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Saturday, September 24, 2016

राजा की बहादुरी

राजा वही बनता है जो बहादुर और दिलेर होता है। इतिहास गवाह है कि कई राजा अपनी बहादुरी के कारण ही अपना साम्राज्य बढ़ा पाये और राजा से महाराज हो गये। कुछ राजा तो इतने बहादुर थे कि उन्होंने बड़ा सा एम्पायर खड़ा कर दिया और सम्राट बन गये। इन्हें सुलतान या शहंशाह भी कहा जाता था।

उन्हीं बहादुर राजाओं के नक्शेकदम पर चलने के चक्कर में चम्पकवन का राजा शेर सिंह भी बहुत बहादुर था। उसकी दिली ख्वाहिश थी कि अपने राज्य का इलाका बढ़ाये। लेकिन इसके लिये उसे सबसे पहले अपने पड़ोस में स्थित नंदनवन पर कब्जा करने की जरूरत थी। लेकिन नंदनवन का राजा बब्बर शेर भी कम नहीं था। वह शेर सिंह से यदि बीस नहीं था तो उन्नीस भी नहीं था। वह भी बहुत महात्वाकांछी था और अपना इलाका बढ़ाना चाहता था।

बढ़ते हुए समय की मांग के कारण दोनों राजाओं की मुलाकात अक्सर अंतर्वनीय मंचों पर हो जाया करती थी जिसमें विश्व के लगभग हर मुख्य वनों के राजा शरीक होते थे। वैसे मंचों पर दोनों मिलते तो थे लेकिन बड़े अकड़ के साथ। एक बार ऐसी ही किसी मीटिंग में दोनों राजाओं; यानि शेर सिंह और बब्बर शेर में कुछ बातों को लेकर बहस हो गई। दोनों एक दूसरे पर यह आरोप लगा रहे थे कि दूसरे वन के जानवर चोरी छुपे उनके वन में आते हैं। वे एक दूसरे पर यह आरोप भी लगा रहे थे कि इससे स्थानीय जानवरों में बुरी आदतें फैलने लगी हैं जो अच्छी बात नहीं है। उसके बाद मामला तुम्हें देख लूँगा, तुम्हें देख लूँगापर छूटा।

मीटिंग से जब शेर सिंह वापस लौटे तो उनके सिपहसलाहकारों ने इस बात को बड़ी गंभीरता से लिया। मोटू गैंडे ने कहा, “महाराज, उसकी ये मजाल जो आपको आँखे दिखा दे। आप बस आदेश दें तो मैं अकेला ही उसकी किले जैसी मांद को ढ़ाह कर आ जाऊँगा।“

ऐसा सुनकर भोलू भालू ने कहा, “महाराज, सीधा आक्रमण करना ठीक नहीं होगा। आप आदेश करें तो मैं मधुमक्खियों की पूरी फौज भेज दूँ। इस तरह से हमारी फौज का कम से कम नुकसान होगा।“
तभी चतुर लोमड़ी बोल उठी, “अरे जंग में तब तक मजा नहीं आता जब खून न बहे। आपके एक ही इशारे पर लोमड़ियों का पूरा दल अपनी जान दे देगा।“

मंटू हाथी अपनी गंभीर वाणी में बोला, “मेरी सलाह मानें तो पहले इस मुद्दे को बातचीत से हल करने की कोशिश करनी चाहिए। इसीसे दोनों जंगलों के जानवरों में शांति और प्रेम रहेगा।“

लेकिन लगता है कि शेर सिंह अपनी बेइज्जती से कुछ ज्यादा ही तिलमिलाये हुए थे। साथ में उन्हें ये भी लगता था कि कहीं प्रजा ने उन्हें डरपोक समझ लिया तो फिर ऐसी तैसी हो जायेगी। सो शेर सिंह ने फैसला किया कि बब्बर शेर को आमने सामने की लड़ाई की चुनौती दी जाये।

उसके बाद हरियल तोते को दूत बनाकर बब्बर शेर के पास भेजा गया। बब्बर शेर तो जैसे उसका ही इंतजार कर रहा था। उसे देखते ही वह आग बबूला हो गया और बोला, “जाओ और अपने राजा से कह दो कि यहाँ किसी ने चूड़ियाँ नहीं पहन रखी हैं। अबकी बार तो मैं चम्पकवन को नक्शे से हि मिटा दूँगा।“

उसके बाद पहले से तय तारीख यानि जिस दिन पूरा चांद निकलता है उस दिन दोनों राजा लड़ाई के लिए चल पड़े। चम्पकवन और नंदनवन के बीच एक नदी पड़ती थी। उस नदी पर एक पुराना पुल था जिसे इंसानों ने बनवाया था। लेकिन अब उस पुल को कोई भी इंसान इस्तेमाल नहीं करता था। चम्पकवन की ओर से शेर सिंह अपने दलबल के साथ पुल के पास पहुँचा। आगे-आगे शेर सिंह चल रहा था और उसके पीछे उसके चुनिंदा सिपहसलाहकार चल रहे थे। उन सबके पीछे चम्पकवन के जानवर चल रहे थे। नदी के किनारे पहुँचते ही सबने एक सुर में नारा लगाया, “चम्पकवन जिंदाबाद!”
उधर से बब्बर शेर भी आ पहुँचा। बब्बर शेर के पीछे उसके सिपहसलाहकार चल रहे थे। उनके पीछे नंदनवन के सारे जानवर भी थे। नदी के किनारे पहुँचते ही सबने एक सुर में नारा लगाया, “नंदनवन जिंदाबाद!”

अब इधर से शेर सिंह जोर से दहाड़ा, “आज तो खून की नदियाँ बह जाएँगी।“

उधर से बब्बर शेर जोर से दहाड़ा, “आज तो लाशें बिछ जाएँगी।“

इधर से शेर सिंह जोर से दहाड़ा, “आज कयामत आ जाएगी।“

उधर से बब्बर शेर जोर से दहाड़ा, “आज तो प्रलय हो जाएगा।“

उसके बाद इधर से शेर सिंह नपे कदमों से पुल से होकर चलने लगा। उधर से बब्बर शेर भी नपे कदमों से उसकी तरफ आने लगा। बीच-बीच में दोनों तरफ के जानवर जोर-जोर से नारे लगा रहे थे। थोड़ी देर के बाद शेर सिंह और बब्बर शेर पुल के ठीक बीच में आमने सामने थे। दोनों एक दूसरे को आँखें तरेर कर देख रहे थे। शेर सिंह ने एक भयानक दहाड़ लगाई। जवाब में बब्बर शेर ने उससे भी भयानक दहाड़ लगाई। फिर दोनों ने अपने आगे के पंजे उठाये और एक दूसरे से गुत्थमगुत्था हो गये। लेकिन दोनों एक दूसरे को टस से मस नहीं कर पा रहे थे। दोनों तरफ के जानवर सांस रोके उस दृश्य को देख रहे थे।

शेर सिंह ने कहा, “तुम्हारे अयालों से ठेठ मरदाना महक आ रही है।“

बब्बर शेर ने कहा, “तुम्हारे अयालों से भी ठेठ मरदाना महक आ रही है।“

शेर सिंह ने कहा, “लगता है नंदनवन में खाने को मोटे ताजे हिरण मिलते हैं तुम्हें।“

बब्बर शेर ने कहा, “लगता है चम्पकवन में खाने को मोटे ताजे भैंसे मिलते हैं तुम्हें।“

शेर सिंह ने नथुने फुफकारते हुए कहा, “आज की रात तुम्हारी आखिरी रात होगी। उम्मीद है कि अपनी शेरनी को अलविदा कह आये होगे।“

बब्बर शेर ने नथुने फुफकारते हुए कहा, “आज की रात तुम्हारी आखिरी रात होगी। उम्मीद है कि अपनी शेरनी से आखिरी बार गले मिलकर आये होगे।“

शेर सिंह ने कहा, “गजब का दम है तुम्हारी बाजुओं में।“

बब्बर शेर ने कहा, “गजब की ताकत है तुम्हारे पंजों में।“

शेर सिंह ने कहा, “मुझे बहुत बुरा लगेगा यदि तुम्हारे जैसे सच्चे शेर की हत्या कर दूँ।“

बब्बर शेर ने कहा, “मुझे भी बहुत बुरा लगेगा यदि मेरे हाथों एक बहादुर शेर का खून हो जाए।“

शेर सिंह ने कहा, “नंदनवन का इलाका तुम्हारा है।

बब्बर शेर ने कहा, “चम्पकवन का इलाका तुम्हारा है।“

शेर सिंह ने कहा, “फिर लड़ाई किस बात की है।“

बब्बर शेर ने कहा, “फिर लड़ाई किस बात की है।“

उसके बाद दोनों ने एक दूसरे को बड़े अदब से झुककर सलाम किया और वापस अपने अपने जंगलों की ओर लौट गये। दोनों तरफ के जानवरों ने जोर-जोर से नारे लगाने शुरु कर दिये। सबने राहत की सांस ली। उसके बाद दोनों जंगलों के कबूतर आसमान में ऊँचाई पर उड़ने लगे ताकि दूर दूर तक शांति का संदेश फैल सके।

(साभार: यह कहानी भगवतीचरण वर्मा की कहानी दो बांकेसे प्रेरित है।)


Thursday, September 22, 2016

नापाक हमला

पहला दिन
राजा का दरबार लगा हुआ है। पूरे दरबार में गहमागहमी है जो कि इतने बड़े राज्य के दरबार के लिए लाजिमी भी है। दरबार को शुरु हुए लगभग एक घंटा बीत चुका है। अभी तक कुछ छोटे मोटे मामलों को छोड़कर कोई भी गंभीर मुद्दा राजा के विचार के लिये नहीं आया है। इसलिए राजा पर कुछ कुछ बोरियत के भाव देखे जा सकते हैं।

तभी एक गुप्तचर तेजी से दरबार में दाखिल होता है। उसके चेहरे पर पसीने की बूँदें बता रही हैं कि वह कोई गंभीर बात बताने आया है। गुप्तचर को देखकर राजा कहते हैं, “आओ मेरे भरोसेमंद गुप्तचर। क्या खबर लाये हो?”

गुप्तचर के सुर में घबराहट और अधीरता के भाव हैं। वह कहता है, “हे राजन, गजब हो गया। अभी अभी सूचना मिली है कि पड़ोस के दुश्मन राजा की सेना ने हमारी सीमा पर आक्रमण कर दिया है। आक्रमणकारियों ने सीमा पर तैनात हमारी सेना के कैंप पर धावा बोल दिया है। अब तक हमारे बीस सैनिक शहीद हो चुके हैं।“

राजा थोड़ा आशंकित से दिख रहे हैं और पूछते हैं, “आगे बताओ गुप्तचर। ताजा स्थिति नियंत्रण में है या हमें कुछ कड़े कदम उठाने होंगे।“

गुप्तचर कहता है, “महाराज, अच्छी खबर ये है कि हमारे एक जांबाज सैनिक ने आक्रमणकारियों का डटकर मुकाबला किया और उन्हें मार गिराया। आक्रमणकारियों की संख्या केवल पाँच थी।“

राजा थोड़े और गंभीर हो गये और बोले, “चलो ये तो अच्छी खबर है। लेकिन मुझे प्रजा की चिंता सता रही है। उम्मीद है ये खबर अभी प्रजा में नहीं फैली होगी।“

गुप्तचर ने थोड़ी सांस ली और बोला, “जी नहीं महाराज। अभी तक खबरनवीसियों को कोई भी अहम सूचना लीक नहीं हुई है।“

राजा ने ठंडी सांस ली और बोले, “खबरनवीसियों को बता दिया जाये कि इस खबर को इस तरह से पेश किया जाए ताकि प्रजा में हमारी सेना की बहादुरी के किस्से फैल जाएँ।“

उसके बाद राजा ने एक प्रेस कॉंन्फ्रेंस बुलाई और उसे संबोधित करते हुए बोले, “आपको पता ही होगा कि हमारे पड़ोसी राज्य की नापाक नजरें किस तरह हमारी ओर गड़ी होती हैं। आज सुबह सुबह ही उनके चार सैनिकों ने हमारी सीमा पर आक्रमण कर दिया। लेकिन हमारे सिपाही बहादुरी से लड़े और उन्हें मार गिराया। हम अपना सीना चौड़ा करके कह सकते हैं कि इस हमले में हमारे बीस सैनिक शहीद हो गये। यह पूरा राज्य उन शहीद सैनिकों के बलिदान को हमेशा याद रखेगा और उनकी माँओं का सदैव आभारी रहेगा। हम ये वादा करते हैं कि उनकी शहादत को व्यर्थ न जाने देंगे। हम ईंट का जवाब पत्थर से देंगे। हम एक दाँत के बदले दुश्मन का पूरा जबड़ा उखाड़ देंगे। मैं प्रजा को ये भरोसा दिलाना चाहता हूँ कि हमारी सेना हर तरह से दुश्मन से लोहा लेने में सक्षम है। अगर जरूरत पड़ी तो हम अपने पड़ोसी राज्य को अपने ब्रह्मास्त्र से नेस्तनाबूद कर देंगे। इस बार हम आर पार की लड़ाई लड़ेंगे।“

दूसरा दिन

दूसरे दिन सुबह से ही राज्य के विभिन्न शहरों, गाँवों और गली मुहल्लों में खास तौर पर प्रशिक्षित चारणों को काम पर लगा दिया गया। वे सब उस युद्ध का बढ़ा चढ़ाकर व्याख्यान कर रहे थे। हर व्याख्यान में शहीद सैनिकों की बहादुरी के किस्से कहे जा रहे थे। साथ में शेर दिल राजा की चौड़ी छाती के बारे में भी कशीदे काढ़े जा रहे थे। ऐसे ही किसी नुक्कड़ पर चारणों द्वारा एक जनसभा को संबोधित किया जा रहा था तभी एक गुप्तचर राजा का संदेश लेकर आया। उसका संदेश सुनने के बाद तो चारणों के तेवर और भी आक्रामक हो गये। उसके बाद चारण ने कहना शुरु किया, “देवियों और सज्जनों। आपके लिए एक और खुशखबरी है। अभी अभी खबर आई है कि हमारे खास रूप से प्रशिक्षित कमांडो की एक टुकड़ी ने बीती रात चुपके से दुश्मन के इलाके में प्रवेश किया। उनकी संख्या केवल पाँच थी। वे बड़ी बहादुरी से दुश्मन के इलाके में गये और उनकी छावनी पर तब आक्रमण किया जब वे इस सबसे बेखबर सो रहे थे। इस आक्रमण में हमारे कमांडो ने एक पूरी की पूरी छावनी को तबाह कर दिया। दुश्मन के कितने सैनिक हताहत हुए हैं इसकी तो फिलहाल कोई पुष्टि नहीं हो पाई है लेकिन इतना पक्का पता है कि इससे दुश्मन सहम गया है। उस सफल हमले के बाद हमारे कमांडो सुरक्षित अपने राज्य में वापस आ गये हैं। महाराज ने उन्हें वीरता पुरष्कार से सम्मानित करने की घोषणा कर दी है। अब इसी खुशी में हम वीर रस की कुछ चुनिंदा भजन गाते हुए अपनी सभा जारी रखेंगे।“


उसके बाद एक से एक हिट भजनों को प्रस्तुत किया गया। उसके लिए मायानगरी से एक से एक चुनिंदा कलाकारों को ड्यूटी पर लगाया गया था। उनमें से सबसे हिट भजन इस प्रकार है, “सुनो गौर से दुनिया वालों, चाहे जितना जोर लगा लो, सबसे आगे हैं हमरे सिपाही।“ 

शाहजहाँ का बुढ़ापा

शाहजहाँ अब बूढ़े हो गये हैं। लंबे समय तक अपने सल्तनत पर सुखपूर्वक राज्य करने के बाद उन्हें इस बात की खुशी होती है कि सल्तनत का चहुमुखी विकास हुआ है और प्रजा खुशहाल है। लेकिन बुढ़ापा ऐसी चीज होती है कि ऐसे समय में अपने औलाद भी साथ छोड़ देते हैं; फिर प्रजा तो पराई होती है। हर तरफ से मांग उठने लगी थी कि किसी शहजादे को बादशाह बनाकर शाहजहाँ सन्यास ले लें। लेकिन गद्दी का मोह शायद पुत्रमोह से भी बड़ा होता है। इसलिए काफी मान मनौवल के बाद शाहजहाँ ने अपने बड़े शहजादे को बादशाह बना दिया। 

बादशाह बनते ही शहजादे के तेवर बदल गये। वह अपने आपको एक शक्तिशाली शहंशाह समझने लगा और बादशाह की ऐसी तैसी करने लगा। वह प्रजा के दिल में अपनी एक खास तसवीर बनाना चाहता था इसलिए बादशाह के कार्यकाल की जमकर आलोचना करने लगा। बूढ़े बादशाह चुपचाप इसे बर्दाश्त करते रहे। लेकिन एक दिन शाहजादे ने सारी सीमाएँ पार कर दीं। उसने शाहजहाँ के अनूठे निर्माण पर ही सवालिया निशान खड़े कर दिये। कहने लगा कि ताजमहल को बनाना एक फिजूलखर्ची थी। अब बादशाह ठहरे पुराने आशिक इसलिए अपने प्यार की निशानी की तौहीन उनसे बर्दाश्त नहीं हुई। 

बेचारे बादशाह अभी इस मुद्दे पर कुछ करने की सोच ही रहे थे कि शाहजादे ने उनपर एक से बढ़ कर एक आक्रमण करना शुरु कर दिया। शहजादे ने बादशाह के कुछ अजीम नवरत्नों को एक एक करके उनके पदों से हटाना शुरु कर दिया। इनमें से दो तो बादशाह के चचेरे भाई ही थे। इनमे से तीसरा आदमी तो बादशाह के रिश्ते में नहीं था लेकिन उनके मुँहबोले भाई से कम नहीं था। उसकी तौहीन को बादशाह ने अपनी तौहीन माना। फिर क्या था, बादशाह बिफर पड़े। उनकी बूढ़ी हड्डियों में सोया हुआ जोश फिर से जाग गया। रस्सी जल गई थी लेकिन ऐंठन नहीं गई थी। बादशाह ने अपने दोनों चचेरे भाइयों और अपने मुँहबोले भाई जैसे नवरत्न को एक गुप्त मंत्रणा के लिए यमुना के किनारे एक गुप्त कोठरी में बुलवाया।

बादशाह के एक चचेरे भाई ने कहा, “जिल्ले इलाही, आपका लौंडा तो पाजामे से बाहर आने को बेताब हो रहा है। हमारी वर्षों की कमाई इज्जत को धूल में मिलाना चाहता है।“

बादशाह के दूसरे चचेरे भाई ने कहा, “जिल्ले इलाही, मुझे तो ये डर सता रहा है कि ये कहीं ताजमहल के डिमोलिशन का आदेश न जारी कर दे।“

उसके बाद बादशाह के मुँहबोले भाई जैसे नवरत्न ने कहा, “मुझे तो इससे भी ब‌ड़ा डर सता रहा है।कहीं ये आपको कारागार में न डाल दे। फिर कारागार की खिड़की से ताजमहल को निहारते हुए आपके आखिरी वक्त बीत जाएँगे।“

ऐसा सुनते ही बादशाह को काठ मार गया। काफी देर के बाद जब वो कुछ संभले तो बोले, “क्या इसी दिन के लिए मैंने औलाद पैदा की थी। बुढ़ापे में हमें क्या चाहिए? थोड़ी इज्जत और चंद रंगीन शाम। आखिर मेरे बाद सबकुछ उसका ही तो है। पता नहीं उसे अपनी इमेज बिल्डिंग एक्सरसाइज के लिए किस नामाकूल ने सलाह दी?”

फिर उन चारों में देर तक मंत्रणा चली। इस बीच उनके कुछ खास अर्दलियों ने बिरयानी, कवाब और सोमरस की सप्लाई जारी रखी। साथ में लखनऊ की एक महान तवायफ का नाच भी होता रहा। एक आशिकाना माहौल मे मीटिंग खत्म करने के बाद भूतपूर्व बादशाह ने इस बात का निर्णय ले लिया था कि शाहजादे को कैसे रास्ते पर लाया जाये और उसे उसकी सही औकात दिखाई जाए।

अगले दिन बादशाह ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई। प्रेस कॉन्फ्रेंस में बादशाह ने कुछ अहम घोषणाएँ कीं जो निम्नलिखित हैं।

  • नए बादशाह की कम उम्र और अनुभव हीनता को देखते हुए यह जरूरी हो जाता है कि कुछ पुराने और अनुभवी लोग अहम जिम्मेदारियाँ संभाल लें।
  • हमारे बड़े चचेरे भाई को सूबे की फौजदारी अदालतों का मुखिया बनाया जाता है। बिना उनके आदेश के किसी को भी कारागार में नहीं डाला जा सकेगा।  
  • हमारे छोटे चचेरे भाई को सूबे की दीवानी अदालतों का मुखिया बनाया जाता है। बिना उनके आदेश के किसी पर भी कोई फर्जी मुकदमा नहीं चलाया जा सकेगा।
  • हमारे सबसे पुराने और विश्वस्त नवरत्न को सूबे का बख्शी बनाया जाता है। रुपये पैसे का पूरा हिसाब किताब उनके पास ही रहेगा।
  • हम; यानि कि भूतपूर्व बादशाह; अब सुपर बादशाह के पद पर बैठेंगे। मेरे दस्तखत के बिना अब जवान बादशाह का कोई भी फैसला मान्य नहीं होगा।



इन घोषणाओं को सुनकर पूरे सल्तनत के चारण हरकत में आ जाते हैं। वे बूढ़े बादशाह की तारीफ में फेहरिश्त पढ़ना शुरु कर देते हैं। लेकिन तवारीख लिखने वाले सकते में आ गये हैं। उन्हें लगता है कि जब तक शाहजहाँ जेल में दम नहीं तोड़ते तब तक इतिहास के किस्सों में ठीक से रस नहीं आ पायेगा। 

Monday, September 19, 2016

हाई लेवेल मीटिंग (उच्च स्तरीय बैठक)

यह एक बहुत पुरानी कहानी है। इस कहानी का सार अधिकतर लोगों को पता होगा क्योंकि यह कहानी पंचतंत्र से ली गई है। फिर भी इस कहानी को ताजा घटनाओं के संदर्भ में लिखने की जरूरत पड़ती ही रहती है। आगे बढ़ने से पहले इस कहानी को एक बार फिर से याद कर लेते हैं। संजीवक नाम का बैल जंगल में इसलिए भटक रहा था क्योंकि उसके रखवालों ने उसे उसके हाल पर छोड़कर जंगल से भाग जाने में अपनी भलाई समझी थी। थोड़े ही दिनों में जंगल की ताजा घास खाकर और ताजी आबो हवा में सांस लेकर संजीवक फिर से हट्टा कट्ठा हो गया था। खुले जंगल में घूमने के कारण संजीवक का कॉन्फिडेंस धीरे-धीरे ओवरकॉन्फिडेंस में बदलने लगा था और वह उसका मजा भी ले रहा था।

उसी जंगल में पिंगलक नाम का एक शेर रहता था जो कि उस जंगल का राजा भी था। पिंगलक कभी भी अकेले नहीं घूमता था बल्कि इंसानी नेताओं और राजाओं की तरह पूरे दल बल के साथ घूमता था। उसके साथ अंगरक्षकों की एक फौज भी चलती थी। इसकी झाँकी आधुनिक काल के बड़े नेताओं में भी देखने को मिलती है। जैसे ही कोई नेता बहुत बड़ा हो जाता है वह अकेले घूमना बंद कर देता है। साथ में हमेशा अंगरक्षकों की एक फौज जरूर होती है। ऐसा वह दो कारणों से करता है। सबसे बड़ा कारण होता है जान जाने का डर। कहीं बीच में ही जान चली गई तो फिर बड़ी मुश्किल से हाथ आई सत्ता का सुख क्षणभंगुर रह जायेगा। दूसरा कारण होता है स्टैटस सिंबॉल। अंगरक्षकों की जितनी भयंकर फौज नेता का उतना ही अधिक महात्म्य। बहरहाल, पिंगलक अपने अंगरक्षकों और चाटुकारों की फौज के साथ पानी पीने के लिए नदी के किनारे की ओर जा रहा होता है। तभी उसे संजीवक के रंभाने की आवाज सुनाई पड़ती है। संजीवक के रंभाने की आवाज पिंगलक को किसी भयानक जानवर की दहाड़ की तरह सुनाई देती है। पिंगलक उस दहाड़ को सुनकर अंदर तक डर जाता है और उसके रोंगटे खड़े हो जाते हैं। वह तेजी से अपने कदम पीछे हटाता है झाड़ियों की ओट में छुप जाता है। उसके चारों ओर अंगरक्षकों और चाटुकारों की सुरक्षा कवच बन जाती है। अब पिंगलक ठहरा एक राजा इसलिए वह अपने चेहरे से डर को छुपाने की कोशिश करता है और कॉन्फिडेंट दिखने की कोशिश करता है। वह ऐसा इसलिए करता है ताकि उसके चाटुकार उसे डरपोक न समझ लें। यदि ऐसा हो गया तो फिर चाटुकारों के दल बदलने का खतरा पैदा हो सकता है। इसलिए अपनी सत्ता बचाने के लिए पिंगलक के लिए यह जरूरी हो जाता है कि वह कॉन्फिडेंट दिखता रहे।

उसके बाद उसी झाड़ियों की ओट में पिंगलक और उसके चाटुकारों की एक लंबी मीटिंग चलती है। वहाँ उपस्थित सभी जानवर उस अनजान से भयानक जानवर से निपटने के लिए तरह तरह की योजना बनाते हैं। उनकी मीटिंग पर कोई दूर से भी नजर रख रहा होता है। ये दोनों प्राणि हैं दमनक और कर्टक नाम के सियार जो बहुत ही सयाने हैं। बहुत साल पहले उनके पिता राजा के मंत्रीमंडल के वरिष्ठ सदस्य हुआ करते थे। लेकिन उनके पिता की मृत्यु के बाद राजा ने उन्हें दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल दिया था। दमनक और कर्टक के लिए यह किसी सुनहरे मौके से कम नहीं होता है। वे इस मौके को हाथ से नहीं जाने देना चाहते हैं और इस अवसर को इस तरह भुनाना चाहते हैं ताकि वे मंत्रीमंडल में शामिल हो जाएं। मौका देखकर दमनक और कर्टक राजा की मंडली के पास पहुँचते हैं और सलाम बजाने के बाद राजा से उसकी परेशानी का कारण पूछते हैं।

दमनक ने पूछा, “महाराज की जय हो। लगता है महाराज की तबीयत कुछ नासाज है। माथे पर पसीने की बूँदें नजर आ रही हैं।“

ऐसा सुनकर पिंगलक अपने चेहरे पर एक फीकी हँसी लाने की कोशिश करता है और कहता है, “अरे नहीं, कुछ नहीं। बस यूँ ही, ………. आज का मौसम कुछ ज्यादा ही उमस वाला है इसलिए थोड़ी घुटन सी हो रही है।“

उसके बाद कर्टक कहता है, “हाँ महाराज, मैने भी देख लिया है कि इस उमस का असली कारण क्या है। लगता है कोई भयानक जानवर इस जंगल में आ गया है और आपको चुनौती दे रहा है। अभी तो चुनाव आने में तीन साल बचे हुए हैं। लेकिन लगता है कि ये तो आपको मध्यावधि चुनाव के लिए बाधित कर देगा। या हो सकता है चुनाव के बगैर भी तख्तापलट कर दे। अब बाकी सभासदों का क्या भरोसा। आजकल तो लोग थोड़ी सी बोटियों की लालच में दल बदल लेते हैं।“

ऐसा सुनकर पिंगलक ने कहा, “अब तुमने मामले को ताड़ ही लिया तो फिर तुमसे क्या छिपाना। आखिर तुम ठहरे हमारे पुराने मंत्री के बेटे। लगता है स्वर्गीय मंत्री जी ने अपनी अकल विरासत में तुम्हें दे दी थी। अब तुम ही कोई उपाय बताओ कि इस नए खतरे से कैसे निबटा जाये।“

दमनक ने कहा, “महाराज, यदि अभयदान का वचन दें तो मैं कुछ कहूँ।“

पिंगलक ने कहा, “हाँ हाँ, निडर होकर कहो।“

दमनक ने कहा, “शास्त्रों में कहा गया है कि नासूर को तभी काट देना चाहिए जब वह छोटा हो। नहीं तो वह बाद में भगंदर का रूप ले सकता है और फिर बड़ी तकलीफ देता है। आप फौरन ही अपनी सेना लेकर इसपर आक्रमण कर दीजिए और इसे मुँहतोड़ जवाब दीजिए।“

कर्टक ने बीच में ही टोका, “नहीं महाराज, ऐसा हरगिज मत करिये। चाणक्य ने कहा है कि कभी भी किसी दुश्मन को कमजोर समझने की गलती नहीं करनी चाहिए। सबसे पहले उसकी शक्ति और कमजोरी का पता करना चाहिए। उसके बाद सटीक योजना बनाकर ही आक्रमण करना चाहिए।“

दमनक ने कहा, “महाराज, प्रजा का दिल जीतने के लिए राजा को समय आने पर बहादुरी दिखाने से पीछे नहीं हटना चाहिए। यदि प्रजा को राजा की बहादुरी पर संदेह हो गया तो फिर उस राजा के गिने चुने दिन ही बच जाते हैं। मान और सम्मान की कीमत हमेशा से ही प्राणों से अधिक रही है।“

कर्टक ने कहा, “नहीं महाराज, जब जान ही चली जायेगी तो फिर झूठी इज्जत लेकर क्या होगा। एक बुद्धिमान राजा को दुश्मन की औकात देखकर ही कोई कदम उठाना चाहिए। यदि दुश्मन कमजोर हो तो उसे पटखनी दें नहीं तो उससे हाथ मिला लें। इतिहास में इसके सैंकड़ों उदाहरण हैं कि किस तरह से कई राजाओं ने अपने दुश्मन से हाथ मिलाकर बड़े से बड़ा साम्राज्य बना लिया। इससे बिना मतलब के खून खराबे को रोका जा सकता है और प्रजा भी खुशहाल रहती है।“


फिलहाल अभी राजा पिंगलक के दरबार में उच्चस्तरीय मीटिंग चल रही है। बाहर जो भी थोड़ी बहुत खबर लीक हो रही है उससे यह पता चल रहा है कि कोई ठोस नतीजा नहीं निकला है। उधर इन बातों से बेखबर संजीवक मजे ले रहा है और बीच बीच में जोर से रंभा भी रहा है। उसकी दहाड़सुनकर पिंगलक और उसके चाटुकारों की सांस अटक जा रही है और वे उसी तरह से झाड़ियों की ओट में दुबककर अपनी उच्चस्तरीय मीटिंग कर रहे हैं। 

Friday, September 9, 2016

खूँटे से बँधी गाय

नेताजी सुबह सुबह नहा धोकर तैयार हो गये। ऊपर से नीचे तक झक सफेद कुर्ता पायजामा और उसपर से सफेद चप्पल। लगता था जंपिंग जैक (जीतेंद्र) के ठेठ देसी अवतार। हाँ उस चमकदार सफेदी पर रंगों की हल्की सी छटा बिखेरने के लिए उन्होंने एक गमझा कंधे पर डाल लिया था जिसमें केसरिया और हरे रंग दिख रहे थे। लेकिन अभी तक सेक्रेटरी का कहीं अता पता न था। नेता जी ने समय का सदुपयोग करने के लिए अपने बंगले के लॉन में मॉर्निंग वाक करना ही बेहतर समझा। जैसे ही उन्होंने मॉर्निंग वाक शुरु किया उनके नथुनों में ताजी हवा की खुशबू की जगह एक अजीब सी दुर्गंध फैलने लगी। नेताजी ने तुरंत अपने माली को आवाज लगाकर पूछा, “अबे ये बदबू किस चीज की आ रही है? तुम तो देहाती आदमी हो इसलिए इस बदबू को पहचानते होगे।“

माली ने जवाब दिया, “क्या नेताजी, आप भी तो कहते हैं कि आपका बचपन किसी गाँव में बीता था। फिर आप ये भी दंभ भरते हैं कि आप तो किसानों के हमदर्द हैं। गोबर जैसी चिरपरिचित चीज की बदबू नहीं पहचान पा रहे हैं।“

नेताजी थोड़ा झल्लाए और कहा, “अरे नहीं, जब से सांसद बना हूँ तब से साफ सुथरे बंगले में रहता आया हूँ। ज्यादातर जगह की यात्रा हवाई जहाज से करता हूँ। जहाँ हवाई जहाज नहीं पहुँच सकता वहाँ तो मैं एअरकंडीशन गाड़ी में जाता हूँ। इसलिए बाहर की आबो हवा के बारे में कुछ पता ही नहीं चलता। खैर छोड़ो, ये गोबर की बदबू कहाँ से आ रही है?”

माली ने कहा, “सरकार, अब गोबर की बदबू किसी फूल से थोड़े न आएगी। जरूर गोबर से ही आ रही होगी।“

नेताजी ने अब थोड़ी तल्खी से पूछा, “वो तो मैं समझ गया। लेकिन हमारे बंगले के आस पास गोबर कहाँ से आ गया। जाओ जाकर पता लगाओ।“

माली दौड़कर बंगले के गेट तक गया और वहीं से नेताजी को पास आने का इशारा करने लगा। नेताजी लगभग दौड़ते हुए गेट तक पहुँचे। वहाँ पर बुरा हाल था।

ठीक गेट से ही मोटी मोटी रस्सियों से कई गाएँ और साँड बँधे हुए थे। मेन रोड से गेट तक आने वाली छोटी सी सड़क पर इतनी गाएँ बँधी थी कि तिल रखने की जगह नहीं थी।

नेताजी ने नाक को अपने गमछे से ढ़क लिया और बोले, “अरे बाप रे, ये गाएँ तो बहुत बुरी हालत में लग रहीं हैं। इनमें से तो कुछ के पेट भी खराब लग रहे हैं। उनका गोबर तो दस्त की तरह दिख रहा है। गोबर की बदबू भी कुछ अजीब सी है।“

माली ने जवाब दिया, “सरकार, ये सब आवारा पशु लगते हैं। दिन भर कूड़ा कचरा खाने की वजह से इनका हाजमा भी खराब हो गया है। गोबर की अजीब सी बदबू भी ऊलजलूल खाने के कारण है।“

नेताजी ने नाक भौं सिकोड़ते हुए कहा, “लगता है ये सब विपक्ष की चाल है।“

माली ने कहा, “हाँ हाँ, आपको जुकाम भी हो जाए तो विपक्ष पर ही आरोप लगता है।“

तभी नेताजी का सेक्रेटरी गेट के बाहर से आता दिखाई दिया। गेट खोलकर आने का सवाल ही नहीं पैदा होता था। लिहाजा सेक्रेटरी दीवार फाँद कर अंदर घुसा। उसे देखते ही नेताजी आग उगलने लगे, “कहाँ थे सुबह से? जरूरी मीटिंग में जाना है। उसके बाद गौरक्षा के सिलसिले में भाषण भी देने जाना है। तुम्हारे रहते हुए ये सब किसने कर दिया?

सेक्रेटरी ने थोड़ा दम लेने के बाद कहा, “अरे सर, लगता है कल का न्यूज नहीं सुना आपने। आजकल जो नया जोकर आ गया है उसने कल किसी खूँटा गाड़ो अभियान के बारे में बताया था। कह रहा था कि हमारी पार्टी के सभी आला नेताओं के घर के बाहर आवारा गायों को खूँटे से बाँध देगा। इतनी जल्दी वे काम पर भी लग जाएँगे पता नहीं था।“

तभी बंगले के सामने कई नामी गिरामी टीवी चैनलों के ओबी वैन रुकते दिखाई दिये। उनमें से धड़ाधड़ कैमरामैन उतरने लगे। साथ में सुंदर और कमसिन बालाएँ हाथ में माइक लिए गेट की तरफ दौड़ती दिखाई पड़ गईं। अब नेताजी के पास और कोई रास्ता न था। बुझे मन से उन्होंने गेट खोला और बाहर की तरफ चल पड़े। गेट से बाहर आते ही उनका पहला पैर छपाक से गोबर की ढ़ेर पर पड़ा। नेताजी का मन अंदर तक घिन से भर गया। लेकिन अपनी वेदना छुपाते हुए नेताजी ने चेहरे पर 1000 वाट की मुसकान लाने में सफलता पा ली थी। एक टीवी रिपोर्टर ने इस तरह की जींस और टीशर्ट पहन रखी थी जिससे उसका यौवन नेताजी पर कहर ढ़ाने के लिए काफी था। उस रिपोर्टर ने नेताजी के मुँह में माइक घुसेड़ते हुए पूछा, “नेताजी, आपके बंगले के बाहर इतनी गाएँ बँधी हुई हैं। आपको कैसा महसूस हो रहा है?”

नेताजी ने अपनी बत्तीसी दिखाते हुए कहा, “मुझे बहुत ही अच्छा महसूस हो रहा है। ऐसा लगता है कि मेरा बचपन वापस आ गया है। ऐसा लगता है कि मैं सुबह सुबह गाएँ चराने जा रहा हूँ। गाय हमारी माता है। हम तो बचपन से ही गौ माता की सेवा में उद्धत रहे हैं।“

रिपोर्टर ने फिर पूछा, “नेताजी, इन गायों का आप क्या करेंगे। इन्हें यहाँ से खदेड़ देंगे या अपने आलीशान बंगले में पनाह देंगे।“

नेताजी ने जवाब दिया, “गाय हमारी माता है। भला कोई अपनी माँ को भगाता है। मैं इन सभी गायों को अपने बंगले में ही रखूँगा। मैं विपक्ष का शुक्रिया अदा करना चाहता हूँ कि उसने मुझे गौ माता की सेवा करने का मौका दिया।“


Thursday, September 8, 2016

विश्वामित्र की तपस्या भंग

इन्द्र अपने रंगमहल में एक से एक सुंदर अप्सराओं के नृत्य का आनंद उठा रहे थे। साथ में वे दुनिया के कोने कोने से आये सोमरस का स्वाद भी ले रहे थे। तभी नारद के प्रवेश से रंग में भंग हो गया। नारद ने आते ही कहा, “नारायण, नारायण।“

अब चूँकि नारद ठहरे एक अत्यंत महत्वपूर्ण ऋषि जिनका आना जाना लगभग हर देवी देवता के यहाँ लगा रहता था इसलिए इंद्र को अपनी पार्टी को बीच में ही रोकना पड़ा। इंद्र अपने सिंहासन से उठ खड़े हुए और पूछा, “नारद जी, कैसे आना हुआ? सब कुशल मंगल तो है?”

नारद ने उत्तर दिया, “आप यहाँ अपनी रातें रंगीन कर रहे हैं और उधर कोई आपके सुख शांति में सेंध लगाने की कोशिश कर रहा है।“

इंद्र ने थोड़ा आश्चर्य से पूछा, “क्या बात कर रहे हैं? मुझे तो ऐसा कुछ पता नहीं चला।“

इस पर नारद ने हँसते हुए जवाब दिया, “लगता है आजकल आप रियलिटी शो कुछ ज्यादा ही देख रहे हैं। कभी कभी प्राइम टाइम भी देख लिया कीजिए। इससे पूरी दुनिया में होने वाली गतिविधियों के बारे में पता चलता है।“

इंद्र के चेहरे पर अब घबराहट के भाव कुछ अधिक ही दिखने लगे। उन्होंने पूछा, “नारद जी, खुल कर बताएँ।“

नारद ने कहा, “सुनने में आया है कि एक राजा अपना राजपाट और बाकी सबकुछ छोड़ छाड़ कर तपस्या में लीन है। पिछले हजार सालों से वह तपस्या कर रहा है। यदि उसकी तपस्या सफल हो गई तो कहीं वह आपकी गद्दी न हथिया ले।“

इंद्र ने पूछा, “कौन है? क्या नाम है?”

नारद ने कहा, “उसे लोग विश्वामित्र के नाम से जानते हैं।“

फिर नारद ने कहा, “मैंने आपको आने वाले खतरे के प्रति आगाह कर दिया है। अब मैं चलता हूँ। नारायण, नारायण।“

नारद के जाते ही इंद्र ने सोमरस का एक बड़ा गिलास एक ही साँस में खाली कर दिया। फिर वे गहरी चिंता में डूब गये। उनकी चिंता देखकर उनकी सबसे चहेती अप्सरा; जिसका नाम मेनका था; ने पूछा, “हे देवराज, आप किस चिंता में डूब गये?”

इंद्र ने बताया, “अभी अभी नारद जी आये थे। किसी विश्वामित्र नामक ऋषि के बारे में बता रहे थे। वह पिछले हजार सालों से तपस्या में लीन है। मुझे तो मेरी गद्दी खतरे में नजर आ रही है।“

ऐसा सुनकर मेनका ने इंद्र के सामने सोमरस से भरा एक नया गिलास पेश किया और बोली, “हे देवराज, इसमें चिंता की कोई बात नहीं है। जब आपका दिमाग मेरे सौंदर्य से मिल जाए तो हम बड़े से बड़े खतरे को हवा में उड़ा सकते हैं।“

फिर वे दोनों पूरी रात उस मुद्दे पर सोचते रहे। सुबह होते-होते इंद्र और मेनका ने अपने रास्ते से विश्वामित्र नाम के काँटे को हटाने की तरकीब सोच ली।

योजना के मुताबिक मेनका ने जबरदस्त साज श्रिंगार किया और उसपर से मेल खाते हुए परिधान पहने। फिर वे और इंद्र पुष्पक विमान पर सवार होकर उस स्थान पर पहुँचे जहाँ विश्वामित्र तपस्या कर रहे थे। घना जंगल होने के कारण पुष्पक विमान को थोड़ी दूरी पर ही उतारना पड़ा। फिर घने जंगल में जाकर उन्होंने अपनी योजना को अमली जामा पहनाया। उसके बाद जो कुछ हुआ उसका विवरण आगे है।

अगले ही दिन पूरे विश्व के टेलिविजन चैनलों और इंटरनेट पर एक ही वीडियो वायरल था। उस वीडियो में मेनका और विश्वामित्र को ऐसे ऐसे कोणों से दिखाया गया था जिससे किसी को भी विश्वामित्र के चरित्र के बारे में संदेह न करने का कोई कारण ही न मिले। हर चैनल पर एक ही ब्रेकिंग न्यूज चल रहा था, “इस ढ़ोंगी को देखिये। ये पाखंडी अपने आप को साधु कहता है। इसने तो बड़े से बड़े इज्जतदार साधुओं की लुटिया डुबो दी।“

अगले दिन अखबारों में खबर छपी, “पुलिस ने एक ढोंगी साधु को रंगे हाथ गिरफ्तार किया। साधु रंगरेलियाँ मनाते हुए रंगे हाथ पकड़ा गया।“

हर नुक्कड़, हर खलिहान और खेत में लोग अपने अपने स्मार्टफोन पर साधु वाला वीडियो देख रहे थे। ये अलग बात है कि उनकी रुचि साधु में कम और अप्सरा में अधिक थी। हर टेलिविजन चैनल पर एक से एक ज्ञानी मनुष्यों के पैनल बैठे हुए थे जो गिरते सामाजिक मूल्यों पर ज्ञानवर्धक चर्चा कर रहे थे।

उधर स्वर्ग में मेनका और इंद्र साथ में बैठकर प्रख्यात उद्घोषक संजय के चैनल पर ये खबरें सुन रहे थे। इंद्र मेनका की ओर मुसकरा कर कह रहे थे, “तुमने तो कमाल का नृत्य पेश किया। उस साधु का एक एक रोयां हिल गया था।“


मेनका अपनी तारीफ सुनकर फूली नहीं समा रही थी। उसने कहा, “आपने भी तो कमाल कर दिया। उतने कठिन कोणों से वीडियो बनाना तो अच्छे से अच्छे कैमरामैन के वश का नहीं। सारे स्टिंग ऑपरेशन करने वाले तो आपसे जल भुन गये होंगे।“ 

Sunday, September 4, 2016

टीचर्स डे का त्योहार

मेरी क्लासटीचर आज कुछ ज्यादा ही बनी ठनी दिख रही थीं। जैसे ही वे क्लास में आईं बच्चों ने उन्हें गुड मॉर्निंग कहने में कुछ अधिक ही जोश दिखाया। टीचर जवाब में कुछ नहीं बोलीं लेकिन कुछ शर्मा और सकुचा कर अपनी सीट पर बैठ गईं। क्लास में बैठे लगभग सभी लड़के उन्हें तिरछी निगाहों से देखने की कोशिश कर रहे थे। कुछ लड़कियाँ भी उन्हें वैसे ही घूरने की कोशिश कर रहीं थीं। लड़के किस वजह से देख रहे थे और लड़कियाँ किस वजह से देख रहीं थीं ये बहस का मुद्दा हो सकता है। लेकिन क्लास टीचर को भी इस तरह से सबके आकर्षण का केंद्र बनना अच्छा ही लग रहा था। रौल कॉल के बाद क्लास टीचर ने अपनी शहद भरी आवाज में ऐलान किया, “बच्चों तुम्हें तो पता ही होगा कि अगले सोमवार को हम टीचर्स डे मना रहे हैं। यह हर छात्र के लिए एक यादगार दिन होता है क्योंकि इस दिन के अवसर पर सभी छात्र अपने टीचर्स का सम्मान करना सीखते हैं।“

मैंने बीच में ही टोका, “लेकिन मैं तो रोज ही आपका सम्मान करता हूँ।“

टीचर से थोड़ा झुँझलाते हुए कहा, “कितनी बार कहा है कि बीच में न टोका करो। खैर, टीचर्स डे के दिन हमारे स्कूल में एक शानदार प्रोग्राम होगा। उस प्रोग्राम के लिए तुममे से हर स्टूडेंट को पचास पचास रुपए चंदा देना होगा।“

मैंने कहा, “मेरे पापा चंदा देने के सख्त खिलाफ हैं। मैं चंदा नहीं दे पाउँगा।“

इस पर टीचर ने थोड़ा और झुँझलाते हुए कहा, “अब इसे देखो। इसके मन में टीचर के लिए तो कोई इज्जत ही नहीं है। बस कहता फिरता है कि यह रोज ही मेरा सम्मान करता है।“

मैंने टीचर से कहा, “लेकिन पचास रुपए देने ने देने से टीचर का सम्मान कैसे जुड़ा हुआ है?

टीचर ने जवाब दिया, “मेरे पास इतनी फुरसत नहीं है कि तुम्हारे हर सवाल का जवाब दूँ। तुम जवाब ही जानना चाहते हो तो तुम्हें प्रिंसिपल मैम के पास ले चलती हूँ। वहाँ तुम्हें ठीक से जवाब मिल जायेगा।“

यह सुनकर कुछ बच्चे फिस्स से हँस पड़े। बाकी बच्चे आपस में कानाफूसी करने लगे।

मैंने कहा, “क्या मैम, आप भी। बात बेबात प्रिंसिपल मैम को बीच में क्यों ले आती हैं? चलिये मैं अपनी मम्मी से पचास रुपए माँग कर ले आउँगा। सोचूँगा किसी मंदिर में चढ़ावा चढ़ा दिया। जब भगवान तक की इज्जत रुपयों पैसों में तौली जाती है तो फिर टीचर कहाँ से गलत हो सकती हैं।“

टीचर ने थोड़ा कुटिल मुसकान के साथ कहा, “ठीक है, उम्मीद है तुम्हें टीचर की इज्जत का असली मतलब समझ में आ गया होगा।“

घर लौटने के बाद जब मैने अपने पापा से इस बारे में बात की तो उन्होंने कहा, “यह ठीक है कि मैं चंदा देना पसंद नहीं करता हूँ लेकिन जब मुहल्ले के पहलवान भंडारा करने के लिए चंदा माँगने आते हैं तो मैं कुछ नहीं कर पाता। मैं इस डर से चंदा दे देता हूँ कि कहीं वही पहलवान कल को मुझपर अपनी पहलवानी की आजमाइश न करने लगें। टीचर से भी बहस ल‌ड़ाना ठीक नहीं है। हो सकता है कि वे तुम्हारे नंबर काट दें।“


जब सोमवार को मैं स्कूल पहुँचा तो स्कूल का गेट फूलों से सजा हुआ था। गेट के ऊपर एक बड़ा सा बैनर लगा था जिसपर हैप्पी टीचर्स डे लिखा हुआ था। स्कूल के मैदान में एक शामियाना लगा था जिसके एक छोर पर स्टेज बना हुआ था। चारों तरफ बंदनवार लगे थे। सभी टीचर ऐसे सज धज कर आईं थीं जैसे करवा चौथ का त्योहार हो। लाउडस्पीकर पर हिट फिल्म तारे जमीन परके गाने बज रहे थे। सभी बच्चों ने टीचर्स के लिए गुलाब के फूल और गुलदस्ते लाये थे। रंगारंग प्रोग्राम में कुछ बच्चों ने गाना गाया। कुछ बच्चों ने गिटार और कीबोर्ड पर अपना हुनर दिखाया। कुछ लड़कियों ने हिट गानों पर डांस भी पेश किया। आखिर में प्रिंसिपल मैम ने एक लंबा लेकिन बोरिंग भाषण दिया। फिर टीचर्स के लिए नाश्ते के पैकेट सर्व किये गये। सर्व करने का काम स्टूडेंट्स ने किया। किसी भी स्टूडेंट को नाश्ते का पैकेट नहीं मिला। इस तरह से सभी स्टूडेंट ने टीचर्स डे के अवसर पर सभी टीचर्स को भरपूर मान और सम्मान दिया।