही था। दुर्वासा के गुस्से के शिकार कई प्रसिद्ध देवी देवता, नर नारी और असुर हो चुके थे। कहा जाता है कि दुर्वासा के शाप के कारण ही बेचारी शकुंतला को दुष्यंत भूल गये थे और शकुंतला की कहानी में ट्विस्ट आया था। कहते हैं कि दुर्वासा के शाप के कारण ही भगवान कृष्ण की मृत्यु एक बहेलिये द्वारा तीर लगने से हुई थी। यह कहानी उसी मशहूर दुर्वासा के मशहूर गुस्से के बारे में है।

यह बात कई हजार वर्ष पुरानी है। आर्यावर्त के पड़ोस में एक छोटा सा देश हुआ करता था। उस देश पर असुरों का राज था। आर्यावर्त के तत्कालीन राजा ने असुरों पर दया करके पड़ोसी देश के साथ एक जल संधि की थी। जल संधि की जरूरत इसलिए पड़ी थी कि अखंड भारतवर्ष की सभी प्रमुख नदियाँ हिमालय की गोद से निकलती हैं। इनमें से पाँच नदियाँ पड़ोसी देश से होते हुए अरब सागर में गिरती हैं। इन पाँच नदियों के नाम हैं; झेलम, रावी, सतलज, व्यास और सिंधु। बाकी की चार नदियाँ पड़ोसी देश में जाकर सिंधु नदी में मिल जाती हैं। उसके आगे सिंधु नदी सारा जल लेकर सागर की ओर बढ़ती है। लेकिन आर्यावर्त में उद्गम होने के कारण नदियों के अधिकांश जल का इस्तेमाल आर्यावर्त में ही होता था जिससे पड़ोसी देश में रहने वाले असुर प्यास से बिलबिला जाते थे। आर्यावर्त के तत्कालीन राजा को उनकी हालत देखकर बहुत तरस आया था इसलिए उसने जल संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए हामी भरी थी। उसके बाद सिंधु नदी के विशाल जल तंत्र का 80% जल पड़ोसी देश को दिया जाने लगा। इससे पड़ोसी देश में रहने वाली असुरों की प्रजा के दिन फिर गये। वे छककर जल का सेवन करने लगे। उनके खेतों की सिंचाई होने लगी जिससे खेतों में पैदावार बढ़ी। नदियों के ऊपर बाँध बनाये गये और पनबिजली निकालने के कारखाने लगाये गये। इससे पड़ोसी देश में खुशहाली छा गई।

अब असुर तो असुर ही ठहरे। वे अपनी आदत से कहाँ बाज आने वाले थे। जब उन्हें भरपूर भोजन पानी मिलने लगा तो उनके दिमाग में कीड़ा बिलबिलाने लगा। उसके परिणामस्वरूप असुरों ने आर्यावर्त में रहने वाले सुरों को परेशान करना शुरु कर दिया। वे हमारे यहाँ के ऋषि मुनियों के यज्ञ में विघ्न डालने लगे। फिर वे हमारे यहाँ की भोली भाली प्रजा को भी परेशान करने लगे। प्रजा की सुरक्षा के लिए आर्यावर्त के राजा ने सीमा पर सेना की चौकसी बढ़ा दी। लेकिन असुरों को इस सबसे कोई फर्क नहीं पड़ा। कई बार उन्होंने हमारी सेना की चौकी पर भी हमला बोल दिया जिसमें हमारे कई सैनिक शहीद हो गये। आर्यावर्त के राजा ने अन्य देशों के राजाओं से इस बाबत बातचीत की लेकिन उसका कोई नतीजा नहीं निकला। समस्या बढ़ती ही जा रही थी। आखिरकार समस्या इतनी बढ़ गई कि एक बार असुरों ने हिमालय की घाटियों में चल रहे दुर्वासा विश्वविद्यालय पर धावा बोल दिया। उस समय दुर्वासा मुनि कोई महत्वपूर्ण यज्ञ कर रहे थे। ऐसा अनुमान लगाया जा रहा था कि उस यज्ञ के संपूर्ण होने के पश्चात दुर्वासा मुनि के के हाथ ब्रह्मास्त्र बनाने का फॉर्मूला लग जायेगा। लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। उस यज्ञ में विघ्न पड़ने के कारण दुर्वासा मुनि का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया। उनके गुस्से की खबर सुनकर आर्यावर्त के राजा आये और पड़ोसी देश के असुरों पर आक्रमण करने की पेशकश की। दुर्वासा ठहरे एक मुनि इसलिए उन्होंने युद्ध के लिये मना कर दिया। उनका मानना था कि युद्ध करने से दोनों ओर के सैनिकों और निर्दोष प्रजा की जान जाने का पाप लगता। दुर्वासा मुनि ने आर्यावर्त के राजा से कहा कि वे कोई ऐसा इलाज करेंगे जिसका असर दीर्घकालीन हो। उनका मानना था कि उस इलाज के बाद पड़ोसी मुल्क फिर कभी भी उठकर खड़ा नहीं हो पायेगा। उनका ये भी मानना था कि उनकी जुगाड़ से साँप भी मर जायेगा और लाठी भी नहीं टूटेगी।

फिर अगले दिन तड़के ही उठकर दुर्वासा मुनि हिमालय की गोद में स्थित उन नदियों के उद्गम स्थल पर गये। वहाँ बैठकर उन्होंने अपने ईष्टदेव को याद किया, सूर्य को नमस्कार किया और उद्गम के किनारे बैठकर नदी का सारा जल पी गये।

उसके बाद तो पड़ोसी मुल्क में त्राहि मच गई। दुर्वासा मुनि रातोंरात आर्यावर्त के हीरो बन गये। सभी टेलिविजन चैनलों पर 24X7 दुर्वासा का ही चेहरा नजर आने लगा। फेसबुक पर दुर्वासा के बारे में जितने भी पोस्ट थे उनपर करोड़ों लाइक मिलने लगे। ट्विटर पर दुर्वासा के हैश्टैग ही सबसे ज्यादा ट्रेंड करने लगे। समस्त आर्यावर्त अपनी सौ करोड़ से अधिक जनसंख्या की ताकत का अहसास पूरे विश्व को दिला रहा था। कई विशेषज्ञ तो दुर्वासा के लिये देश के सर्वोच्च सम्मान आर्यावर्त रत्न की भी मांग करने लगे। आर्यावर्त में जो कोई भी दुर्वासा की आलोचना करता हुआ पकड़ा जाता था उसे सौ कोड़े लगाये जाते और फिर उसे राष्ट्रद्रोह के आरोप में कारागार में डाल दिया जाता।

उधर पड़ोसी मुल्क में जल के लिये कोहराम मचा हुआ था। म्युनिसिपालिटी के नलों पर पानी लेने के लिये दंगे हो रहे थे। पड़ोसी देश की सेना जो सीमा पर रहकर आर्यावर्त को परेशान कर रही थी; अब अपने ही वतन में दंगों को नियंत्रित करने में लगी थी। पड़ोसी देश के धनी असुर अपने देश से पलायन कर रहे थे और खाड़ी देशों को प्रस्थान कर रहे थे। लेकिन जो निर्धन असुर थे वे बेचारे प्यास से मर रहे थे।

इधर दुर्वासा की हालत भी कुछ ठीक नहीं लग रही थी। करोड़ों लीटर पानी तो उन्होंने पी लिया था लेकिन उनका वृद्ध शरीर उस विशाल जलभंडार को बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था। हर पाँच मिनट के बाद उन्हें दो नंबर के लिए जाना पड़ता था। अखिल आर्यावर्त चिकित्सालय के नामी गिरामी वैद्यों ने बताया कि उनकी प्रोस्टेट ग्रंथि बढ़ गई थी जिसके कारण उनका अपने ब्लाडर पर से कंट्रोल सदा के लिए खत्म हो गया था। उसके बाद टीवी स्टूडियो में उनके लिये आसन की जगह कमोड लगा दिया गया ताकि इंटरव्यू में बाधा न पड़े और जनता जनार्दन का नॉन स्टॉप मनोरंजन होता रहे।

इस बीच कई वैद्यों ने ये सलाह दी कि कैथेटर लगाकर उनका मूत्र विसर्जन करवाया जाये लेकिन उससे समस्त आर्यावर्त में बाढ़ आने और उससे मचने वाली प्रलय का खतरा था। फिर दुर्वासा इस बात के लिए नहीं मान रहे थे क्योंकि वे प्राण जाये पर वचन न जाये वाली दलील में यकीन रखते थे।

पड़ोसी देश के निर्धन असुरों ने आर्यावर्त में घुसने की कोशिश भी की लेकिन हमारे जाँबाज सैनिकों ने उन्हें सीमा पर ही रोक लिया। इस घटना से पड़ोसी देश के पशु पक्षी भी परेशान थे। लगभग सभी पक्षी तो उड़कर आर्यावर्त की सीमा में प्रवेश कर गये। उनको आर्यावर्त में आता देख यहाँ के सैनिक निम्नलिखित गाना गुनगुनाते रहे, “पंछी नदिया पवन के झोंके, कोई सरहद न इन्हें रोके।“

पंछी तो वैसे भी सुदूर देशों से हमारे यहाँ आते ही रहते है। साइबेरियन क्रेन तो लगभग पाँच हजार किलोमीटर का सफर तय करके सीधा साइबेरिया से आते हैं। इसलिए हम गर्व से कह सकते हैं कि पंछियों के अतिथि सतकार की हमारी पुरानी परंपरा रही है। पंछियों के आने के बाद अब पशुओं की बारी थी।

आर्यावर्त की पश्चिमी सीमा से लगी एक अहम चौकी पर तैनात हमारे जांबाज सैनिकों में से एक अपनी दूरबीन से पड़ोसी मुल्क पर नजर रख रहा था। तभी उसे दूर क्षितिज पर बवंडर जैसा दिखाई दिया। उसने फौरन अपने साथियों को चौकन्ना कर दिया। सैनिकों के कमांडर को लग रहा था कि शायद पड़ोसी मुल्क ने परमाणु बम दाग दिया है। उसने तुरंत अपने आला अफसरों को संदेश भेजा। सेना के आला अफसरों ने तुरंत आर्यावर्त के राजा को संदेश भेजा। उनका संदेश सुनते ही राजा ने अपने परमाणु बमों को बंकर से ऊपर जमीन पर रखवा लिया।

लेकिन थोड़ी ही देर में सीमा पर तैनात सैनिकों को अहसास हो गया कि आने वाला खतरा परमाणु बमों से भी ज्यादा खतरनाक था। सामने से करोड़ों की संख्या में जानवर आर्यावर्त की ओर दौड़ते हुए चले आ रहे थे। जानवरों के उस विशाल झुंड में हर किस्म के जानवर थे; जैसे कि गाय, बकरी, भैंस, ऊँट, गदहे, कुत्ते, शेर, बाघ, हिरण, नीलगाय, चीता, हाथी, आदि। उतने जानवरों को अपनी ओर आते देख जांबाज सैनिक के होश उड़ गये। उसके कमांडर ने गोलियाँ चलाने का आदेश दिया। इधर से हजारों की संख्या में गोलियाँ चलने लगीं। कई जानवर हताहर हुए जा रहे थे। लेकिन वे इंसान तो थे नहीं कि कुछ जानवरों के मरने से मैदान छोड़कर भाग खड़े होते। वे तो बस पूरब की ओर बढ़ते ही जा रहे थे। ऐसा लग रहा था जैसे अफ्रिका के विशाल मैदानों में जानवरों की भगदड़ हो रही हो। वे अपने रास्ते में आने वाली हर चीज को रौंद रहे थे। जब जानवरों का झुंड बिलकुल पास आ गया तो बेचारे सैनिकों को अपनी जान बचाने के लिए बंकर में छुपना पड़ गया। जानवर अब आर्यावर्त की सीमा में प्रवेश कर रहे थे। सीमा पर के लगे गाँव नेस्तनाबूद हो रहे थे।


यह खबर बिजली की तेजी से दुर्वासा मुनि के पास पहुँची। आर्यावर्त के राजा और समस्त प्रजा अब दुर्वासा के पास त्राहिमाम कर रही थी। दुर्वासा ने देखा कि उनका दांव उल्टा पड़ रहा था। उनके इशारे पर फौरन उनके लिये एक तीव्रगामी विमान लाया गया। विमान दुर्वासा को लेकर सीधा हिमालय की गोद की तरफ उड़ा। वहाँ पर जाकर दुर्वासा ने उन नदियों के उद्गम पर जाकर; जो बिलकुल सूख चुका था: तबीयत से उल्टी की। लगभग एक घंटा तक उल्टी करने के बाद नदियों का प्रवाह सामान्य हो गया और पड़ोसी मुल्क की सूखी धरती शांत हो गई। अब जानवरों को भी राहत मिली और वे अपने वतन की ओर धीरे-धीरे लौटने लगे। सबसे बड़ी राहत दुर्वासा को मिली क्योंकि अब उन्हें ना तो प्रोस्टेट का ऑपरेशन करवाने की जरूरत थी और न ही बार बार दो नंबर जाने की। 

Saturday, September 24, 2016

राजा की बहादुरी

राजा वही बनता है जो बहादुर और दिलेर होता है। इतिहास गवाह है कि कई राजा अपनी बहादुरी के कारण ही अपना साम्राज्य बढ़ा पाये और राजा से महाराज हो गये। कुछ राजा तो इतने बहादुर थे कि उन्होंने बड़ा सा एम्पायर खड़ा कर दिया और सम्राट बन गये। इन्हें सुलतान या शहंशाह भी कहा जाता था।

उन्हीं बहादुर राजाओं के नक्शेकदम पर चलने के चक्कर में चम्पकवन का राजा शेर सिंह भी बहुत बहादुर था। उसकी दिली ख्वाहिश थी कि अपने राज्य का इलाका बढ़ाये। लेकिन इसके लिये उसे सबसे पहले अपने पड़ोस में स्थित नंदनवन पर कब्जा करने की जरूरत थी। लेकिन नंदनवन का राजा बब्बर शेर भी कम नहीं था। वह शेर सिंह से यदि बीस नहीं था तो उन्नीस भी नहीं था। वह भी बहुत महात्वाकांछी था और अपना इलाका बढ़ाना चाहता था।

बढ़ते हुए समय की मांग के कारण दोनों राजाओं की मुलाकात अक्सर अंतर्वनीय मंचों पर हो जाया करती थी जिसमें विश्व के लगभग हर मुख्य वनों के राजा शरीक होते थे। वैसे मंचों पर दोनों मिलते तो थे लेकिन बड़े अकड़ के साथ। एक बार ऐसी ही किसी मीटिंग में दोनों राजाओं; यानि शेर सिंह और बब्बर शेर में कुछ बातों को लेकर बहस हो गई। दोनों एक दूसरे पर यह आरोप लगा रहे थे कि दूसरे वन के जानवर चोरी छुपे उनके वन में आते हैं। वे एक दूसरे पर यह आरोप भी लगा रहे थे कि इससे स्थानीय जानवरों में बुरी आदतें फैलने लगी हैं जो अच्छी बात नहीं है। उसके बाद मामला तुम्हें देख लूँगा, तुम्हें देख लूँगापर छूटा।

मीटिंग से जब शेर सिंह वापस लौटे तो उनके सिपहसलाहकारों ने इस बात को बड़ी गंभीरता से लिया। मोटू गैंडे ने कहा, “महाराज, उसकी ये मजाल जो आपको आँखे दिखा दे। आप बस आदेश दें तो मैं अकेला ही उसकी किले जैसी मांद को ढ़ाह कर आ जाऊँगा।“

ऐसा सुनकर भोलू भालू ने कहा, “महाराज, सीधा आक्रमण करना ठीक नहीं होगा। आप आदेश करें तो मैं मधुमक्खियों की पूरी फौज भेज दूँ। इस तरह से हमारी फौज का कम से कम नुकसान होगा।“
तभी चतुर लोमड़ी बोल उठी, “अरे जंग में तब तक मजा नहीं आता जब खून न बहे। आपके एक ही इशारे पर लोमड़ियों का पूरा दल अपनी जान दे देगा।“

मंटू हाथी अपनी गंभीर वाणी में बोला, “मेरी सलाह मानें तो पहले इस मुद्दे को बातचीत से हल करने की कोशिश करनी चाहिए। इसीसे दोनों जंगलों के जानवरों में शांति और प्रेम रहेगा।“

लेकिन लगता है कि शेर सिंह अपनी बेइज्जती से कुछ ज्यादा ही तिलमिलाये हुए थे। साथ में उन्हें ये भी लगता था कि कहीं प्रजा ने उन्हें डरपोक समझ लिया तो फिर ऐसी तैसी हो जायेगी। सो शेर सिंह ने फैसला किया कि बब्बर शेर को आमने सामने की लड़ाई की चुनौती दी जाये।

उसके बाद हरियल तोते को दूत बनाकर बब्बर शेर के पास भेजा गया। बब्बर शेर तो जैसे उसका ही इंतजार कर रहा था। उसे देखते ही वह आग बबूला हो गया और बोला, “जाओ और अपने राजा से कह दो कि यहाँ किसी ने चूड़ियाँ नहीं पहन रखी हैं। अबकी बार तो मैं चम्पकवन को नक्शे से हि मिटा दूँगा।“

उसके बाद पहले से तय तारीख यानि जिस दिन पूरा चांद निकलता है उस दिन दोनों राजा लड़ाई के लिए चल पड़े। चम्पकवन और नंदनवन के बीच एक नदी पड़ती थी। उस नदी पर एक पुराना पुल था जिसे इंसानों ने बनवाया था। लेकिन अब उस पुल को कोई भी इंसान इस्तेमाल नहीं करता था। चम्पकवन की ओर से शेर सिंह अपने दलबल के साथ पुल के पास पहुँचा। आगे-आगे शेर सिंह चल रहा था और उसके पीछे उसके चुनिंदा सिपहसलाहकार चल रहे थे। उन सबके पीछे चम्पकवन के जानवर चल रहे थे। नदी के किनारे पहुँचते ही सबने एक सुर में नारा लगाया, “चम्पकवन जिंदाबाद!”
उधर से बब्बर शेर भी आ पहुँचा। बब्बर शेर के पीछे उसके सिपहसलाहकार चल रहे थे। उनके पीछे नंदनवन के सारे जानवर भी थे। नदी के किनारे पहुँचते ही सबने एक सुर में नारा लगाया, “नंदनवन जिंदाबाद!”

अब इधर से शेर सिंह जोर से दहाड़ा, “आज तो खून की नदियाँ बह जाएँगी।“

उधर से बब्बर शेर जोर से दहाड़ा, “आज तो लाशें बिछ जाएँगी।“

इधर से शेर सिंह जोर से दहाड़ा, “आज कयामत आ जाएगी।“

उधर से बब्बर शेर जोर से दहाड़ा, “आज तो प्रलय हो जाएगा।“

उसके बाद इधर से शेर सिंह नपे कदमों से पुल से होकर चलने लगा। उधर से बब्बर शेर भी नपे कदमों से उसकी तरफ आने लगा। बीच-बीच में दोनों तरफ के जानवर जोर-जोर से नारे लगा रहे थे। थोड़ी देर के बाद शेर सिंह और बब्बर शेर पुल के ठीक बीच में आमने सामने थे। दोनों एक दूसरे को आँखें तरेर कर देख रहे थे। शेर सिंह ने एक भयानक दहाड़ लगाई। जवाब में बब्बर शेर ने उससे भी भयानक दहाड़ लगाई। फिर दोनों ने अपने आगे के पंजे उठाये और एक दूसरे से गुत्थमगुत्था हो गये। लेकिन दोनों एक दूसरे को टस से मस नहीं कर पा रहे थे। दोनों तरफ के जानवर सांस रोके उस दृश्य को देख रहे थे।

शेर सिंह ने कहा, “तुम्हारे अयालों से ठेठ मरदाना महक आ रही है।“

बब्बर शेर ने कहा, “तुम्हारे अयालों से भी ठेठ मरदाना महक आ रही है।“

शेर सिंह ने कहा, “लगता है नंदनवन में खाने को मोटे ताजे हिरण मिलते हैं तुम्हें।“

बब्बर शेर ने कहा, “लगता है चम्पकवन में खाने को मोटे ताजे भैंसे मिलते हैं तुम्हें।“

शेर सिंह ने नथुने फुफकारते हुए कहा, “आज की रात तुम्हारी आखिरी रात होगी। उम्मीद है कि अपनी शेरनी को अलविदा कह आये होगे।“

बब्बर शेर ने नथुने फुफकारते हुए कहा, “आज की रात तुम्हारी आखिरी रात होगी। उम्मीद है कि अपनी शेरनी से आखिरी बार गले मिलकर आये होगे।“

शेर सिंह ने कहा, “गजब का दम है तुम्हारी बाजुओं में।“

बब्बर शेर ने कहा, “गजब की ताकत है तुम्हारे पंजों में।“

शेर सिंह ने कहा, “मुझे बहुत बुरा लगेगा यदि तुम्हारे जैसे सच्चे शेर की हत्या कर दूँ।“

बब्बर शेर ने कहा, “मुझे भी बहुत बुरा लगेगा यदि मेरे हाथों एक बहादुर शेर का खून हो जाए।“

शेर सिंह ने कहा, “नंदनवन का इलाका तुम्हारा है।

बब्बर शेर ने कहा, “चम्पकवन का इलाका तुम्हारा है।“

शेर सिंह ने कहा, “फिर लड़ाई किस बात की है।“

बब्बर शेर ने कहा, “फिर लड़ाई किस बात की है।“

उसके बाद दोनों ने एक दूसरे को बड़े अदब से झुककर सलाम किया और वापस अपने अपने जंगलों की ओर लौट गये। दोनों तरफ के जानवरों ने जोर-जोर से नारे लगाने शुरु कर दिये। सबने राहत की सांस ली। उसके बाद दोनों जंगलों के कबूतर आसमान में ऊँचाई पर उड़ने लगे ताकि दूर दूर तक शांति का संदेश फैल सके।

(साभार: यह कहानी भगवतीचरण वर्मा की कहानी दो बांकेसे प्रेरित है।)


Thursday, September 22, 2016

नापाक हमला

पहला दिन
राजा का दरबार लगा हुआ है। पूरे दरबार में गहमागहमी है जो कि इतने बड़े राज्य के दरबार के लिए लाजिमी भी है। दरबार को शुरु हुए लगभग एक घंटा बीत चुका है। अभी तक कुछ छोटे मोटे मामलों को छोड़कर कोई भी गंभीर मुद्दा राजा के विचार के लिये नहीं आया है। इसलिए राजा पर कुछ कुछ बोरियत के भाव देखे जा सकते हैं।

तभी एक गुप्तचर तेजी से दरबार में दाखिल होता है। उसके चेहरे पर पसीने की बूँदें बता रही हैं कि वह कोई गंभीर बात बताने आया है। गुप्तचर को देखकर राजा कहते हैं, “आओ मेरे भरोसेमंद गुप्तचर। क्या खबर लाये हो?”

गुप्तचर के सुर में घबराहट और अधीरता के भाव हैं। वह कहता है, “हे राजन, गजब हो गया। अभी अभी सूचना मिली है कि पड़ोस के दुश्मन राजा की सेना ने हमारी सीमा पर आक्रमण कर दिया है। आक्रमणकारियों ने सीमा पर तैनात हमारी सेना के कैंप पर धावा बोल दिया है। अब तक हमारे बीस सैनिक शहीद हो चुके हैं।“

राजा थोड़ा आशंकित से दिख रहे हैं और पूछते हैं, “आगे बताओ गुप्तचर। ताजा स्थिति नियंत्रण में है या हमें कुछ कड़े कदम उठाने होंगे।“

गुप्तचर कहता है, “महाराज, अच्छी खबर ये है कि हमारे एक जांबाज सैनिक ने आक्रमणकारियों का डटकर मुकाबला किया और उन्हें मार गिराया। आक्रमणकारियों की संख्या केवल पाँच थी।“

राजा थोड़े और गंभीर हो गये और बोले, “चलो ये तो अच्छी खबर है। लेकिन मुझे प्रजा की चिंता सता रही है। उम्मीद है ये खबर अभी प्रजा में नहीं फैली होगी।“

गुप्तचर ने थोड़ी सांस ली और बोला, “जी नहीं महाराज। अभी तक खबरनवीसियों को कोई भी अहम सूचना लीक नहीं हुई है।“

राजा ने ठंडी सांस ली और बोले, “खबरनवीसियों को बता दिया जाये कि इस खबर को इस तरह से पेश किया जाए ताकि प्रजा में हमारी सेना की बहादुरी के किस्से फैल जाएँ।“

उसके बाद राजा ने एक प्रेस कॉंन्फ्रेंस बुलाई और उसे संबोधित करते हुए बोले, “आपको पता ही होगा कि हमारे पड़ोसी राज्य की नापाक नजरें किस तरह हमारी ओर गड़ी होती हैं। आज सुबह सुबह ही उनके चार सैनिकों ने हमारी सीमा पर आक्रमण कर दिया। लेकिन हमारे सिपाही बहादुरी से लड़े और उन्हें मार गिराया। हम अपना सीना चौड़ा करके कह सकते हैं कि इस हमले में हमारे बीस सैनिक शहीद हो गये। यह पूरा राज्य उन शहीद सैनिकों के बलिदान को हमेशा याद रखेगा और उनकी माँओं का सदैव आभारी रहेगा। हम ये वादा करते हैं कि उनकी शहादत को व्यर्थ न जाने देंगे। हम ईंट का जवाब पत्थर से देंगे। हम एक दाँत के बदले दुश्मन का पूरा जबड़ा उखाड़ देंगे। मैं प्रजा को ये भरोसा दिलाना चाहता हूँ कि हमारी सेना हर तरह से दुश्मन से लोहा लेने में सक्षम है। अगर जरूरत पड़ी तो हम अपने पड़ोसी राज्य को अपने ब्रह्मास्त्र से नेस्तनाबूद कर देंगे। इस बार हम आर पार की लड़ाई लड़ेंगे।“

दूसरा दिन

दूसरे दिन सुबह से ही राज्य के विभिन्न शहरों, गाँवों और गली मुहल्लों में खास तौर पर प्रशिक्षित चारणों को काम पर लगा दिया गया। वे सब उस युद्ध का बढ़ा चढ़ाकर व्याख्यान कर रहे थे। हर व्याख्यान में शहीद सैनिकों की बहादुरी के किस्से कहे जा रहे थे। साथ में शेर दिल राजा की चौड़ी छाती के बारे में भी कशीदे काढ़े जा रहे थे। ऐसे ही किसी नुक्कड़ पर चारणों द्वारा एक जनसभा को संबोधित किया जा रहा था तभी एक गुप्तचर राजा का संदेश लेकर आया। उसका संदेश सुनने के बाद तो चारणों के तेवर और भी आक्रामक हो गये। उसके बाद चारण ने कहना शुरु किया, “देवियों और सज्जनों। आपके लिए एक और खुशखबरी है। अभी अभी खबर आई है कि हमारे खास रूप से प्रशिक्षित कमांडो की एक टुकड़ी ने बीती रात चुपके से दुश्मन के इलाके में प्रवेश किया। उनकी संख्या केवल पाँच थी। वे बड़ी बहादुरी से दुश्मन के इलाके में गये और उनकी छावनी पर तब आक्रमण किया जब वे इस सबसे बेखबर सो रहे थे। इस आक्रमण में हमारे कमांडो ने एक पूरी की पूरी छावनी को तबाह कर दिया। दुश्मन के कितने सैनिक हताहत हुए हैं इसकी तो फिलहाल कोई पुष्टि नहीं हो पाई है लेकिन इतना पक्का पता है कि इससे दुश्मन सहम गया है। उस सफल हमले के बाद हमारे कमांडो सुरक्षित अपने राज्य में वापस आ गये हैं। महाराज ने उन्हें वीरता पुरष्कार से सम्मानित करने की घोषणा कर दी है। अब इसी खुशी में हम वीर रस की कुछ चुनिंदा भजन गाते हुए अपनी सभा जारी रखेंगे।“


उसके बाद एक से एक हिट भजनों को प्रस्तुत किया गया। उसके लिए मायानगरी से एक से एक चुनिंदा कलाकारों को ड्यूटी पर लगाया गया था। उनमें से सबसे हिट भजन इस प्रकार है, “सुनो गौर से दुनिया वालों, चाहे जितना जोर लगा लो, सबसे आगे हैं हमरे सिपाही।“ 

शाहजहाँ का बुढ़ापा

शाहजहाँ अब बूढ़े हो गये हैं। लंबे समय तक अपने सल्तनत पर सुखपूर्वक राज्य करने के बाद उन्हें इस बात की खुशी होती है कि सल्तनत का चहुमुखी विकास हुआ है और प्रजा खुशहाल है। लेकिन बुढ़ापा ऐसी चीज होती है कि ऐसे समय में अपने औलाद भी साथ छोड़ देते हैं; फिर प्रजा तो पराई होती है। हर तरफ से मांग उठने लगी थी कि किसी शहजादे को बादशाह बनाकर शाहजहाँ सन्यास ले लें। लेकिन गद्दी का मोह शायद पुत्रमोह से भी बड़ा होता है। इसलिए काफी मान मनौवल के बाद शाहजहाँ ने अपने बड़े शहजादे को बादशाह बना दिया। 

बादशाह बनते ही शहजादे के तेवर बदल गये। वह अपने आपको एक शक्तिशाली शहंशाह समझने लगा और बादशाह की ऐसी तैसी करने लगा। वह प्रजा के दिल में अपनी एक खास तसवीर बनाना चाहता था इसलिए बादशाह के कार्यकाल की जमकर आलोचना करने लगा। बूढ़े बादशाह चुपचाप इसे बर्दाश्त करते रहे। लेकिन एक दिन शाहजादे ने सारी सीमाएँ पार कर दीं। उसने शाहजहाँ के अनूठे निर्माण पर ही सवालिया निशान खड़े कर दिये। कहने लगा कि ताजमहल को बनाना एक फिजूलखर्ची थी। अब बादशाह ठहरे पुराने आशिक इसलिए अपने प्यार की निशानी की तौहीन उनसे बर्दाश्त नहीं हुई। 

बेचारे बादशाह अभी इस मुद्दे पर कुछ करने की सोच ही रहे थे कि शाहजादे ने उनपर एक से बढ़ कर एक आक्रमण करना शुरु कर दिया। शहजादे ने बादशाह के कुछ अजीम नवरत्नों को एक एक करके उनके पदों से हटाना शुरु कर दिया। इनमें से दो तो बादशाह के चचेरे भाई ही थे। इनमे से तीसरा आदमी तो बादशाह के रिश्ते में नहीं था लेकिन उनके मुँहबोले भाई से कम नहीं था। उसकी तौहीन को बादशाह ने अपनी तौहीन माना। फिर क्या था, बादशाह बिफर पड़े। उनकी बूढ़ी हड्डियों में सोया हुआ जोश फिर से जाग गया। रस्सी जल गई थी लेकिन ऐंठन नहीं गई थी। बादशाह ने अपने दोनों चचेरे भाइयों और अपने मुँहबोले भाई जैसे नवरत्न को एक गुप्त मंत्रणा के लिए यमुना के किनारे एक गुप्त कोठरी में बुलवाया।

बादशाह के एक चचेरे भाई ने कहा, “जिल्ले इलाही, आपका लौंडा तो पाजामे से बाहर आने को बेताब हो रहा है। हमारी वर्षों की कमाई इज्जत को धूल में मिलाना चाहता है।“

बादशाह के दूसरे चचेरे भाई ने कहा, “जिल्ले इलाही, मुझे तो ये डर सता रहा है कि ये कहीं ताजमहल के डिमोलिशन का आदेश न जारी कर दे।“

उसके बाद बादशाह के मुँहबोले भाई जैसे नवरत्न ने कहा, “मुझे तो इससे भी ब‌ड़ा डर सता रहा है।कहीं ये आपको कारागार में न डाल दे। फिर कारागार की खिड़की से ताजमहल को निहारते हुए आपके आखिरी वक्त बीत जाएँगे।“

ऐसा सुनते ही बादशाह को काठ मार गया। काफी देर के बाद जब वो कुछ संभले तो बोले, “क्या इसी दिन के लिए मैंने औलाद पैदा की थी। बुढ़ापे में हमें क्या चाहिए? थोड़ी इज्जत और चंद रंगीन शाम। आखिर मेरे बाद सबकुछ उसका ही तो है। पता नहीं उसे अपनी इमेज बिल्डिंग एक्सरसाइज के लिए किस नामाकूल ने सलाह दी?”

फिर उन चारों में देर तक मंत्रणा चली। इस बीच उनके कुछ खास अर्दलियों ने बिरयानी, कवाब और सोमरस की सप्लाई जारी रखी। साथ में लखनऊ की एक महान तवायफ का नाच भी होता रहा। एक आशिकाना माहौल मे मीटिंग खत्म करने के बाद भूतपूर्व बादशाह ने इस बात का निर्णय ले लिया था कि शाहजादे को कैसे रास्ते पर लाया जाये और उसे उसकी सही औकात दिखाई जाए।

अगले दिन बादशाह ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई। प्रेस कॉन्फ्रेंस में बादशाह ने कुछ अहम घोषणाएँ कीं जो निम्नलिखित हैं।

  • नए बादशाह की कम उम्र और अनुभव हीनता को देखते हुए यह जरूरी हो जाता है कि कुछ पुराने और अनुभवी लोग अहम जिम्मेदारियाँ संभाल लें।
  • हमारे बड़े चचेरे भाई को सूबे की फौजदारी अदालतों का मुखिया बनाया जाता है। बिना उनके आदेश के किसी को भी कारागार में नहीं डाला जा सकेगा।  
  • हमारे छोटे चचेरे भाई को सूबे की दीवानी अदालतों का मुखिया बनाया जाता है। बिना उनके आदेश के किसी पर भी कोई फर्जी मुकदमा नहीं चलाया जा सकेगा।
  • हमारे सबसे पुराने और विश्वस्त नवरत्न को सूबे का बख्शी बनाया जाता है। रुपये पैसे का पूरा हिसाब किताब उनके पास ही रहेगा।
  • हम; यानि कि भूतपूर्व बादशाह; अब सुपर बादशाह के पद पर बैठेंगे। मेरे दस्तखत के बिना अब जवान बादशाह का कोई भी फैसला मान्य नहीं होगा।



इन घोषणाओं को सुनकर पूरे सल्तनत के चारण हरकत में आ जाते हैं। वे बूढ़े बादशाह की तारीफ में फेहरिश्त पढ़ना शुरु कर देते हैं। लेकिन तवारीख लिखने वाले सकते में आ गये हैं। उन्हें लगता है कि जब तक शाहजहाँ जेल में दम नहीं तोड़ते तब तक इतिहास के किस्सों में ठीक से रस नहीं आ पायेगा। 

Monday, September 19, 2016

हाई लेवेल मीटिंग (उच्च स्तरीय बैठक)

यह एक बहुत पुरानी कहानी है। इस कहानी का सार अधिकतर लोगों को पता होगा क्योंकि यह कहानी पंचतंत्र से ली गई है। फिर भी इस कहानी को ताजा घटनाओं के संदर्भ में लिखने की जरूरत पड़ती ही रहती है। आगे बढ़ने से पहले इस कहानी को एक बार फिर से याद कर लेते हैं। संजीवक नाम का बैल जंगल में इसलिए भटक रहा था क्योंकि उसके रखवालों ने उसे उसके हाल पर छोड़कर जंगल से भाग जाने में अपनी भलाई समझी थी। थोड़े ही दिनों में जंगल की ताजा घास खाकर और ताजी आबो हवा में सांस लेकर संजीवक फिर से हट्टा कट्ठा हो गया था। खुले जंगल में घूमने के कारण संजीवक का कॉन्फिडेंस धीरे-धीरे ओवरकॉन्फिडेंस में बदलने लगा था और वह उसका मजा भी ले रहा था।

उसी जंगल में पिंगलक नाम का एक शेर रहता था जो कि उस जंगल का राजा भी था। पिंगलक कभी भी अकेले नहीं घूमता था बल्कि इंसानी नेताओं और राजाओं की तरह पूरे दल बल के साथ घूमता था। उसके साथ अंगरक्षकों की एक फौज भी चलती थी। इसकी झाँकी आधुनिक काल के बड़े नेताओं में भी देखने को मिलती है। जैसे ही कोई नेता बहुत बड़ा हो जाता है वह अकेले घूमना बंद कर देता है। साथ में हमेशा अंगरक्षकों की एक फौज जरूर होती है। ऐसा वह दो कारणों से करता है। सबसे बड़ा कारण होता है जान जाने का डर। कहीं बीच में ही जान चली गई तो फिर बड़ी मुश्किल से हाथ आई सत्ता का सुख क्षणभंगुर रह जायेगा। दूसरा कारण होता है स्टैटस सिंबॉल। अंगरक्षकों की जितनी भयंकर फौज नेता का उतना ही अधिक महात्म्य। बहरहाल, पिंगलक अपने अंगरक्षकों और चाटुकारों की फौज के साथ पानी पीने के लिए नदी के किनारे की ओर जा रहा होता है। तभी उसे संजीवक के रंभाने की आवाज सुनाई पड़ती है। संजीवक के रंभाने की आवाज पिंगलक को किसी भयानक जानवर की दहाड़ की तरह सुनाई देती है। पिंगलक उस दहाड़ को सुनकर अंदर तक डर जाता है और उसके रोंगटे खड़े हो जाते हैं। वह तेजी से अपने कदम पीछे हटाता है झाड़ियों की ओट में छुप जाता है। उसके चारों ओर अंगरक्षकों और चाटुकारों की सुरक्षा कवच बन जाती है। अब पिंगलक ठहरा एक राजा इसलिए वह अपने चेहरे से डर को छुपाने की कोशिश करता है और कॉन्फिडेंट दिखने की कोशिश करता है। वह ऐसा इसलिए करता है ताकि उसके चाटुकार उसे डरपोक न समझ लें। यदि ऐसा हो गया तो फिर चाटुकारों के दल बदलने का खतरा पैदा हो सकता है। इसलिए अपनी सत्ता बचाने के लिए पिंगलक के लिए यह जरूरी हो जाता है कि वह कॉन्फिडेंट दिखता रहे।

उसके बाद उसी झाड़ियों की ओट में पिंगलक और उसके चाटुकारों की एक लंबी मीटिंग चलती है। वहाँ उपस्थित सभी जानवर उस अनजान से भयानक जानवर से निपटने के लिए तरह तरह की योजना बनाते हैं। उनकी मीटिंग पर कोई दूर से भी नजर रख रहा होता है। ये दोनों प्राणि हैं दमनक और कर्टक नाम के सियार जो बहुत ही सयाने हैं। बहुत साल पहले उनके पिता राजा के मंत्रीमंडल के वरिष्ठ सदस्य हुआ करते थे। लेकिन उनके पिता की मृत्यु के बाद राजा ने उन्हें दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल दिया था। दमनक और कर्टक के लिए यह किसी सुनहरे मौके से कम नहीं होता है। वे इस मौके को हाथ से नहीं जाने देना चाहते हैं और इस अवसर को इस तरह भुनाना चाहते हैं ताकि वे मंत्रीमंडल में शामिल हो जाएं। मौका देखकर दमनक और कर्टक राजा की मंडली के पास पहुँचते हैं और सलाम बजाने के बाद राजा से उसकी परेशानी का कारण पूछते हैं।

दमनक ने पूछा, “महाराज की जय हो। लगता है महाराज की तबीयत कुछ नासाज है। माथे पर पसीने की बूँदें नजर आ रही हैं।“

ऐसा सुनकर पिंगलक अपने चेहरे पर एक फीकी हँसी लाने की कोशिश करता है और कहता है, “अरे नहीं, कुछ नहीं। बस यूँ ही, ………. आज का मौसम कुछ ज्यादा ही उमस वाला है इसलिए थोड़ी घुटन सी हो रही है।“

उसके बाद कर्टक कहता है, “हाँ महाराज, मैने भी देख लिया है कि इस उमस का असली कारण क्या है। लगता है कोई भयानक जानवर इस जंगल में आ गया है और आपको चुनौती दे रहा है। अभी तो चुनाव आने में तीन साल बचे हुए हैं। लेकिन लगता है कि ये तो आपको मध्यावधि चुनाव के लिए बाधित कर देगा। या हो सकता है चुनाव के बगैर भी तख्तापलट कर दे। अब बाकी सभासदों का क्या भरोसा। आजकल तो लोग थोड़ी सी बोटियों की लालच में दल बदल लेते हैं।“

ऐसा सुनकर पिंगलक ने कहा, “अब तुमने मामले को ताड़ ही लिया तो फिर तुमसे क्या छिपाना। आखिर तुम ठहरे हमारे पुराने मंत्री के बेटे। लगता है स्वर्गीय मंत्री जी ने अपनी अकल विरासत में तुम्हें दे दी थी। अब तुम ही कोई उपाय बताओ कि इस नए खतरे से कैसे निबटा जाये।“

दमनक ने कहा, “महाराज, यदि अभयदान का वचन दें तो मैं कुछ कहूँ।“

पिंगलक ने कहा, “हाँ हाँ, निडर होकर कहो।“

दमनक ने कहा, “शास्त्रों में कहा गया है कि नासूर को तभी काट देना चाहिए जब वह छोटा हो। नहीं तो वह बाद में भगंदर का रूप ले सकता है और फिर बड़ी तकलीफ देता है। आप फौरन ही अपनी सेना लेकर इसपर आक्रमण कर दीजिए और इसे मुँहतोड़ जवाब दीजिए।“

कर्टक ने बीच में ही टोका, “नहीं महाराज, ऐसा हरगिज मत करिये। चाणक्य ने कहा है कि कभी भी किसी दुश्मन को कमजोर समझने की गलती नहीं करनी चाहिए। सबसे पहले उसकी शक्ति और कमजोरी का पता करना चाहिए। उसके बाद सटीक योजना बनाकर ही आक्रमण करना चाहिए।“

दमनक ने कहा, “महाराज, प्रजा का दिल जीतने के लिए राजा को समय आने पर बहादुरी दिखाने से पीछे नहीं हटना चाहिए। यदि प्रजा को राजा की बहादुरी पर संदेह हो गया तो फिर उस राजा के गिने चुने दिन ही बच जाते हैं। मान और सम्मान की कीमत हमेशा से ही प्राणों से अधिक रही है।“

कर्टक ने कहा, “नहीं महाराज, जब जान ही चली जायेगी तो फिर झूठी इज्जत लेकर क्या होगा। एक बुद्धिमान राजा को दुश्मन की औकात देखकर ही कोई कदम उठाना चाहिए। यदि दुश्मन कमजोर हो तो उसे पटखनी दें नहीं तो उससे हाथ मिला लें। इतिहास में इसके सैंकड़ों उदाहरण हैं कि किस तरह से कई राजाओं ने अपने दुश्मन से हाथ मिलाकर बड़े से बड़ा साम्राज्य बना लिया। इससे बिना मतलब के खून खराबे को रोका जा सकता है और प्रजा भी खुशहाल रहती है।“


फिलहाल अभी राजा पिंगलक के दरबार में उच्चस्तरीय मीटिंग चल रही है। बाहर जो भी थोड़ी बहुत खबर लीक हो रही है उससे यह पता चल रहा है कि कोई ठोस नतीजा नहीं निकला है। उधर इन बातों से बेखबर संजीवक मजे ले रहा है और बीच बीच में जोर से रंभा भी रहा है। उसकी दहाड़सुनकर पिंगलक और उसके चाटुकारों की सांस अटक जा रही है और वे उसी तरह से झाड़ियों की ओट में दुबककर अपनी उच्चस्तरीय मीटिंग कर रहे हैं। 

Friday, September 9, 2016

खूँटे से बँधी गाय

नेताजी सुबह सुबह नहा धोकर तैयार हो गये। ऊपर से नीचे तक झक सफेद कुर्ता पायजामा और उसपर से सफेद चप्पल। लगता था जंपिंग जैक (जीतेंद्र) के ठेठ देसी अवतार। हाँ उस चमकदार सफेदी पर रंगों की हल्की सी छटा बिखेरने के लिए उन्होंने एक गमझा कंधे पर डाल लिया था जिसमें केसरिया और हरे रंग दिख रहे थे। लेकिन अभी तक सेक्रेटरी का कहीं अता पता न था। नेता जी ने समय का सदुपयोग करने के लिए अपने बंगले के लॉन में मॉर्निंग वाक करना ही बेहतर समझा। जैसे ही उन्होंने मॉर्निंग वाक शुरु किया उनके नथुनों में ताजी हवा की खुशबू की जगह एक अजीब सी दुर्गंध फैलने लगी। नेताजी ने तुरंत अपने माली को आवाज लगाकर पूछा, “अबे ये बदबू किस चीज की आ रही है? तुम तो देहाती आदमी हो इसलिए इस बदबू को पहचानते होगे।“

माली ने जवाब दिया, “क्या नेताजी, आप भी तो कहते हैं कि आपका बचपन किसी गाँव में बीता था। फिर आप ये भी दंभ भरते हैं कि आप तो किसानों के हमदर्द हैं। गोबर जैसी चिरपरिचित चीज की बदबू नहीं पहचान पा रहे हैं।“

नेताजी थोड़ा झल्लाए और कहा, “अरे नहीं, जब से सांसद बना हूँ तब से साफ सुथरे बंगले में रहता आया हूँ। ज्यादातर जगह की यात्रा हवाई जहाज से करता हूँ। जहाँ हवाई जहाज नहीं पहुँच सकता वहाँ तो मैं एअरकंडीशन गाड़ी में जाता हूँ। इसलिए बाहर की आबो हवा के बारे में कुछ पता ही नहीं चलता। खैर छोड़ो, ये गोबर की बदबू कहाँ से आ रही है?”

माली ने कहा, “सरकार, अब गोबर की बदबू किसी फूल से थोड़े न आएगी। जरूर गोबर से ही आ रही होगी।“

नेताजी ने अब थोड़ी तल्खी से पूछा, “वो तो मैं समझ गया। लेकिन हमारे बंगले के आस पास गोबर कहाँ से आ गया। जाओ जाकर पता लगाओ।“

माली दौड़कर बंगले के गेट तक गया और वहीं से नेताजी को पास आने का इशारा करने लगा। नेताजी लगभग दौड़ते हुए गेट तक पहुँचे। वहाँ पर बुरा हाल था।

ठीक गेट से ही मोटी मोटी रस्सियों से कई गाएँ और साँड बँधे हुए थे। मेन रोड से गेट तक आने वाली छोटी सी सड़क पर इतनी गाएँ बँधी थी कि तिल रखने की जगह नहीं थी।

नेताजी ने नाक को अपने गमछे से ढ़क लिया और बोले, “अरे बाप रे, ये गाएँ तो बहुत बुरी हालत में लग रहीं हैं। इनमें से तो कुछ के पेट भी खराब लग रहे हैं। उनका गोबर तो दस्त की तरह दिख रहा है। गोबर की बदबू भी कुछ अजीब सी है।“

माली ने जवाब दिया, “सरकार, ये सब आवारा पशु लगते हैं। दिन भर कूड़ा कचरा खाने की वजह से इनका हाजमा भी खराब हो गया है। गोबर की अजीब सी बदबू भी ऊलजलूल खाने के कारण है।“

नेताजी ने नाक भौं सिकोड़ते हुए कहा, “लगता है ये सब विपक्ष की चाल है।“

माली ने कहा, “हाँ हाँ, आपको जुकाम भी हो जाए तो विपक्ष पर ही आरोप लगता है।“

तभी नेताजी का सेक्रेटरी गेट के बाहर से आता दिखाई दिया। गेट खोलकर आने का सवाल ही नहीं पैदा होता था। लिहाजा सेक्रेटरी दीवार फाँद कर अंदर घुसा। उसे देखते ही नेताजी आग उगलने लगे, “कहाँ थे सुबह से? जरूरी मीटिंग में जाना है। उसके बाद गौरक्षा के सिलसिले में भाषण भी देने जाना है। तुम्हारे रहते हुए ये सब किसने कर दिया?

सेक्रेटरी ने थोड़ा दम लेने के बाद कहा, “अरे सर, लगता है कल का न्यूज नहीं सुना आपने। आजकल जो नया जोकर आ गया है उसने कल किसी खूँटा गाड़ो अभियान के बारे में बताया था। कह रहा था कि हमारी पार्टी के सभी आला नेताओं के घर के बाहर आवारा गायों को खूँटे से बाँध देगा। इतनी जल्दी वे काम पर भी लग जाएँगे पता नहीं था।“

तभी बंगले के सामने कई नामी गिरामी टीवी चैनलों के ओबी वैन रुकते दिखाई दिये। उनमें से धड़ाधड़ कैमरामैन उतरने लगे। साथ में सुंदर और कमसिन बालाएँ हाथ में माइक लिए गेट की तरफ दौड़ती दिखाई पड़ गईं। अब नेताजी के पास और कोई रास्ता न था। बुझे मन से उन्होंने गेट खोला और बाहर की तरफ चल पड़े। गेट से बाहर आते ही उनका पहला पैर छपाक से गोबर की ढ़ेर पर पड़ा। नेताजी का मन अंदर तक घिन से भर गया। लेकिन अपनी वेदना छुपाते हुए नेताजी ने चेहरे पर 1000 वाट की मुसकान लाने में सफलता पा ली थी। एक टीवी रिपोर्टर ने इस तरह की जींस और टीशर्ट पहन रखी थी जिससे उसका यौवन नेताजी पर कहर ढ़ाने के लिए काफी था। उस रिपोर्टर ने नेताजी के मुँह में माइक घुसेड़ते हुए पूछा, “नेताजी, आपके बंगले के बाहर इतनी गाएँ बँधी हुई हैं। आपको कैसा महसूस हो रहा है?”

नेताजी ने अपनी बत्तीसी दिखाते हुए कहा, “मुझे बहुत ही अच्छा महसूस हो रहा है। ऐसा लगता है कि मेरा बचपन वापस आ गया है। ऐसा लगता है कि मैं सुबह सुबह गाएँ चराने जा रहा हूँ। गाय हमारी माता है। हम तो बचपन से ही गौ माता की सेवा में उद्धत रहे हैं।“

रिपोर्टर ने फिर पूछा, “नेताजी, इन गायों का आप क्या करेंगे। इन्हें यहाँ से खदेड़ देंगे या अपने आलीशान बंगले में पनाह देंगे।“

नेताजी ने जवाब दिया, “गाय हमारी माता है। भला कोई अपनी माँ को भगाता है। मैं इन सभी गायों को अपने बंगले में ही रखूँगा। मैं विपक्ष का शुक्रिया अदा करना चाहता हूँ कि उसने मुझे गौ माता की सेवा करने का मौका दिया।“